सरिस्का एक बार फिर देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। करीब 1 हजार 166 वर्ग किलोमीटर में फैले सरिस्का के पुनर्सीमांकन पर सवाल उठ रहे हैं। क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (सीटीएच) के दायरे में व्यवसायिकरण और मानवीय हस्तक्षेप पर पूरी तरह से रोक है। लेकिन अब सरिस्का के कोर एरिया, जहां बाघों का लगातार मूवमेंट रहता है, का निर्धारण करने के लिए पुनर्सीमांकन के लिए सर्वे कराया जा रहा है। सरिस्का के कोर एरिया के टहला क्षेत्र में बाघों का मूवमेंट न होने को देखते हुए बफर जोन को कोर तक बढ़ाने और टहला क्षेत्र को सरिस्का से हटाने का नया प्रस्ताव बनाया गया है। अब इसको लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।
दरअसल, वर्ष 2023 का मामला कोर्ट में जाने के बाद कोर एरिया के 1 किलोमीटर और बफर के 10 किलोमीटर क्षेत्र में व्यवसायिक अयस्क खनन गतिविधि पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी। इसके चलते सरिस्का टहला क्षेत्र की 57 खदानें बंद कर दी गई थीं। लेकिन अब टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 1873 वर्ग किलोमीटर हो जाएगा। इसमें अलवर, जयपुर वन मंडल के जंगल को शामिल किया जा रहा है। सरिस्का प्रशासन ने यह प्रस्ताव सरकार को भेज दिया है। जुलाई तक इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने की संभावना है। वर्तमान में सरिस्का का जंगल 1213 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें 886 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र जंगल का कोर एरिया है। जबकि बाकी क्षेत्र बफर जोन में शामिल है।
सरिस्का पर एक नजर
जंगल में 48 बाघ-बाघिन और उनके शावक हैं। इसमें करीब 26 शावक शामिल हैं।
1997 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरिस्का का सीमांकन निर्धारित किया गया था। 1997 में गजट नोटिफिकेशन के दौरान कई खदानें बंद कर दी गई थीं।
2011 में केंद्रीय अधिकारिता समिति सीईसी ने फिर निर्देश दिया कि क्षेत्र का निर्धारण मोमेंट के आधार पर किया जाए।
सरकार ने 2023 में कोर एरिया के 1 किलोमीटर के अंदर व्यावसायिक गतिविधि बंद करने के आदेश दिए हैं।
सीटीएच का दायरा बदलने से क्या होगा?
हाल ही में 26 जून को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक हुई। बैठक में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंजूरी दी है कि वन क्षेत्र बढ़ाया जाना चाहिए। सीटीएच के बदलाव का विरोध करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनमें अभी ज्ञान की कमी है। यही लोकतंत्र है, यही इसकी विशेषता है। सीटीएच का दायरा बदलने से टहला क्षेत्र की 50 से ज्यादा बंद मार्बल खदानें शुरू हो जाएंगी। साथ ही होटलों के खिलाफ की गई कार्रवाई भी खत्म हो सकती है। वहीं वन्यजीव प्रेमी इस बदलाव को सरिस्का के लिए खतरा बता रहे हैं।
वहीं, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है, "राजस्थान सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री संजय शर्मा ने सीटीएच का मतलब बाघ संरक्षण, वनों का संरक्षण और उसे सुरक्षित रखना माना है। उन्हें अभी भी जानकारी का अभाव है। कई ऐसी बातें हैं जो कहीं नहीं कही जा सकती। लेकिन जब इसके परिणाम सामने आएंगे, तभी वे इस पर विश्वास करेंगे।" वन एवं पर्यावरण मंत्री संजय शर्मा ने कहा कि जैसे-जैसे बाघों की आबादी बढ़ रही है। वन क्षेत्र भी बढ़ रहा है। क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट का मतलब है कि उसमें बाघ को सुरक्षित रखना। साथ ही बफर जोन और बाघ को भी सुरक्षित रखना है। बाघ के लिए किसी तरह की कमी नहीं होनी चाहिए।
जानिए विशेषज्ञों की राय भी
इस संबंध में पर्यावरणविद् और वन्यजीव प्रेमी राजेश कृष्ण सिद्ध का कहना है कि सीटीएच में बदलाव का मतलब है सरिस्का के जंगल को नष्ट करना और वन्यजीवों को खतरे में डालना। सरकार खनन माफिया और होटल माफिया के आगे झुक गई है। वर्तमान में यहां 48 बाघ हैं, उनकी जान खतरे में है। बाघ के उस क्षेत्र को बदलने का प्रयास किया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि उस क्षेत्र को बढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन जिस क्षेत्र में पहले से बाघ रहते हैं, जहां लगातार बाघ देखे जा रहे हैं, उसे कम नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सवाल पूछा कि आखिर किस दबाव में यह बदलाव किया जा रहा है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी उठाया मुद्दा
सरिस्का टाइगर रिजर्व में क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट में बदलाव का विरोध लगातार सामने आ रहा है। देशभर में इस मुद्दे के गरमाने के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपनी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि कुछ कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरिस्का के जंगल से छेड़छाड़ की जा रही है। आने वाले दिनों में इसके दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे। अगर जंगल नष्ट हो गए तो जंगली जानवरों की जान खतरे में पड़ जाएगी।
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