राजस्थान सरकार ने गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति और पिछड़ा वर्ग के विभिन्न संगठनों की मांगों पर विचार करने के लिए 3 सदस्यीय कैबिनेट उपसमिति का गठन किया है। समिति की अध्यक्षता संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल करेंगे, जबकि सामाजिक न्याय मंत्री अविनाश गहलोत और राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम इसके सदस्य होंगे। यह समिति ओबीसी और गुर्जर समाज के प्रतिनिधियों द्वारा उठाई गई मांगों पर चर्चा, समीक्षा और समाधान के लिए बनाई गई है। पिछले दो दशकों में यह 7वीं बार है जब इस तरह से गुर्जर समाज के लिए समिति बनाई गई है।
9 जून को हुई थी महापंचायत
एमबीसी आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने समेत कई मांगों को लेकर 9 जून को भरतपुर के पालूपुरा में गुर्जर समाज की महापंचायत हुई। सरकार से मांग पत्र लिया गया। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष विजय बैंसला ने लोगों को सरकार का मसौदा पढ़कर सुनाया और इसके बाद महापंचायत संपन्न हुई। एक समूह ने मसौदे का विरोध किया और गुस्से में रेलवे ट्रैक जाम कर दिया।
2010 में पहली बार बनी थी उपसमिति
कांग्रेस शासन में 2010 में पहली बार उपसमिति बनी थी। इससे पहले मंत्रियों को वार्ता के लिए समिति बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन वादे सरकारी दस्तावेजों का हिस्सा नहीं थे। कई बातें मौखिक थीं। 2010 में कांग्रेस सरकार को गुर्जरों की मांग पर उपसमिति बनानी पड़ी थी। कारण यह था कि कैबिनेट समिति से हुआ समझौता कानूनी वैधता की श्रेणी में आता था। समिति का गठन हर सरकार में होता था, इसलिए इस मामले में थोड़ी देरी हुई।
समिति में कौन-कौन और कब थे
2004-05: राजेंद्र राठौड़,
2007: राजेंद्र राठौड़, कालूलाल गुर्जर व अन्य। लक्ष्मीनारायण दवे व सांवरमल जाट को समिति में शामिल किया गया।
2010: उपसमिति बनी, शांति धारीवाल, बृज किशोर शर्मा व डॉ. जितेंद्र सिंह।
2013: राजेंद्र राठौड़, अरुण चतुर्वेदी और हेम सिंह भड़ाना।
2018: विश्वेंद्र सिंह, भंवरलाल मेघवाल और सुभाष गर्ग।
2020: पुनर्गठन, फिर रघु शर्मा, अशोक चांदना आदि।
2025: अब सरकार ने फिर कमेटी बनाई।
9वीं अनुसूची की मांग क्यों?
सरकारें तीन बार गुर्जर समेत 5 जातियों को 5% अलग से आरक्षण दे चुकी हैं। कोर्ट ने तीनों बार इसे खत्म कर दिया। पिछली गहलोत सरकार ने चौथी बार गुर्जरों को आरक्षण दिया था। ऐसे में गुर्जरों को डर है कि कहीं पहले की तरह आरक्षण को कोर्ट में चुनौती न दे दी जाए और खत्म न कर दिया जाए। अगर ऐसा हुआ तो समाज पर इसका बड़ा असर पड़ेगा। ढाई दशक से गुर्जर आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं।
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