रणथंभौर में वन विभाग बाघ, पैंथर, भालू आदि का रेस्क्यू करता है। इसके अलावा, बरसात के मौसम में गलियों और मोहल्लों में साँप निकलने के मामले भी बढ़ जाते हैं।इसके लिए भी वन विभाग द्वारा रेस्क्यू टीम भेजी जाती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से कर्मचारियों की कमी के कारण साँपों के रेस्क्यू का काम निजी विशेषज्ञों द्वारा किया जा रहा है। रणथंभौर में भी, सीकर निवासी आविश शर्मा चार साल से सफलतापूर्वक साँपों का रेस्क्यू कर रहे हैं। इस दौरान उन्हें तीन बार साँप ने काटा, लेकिन ईश्वर की कृपा से वे सुरक्षित हैं।
टीवी पर देखकर सीखा रेस्क्यू का तरीका
आविश ने बताया कि उन्हें बचपन से ही वन्यजीवों में रुचि थी। बढ़ती उम्र के साथ यह शौक और बढ़ता गया। ऐसे में उन्होंने डिस्कवरी और अन्य वन्यजीव चैनल देखना शुरू किया। इन चैनलों पर साँपों के रेस्क्यू करने के तरीके की जानकारी भी दी जाती थी। ऐसे में उन्होंने वाइल्डलाइफ चैनल के ज़रिए सांपों को बचाने की बारीकियाँ सीखीं।
800 से ज़्यादा सांपों को बचाया
तीन साल से ज़्यादा समय से रणथंभौर में सांपों को बचा रहे आविश अब तक यहाँ 800 से ज़्यादा सांपों को सफलतापूर्वक बचा चुके हैं। इससे पहले वे सीकर में भी सांपों को बचा चुके हैं। उन्होंने बताया कि रणथंभौर में 14 तरह के सांप पाए जाते हैं। इनमें कोबरा, कॉमन कारापेस, रसेल वाइपर, सॉ स्केल वाइपर आदि शामिल हैं। इनमें कई ज़हरीले सांप भी शामिल हैं। पठान, रेड स्नेक, कॉमन ट्राइककू आदि।
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