अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी 11 अक्तूबर को दारुल उलूम देवबंद गए थे.
देवबंद उत्तर प्रदेश में सहारनपुर ज़िले का एक शहर है और दारुल उलूम का मतलब होता है- तालीम हासिल करने की जगह.
भारत में दारुल उलूम के हज़ारों मदरसे हैं और मौलाना अरशद मदनी इन मदरसों के प्रिंसिपल हैं.
दारुल उलूम ही इन मदरसों का सिलेबस तय करता है और धर्म से जुड़े मामलों की व्याख्या भी करता है. बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के मदरसों में भी दारुल उलूम का पाठ्यक्रम चलता है.
जब मुत्तक़ी यहाँ पहुँचे तो मौलाना मदनी उनके स्वागत में खड़े थे. मुत्तक़ी को गले लगाकर मौलाना मदनी ने स्वागत किया था. तालिबान के विदेश मंत्री को देखने के लिए हज़ारों की भीड़ पहुँच गई थी.
बड़ी संख्या में मदरसों के छात्र थे. दारुल उलूम के प्रिंसिपल और जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना मदनी ने बीबीसी हिन्दी से कहा कि देवबंद स्थित मदरसे में क़रीब छह हज़ार स्टूडेंट्स हैं और ये सभी मौजूद थे.
इसके अलावा दूसरे शहरों के उलेमा भी पहुँचे थे. मौलाना मदनी कहते हैं कि क़रीब 10 हज़ार लोग मुत्तक़ी के स्वागत में आए थे.
अमीर ख़ान मुत्तक़ी को दारुल उलूम ने इस दौरे में हदीस पढ़ाने की डिग्री दी. इस डिग्री का नाम क़ासिमी है. देवबंद जिन्हें क़ासिमी की डिग्री देता है, वे हदीस पढ़ा सकते हैं.
दरअसल, अमीर ख़ान मुत्तक़ी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल हैं और उन्हें भारत आने के लिए यूएनएससी से अनुमति लेनी पड़ी थी. मुत्तक़ी को यूएनएससी ने नौ अक्तूबर से 16 अक्तूबर तक भारत आने के लिए अनुमति दी थी.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को भारत ने मान्यता नहीं दी है लेकिन मुत्तक़ी का स्वागत पूरे प्रोटोकॉल के साथ हुआ.
इसका असर मुत्तक़ी के देवबंद दौरे में भी दिखा. भारत में मुत्तक़ी के प्रति गर्मजोशी को लेकर कई लोग सवाल उठा रहे हैं. ये सवाल पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के लोग भी उठा रहे हैं.
भारत के जाने-माने गीतकार जावेद अख़्तर ने 13 अक्तूबर को मुत्तक़ी के दौरे को लेकर लिखा था, ''जब मैं देखता हूँ कि दुनिया के सबसे ख़तरनाक आतंकवादी संगठन तालिबान के प्रतिनिधि को वही लोग सम्मान और स्वागत कर रहे हैं, जो हर प्रकार के आतंकवाद के ख़िलाफ़ उपदेश देते हैं, तो मैं शर्म से सिर झुका लेता हूँ. देवबंद पर भी शर्म आती है, जिन्होंने अपने इस्लामी हीरो का इतने श्रद्धा से स्वागत किया. वह व्यक्ति जो लड़कियों की शिक्षा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने वालों में से एक है. मेरे भारतीय भाइयों और बहनों, हमारे साथ क्या हो रहा है?''
दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल मौलाना मदनी से पूछा कि जावेद अख़्तर की इस टिप्पणी को वह कैसे देख रहे हैं?
- तालिबान सरकार के विदेश मंत्री क्यों आ रहे हैं भारत, अफ़ग़ानिस्तान के मीडिया में ऐसी चर्चा
- तालिबान को भारत इतनी तवज्जो क्यों दे रहा है और अफ़ग़ानिस्तान को क्या होगा हासिल?
- एश्ले टेलिस ने क्यों कहा था, अमेरिका के लिए भारत क्यों कोई मायने नहीं रखेगा

मौलाना मदनी ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''मैंने जावेद अख़़्तर की बात लोगों से सुनी है. वह कह रहे हैं कि तालिबान लड़कियों को पढ़ने से रोक रहा है लेकिन ऐसा नहीं है. तालिबान बस इतना कहता है कि लड़के और लड़कियां एक साथ नहीं पढ़ेंगे. इसके ख़िलाफ़ तो हम भी हैं. हिन्दुस्तान में भी ऐसे कई शिक्षण संस्थान हैं, जहाँ केवल लड़कियां ही पढ़ती हैं.''
मौलाना मदनी कहते हैं, ''अगर जावेद अख़्तर का सिर इसी में शर्म से झुक जाता है तो मेरा सिर उनकी इस सोच पर शर्म से झुक जाता है. जावेद अख़्तर की टिप्पणी से मैं बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखता हूँ. ऐसी सोच के कारण ही समस्याएं पैदा हो रही हैं. हिन्दू लड़कियां मुसलमानों के साथ जा रही हैं और मुसलमान लड़कियां हिन्दुओं के साथ जा रही हैं. इससे लड़ाई बढ़ रही है. ऐसे में लड़कों और लड़कियों के स्कूल अलग होने ही चाहिए.''
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ के अनुसार, टीनएज लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी के कारण अफ़ग़ानिस्तान में 10 लाख से ज़्यादा लड़कियां प्रभावित हुई हैं.
मदरसे जो इस्लामी शिक्षाओं पर आधारित धार्मिक केंद्र हैं, अब वही ज़्यादातर महिलाओं और टीनएज लड़कियों के लिए शिक्षा हासिल करने के एकमात्र ज़रिया हैं.
हालांकि जो परिवार प्राइवेट ट्यूशन का ख़र्च वहन कर सकते हैं, वे अब भी गणित और भाषाओं की पढ़ाई करवा पा रहे हैं. कई लोग मानते हैं कि मदरसों में मुख्यधारा के स्कूलों की पढ़ाई का कुछ हिस्सा मिल जाता है लेकिन कई लोग मदरसों में ब्रेनवॉशिंग को लेकर भी चिंता जताते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान अब भी दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ महिलाओं और लड़कियों को माध्यमिक और उच्च शिक्षा से पूरी तरह वंचित रखा गया है.
लेकिन बात केवल जावेद अख़्तर की नहीं है. देवबंद में जिस तरह से मुत्तक़ी का स्वागत हुआ, उस पर अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के लोग भी आलोचना कर रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के पत्रकार हबीब ख़ान ने देवबंद में मुत्तक़ी के पहुँचने पर जुड़ी भीड़ का वीडियो 11 अक्तूबर को एक्स पर पोस्ट कर लिखा था, ''तालिबान के मंत्री के देवबंद पहुँचने पर जुटी भीड़ को देख भारत को चिंतित होना चाहिए. यह तालिबान के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को दिखाता है, जो अब फिर से अपने देवबंदी मूल से जुड़ रहा है.एक ऐसा संगठन जिसने आत्मघाती बम धमाकों के ज़रिए सत्ता पर कब्ज़ा किया, वह भारतीय मुसलमानों के लिए प्रेरणा नहीं होना चाहिए.''
हबीब ख़ान की इस पोस्ट को रीपोस्ट करते हुए पाकिस्तान में लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंस के प्रोफ़ेसर तैमूर रहमान ने लिखा है, ''भारत ने ख़ुद अपने ही विनाश का रास्ता चुन लिया है, जब उसने मुर्गीखाने में लोमड़ी को आमंत्रित किया. भारत के तालिबानीकृत देवबंदी देश में तबाही मचा देंगे.''

तैमूर रहमान ने बीबीसी हिन्दी से कहा कि अमीर ख़ान मुत्तक़ी का देवबंद जाना और उन्हें हीरो की तरह देखना मुस्लिम नौजवानों के हक़ में नहीं है.
तैमूर रहमान कहते हैं, ''तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों की तालीम पर पाबंदी लगा दी है. इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया है. तालिबान मध्यकालीन समाज का समर्थन करता है. ऐसे में भारत में तालिबान का स्वागत होगा तो दो चीज़ें फौरन होंगी. पहला यह कि इस इलाक़े में तालिबान मज़बूत होगा और इससे इस्लामिक कट्टरता बढ़ेगी. दूसरी बात यह है कि मुत्तक़ी को देवबंद के छात्रों ने हीरो की तरह देखा. अगर भारत के मुसलमान नौजवान मुत्तक़ी को हीरो की तरह लेंगे तो भारत को अंदाज़ा लगा लेना चाहिए कि इसका असर क्या होगा.''
तैमूर रहमान कहते हैं, ''तालिबान को पहले पाकिस्तान ने मज़बूत किया और अब भारत वही ग़लती कर रहा है. देवबंदी मुसलमानों पर तालिबान के असर को भारत समझ नहीं पा रहा है. हमने तो अपने समाज में तालिबान का असर देखा है और उसे भुगत भी रहे हैं. भारत अगर तालिबान को मज़बूत करेगा तो उसका नतीजा वही होगा, जो पाकिस्तान भुगत रहा है. मुझे लग रहा है कि भारत आग में हाथ डाल रहा है. भारत तो यही कहता रहा है कि पाकिस्तान ने इस्लामी कट्टरता बढ़ाई है लेकिन ख़ुद वही ग़लती क्यों कर रहा है?''
तैमूर रहमान को लगता है कि भारत मुत्तक़ी से सरकारी स्तर पर बात करता लेकिन देवबंद में नौजवान मुसलमानों के सामने हीरो की तरह जाने देने से परहेज कर सकता था.

तैमूर रहमान कहते हैं, ''मुस्लिम नौजवानों ने मुत्तक़ी को हीरो की तरह क्यों लिया, इसकी तहक़ीक़ात की जानी चाहिए लेकिन जहाँ बारूद पहले से ही पड़े हैं, वहाँ आप चिंगारी क्यों फेंक रहे हैं?''
मौलाना अरशद मदनी तैमूर रहमान की दलीलों से सहमत नहीं हैं. उन्हें लगता है कि तालिबान ने क्रांति की है और क्रांति को लोग आतंकवाद की तरह देख रहे हैं. मौलाना मदनी कहते हैं, ''मेरा मानना है कि इनके बाप और दादाओं ने दुनिया की बड़ी ताक़तों से जिस तरह से लड़ना सिखाया था, वो जज़्बा आज भी कायम है. तालिबान ने पश्चिम को धूल चटाई है, इसलिए ये आतंकवादी कहते हैं. अगर ये आतंकवादी होते तो हिन्दुस्तान उनको क्यों बुलाता? ये सियासत है, इसलिए उन्हें आतंकवादी कहते हैं. मैं तो इन्हें बिल्कुल आतंकवादी नहीं मानता हूँ.''
मौलाना अरशद मदनी से पूछा कि दारुल उलूम के छात्रों के लिए क्या अमीर ख़ान मुत्तक़ी हीरो हैं? मौलाना मदनी इसके जवाब में कहते हैं, ''इसमें हीरो की क्या बात है. अमीर ख़ान मुत्तक़ी तो दारुल उलूम से पढ़े हुए लोगों ने जो मदरसे बनाए थे, उससे पढ़कर निकले हैं. इन्होंने हमारे बड़ों से फ़ायदा उठाया है. इन्होंने अमेरिका और रूस जैसी ताक़तों को धूल चटाई है. ये हमें मानने वाले हैं, इसलिए हमारे लोग बाहर आ गए. भारत ने तालिबान से ताल्लुकात कायम कर समझदारी दिखाई है.''
मुत्तक़ी जब देवबंद के कैंपस में पहुँचे थे तो स्वागत में फूलों की बारिश की गई थी. स्वागत से अभिभूत मुत्तक़ी ने कहा था, ''जिस गर्मजोशी से देवबंद के स्कॉलरों और यहाँ के लोगों ने स्वागत किया, इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है. केवल दारुल उलूम ही नहीं बल्कि सबने बहुत मोहब्बत से हमारा स्वागत किया. भारत और अफ़ग़ानिस्तान के संबंधों का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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