
इस साल फरवरी में केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि पिछले 10 साल में तक़रीबन 89 हज़ार सरकारी स्कूल देश भर में बंद हुए हैं.
इनमें क़रीब 25 हज़ार स्कूल उत्तर प्रदेश में हैं.
हालाँकि केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने ये नहीं बताया था कि ये स्कूल किन वजहों से बंद हुए हैं.
इन सबके बीच उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने स्कूलों को लेकर पेयरिंग स्कीम लागू की है.
सरकार के इस क़दम से राज्य के क़रीब 5,000 प्राइमरी स्कूलों के बंद होने का ख़तरा मँडरा रहा है.
उत्तर प्रदेश में कम छात्र वाले प्राथमिक स्कूलों के दूसरे स्कूलों में विलय को लेकर राजनीतिक दलों ने भी योगी सरकार को घेरा है.
विपक्ष का कहना है कि ये योजना ग़रीब और ग्रामीण बच्चों के भविष्य पर सीधा हमला है.
दूसरी ओर सरकार का तर्क है कि बेहतर शिक्षा के लिए ये क़दम उठाया जा रहा है.
सरकार ने 50 बच्चों से कम वाले प्राइमरी स्कूलों को दूसरे स्कूलों में विलय का निर्देश दिया है.
बेसिक शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक कुमार ने 16 जून के आदेश में कहा था कि जिन विद्यालयों में अपर्याप्त छात्र हैं, उनके दूसरे स्कूलों में विलय से प्रबंधन बेहतर हो पाएगा.
हालाँकि सरकार ने 50 बच्चों का मानक बनाया है. लेकिन हर ज़िले में स्कूल प्रशासन अलग-अलग मानक के अनुसार काम कर रहा है.
इस स्कीम के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की गई थी, जिसे कोर्ट ने ख़ारिज कर दी.
क्या है पेयरिंग स्कीम?केंद्र सरकार ने मार्च 2018 में संसद में लिखित जवाब में बताया था कि 2015-16 में उत्तर प्रदेश में 162645 प्राइमरी स्कूल थे.
इनमें 34151 स्कूल में 50 से कम बच्चे पढ़ रहे थे. लेकिन कुछ साल बाद ये आँकड़े और कम हो गए.
प्रदेश के योजना विभाग के2021-22 केआँकड़ों के मुताबिक राज्य में 1.4 लाख प्राइमरी स्कूल हैं. यानी 2015-16 के मुक़ाबले ये संख्या और कम हो गई है.
इन प्राइमरी स्कूलों में से 22016 स्कूल ऐसे थे, जिनमें 50 से कम बच्चे हैं.
अब योगी सरकार की पेयरिंग स्कीम से 5000 स्कूल प्रभावित हो सकते हैं.
कम बच्चों वाले स्कूल में ये तर्क दिया जा रहा है कि सरकार ने एडमिशन की उम्र छह साल कर दी है. जिसकी वजह से एडमिशन घट गए हैं.
प्राथमिक शिक्षक संघ ने दावा किया है कि जिन बच्चों का जुलाई में छह साल पूरा होता है, उनका ही एडमिशन किया जा सकता है. पहले कुछ छूट भी थी.
इसके अलावा बिना आधार वाले बच्चों को पैसा नहीं मिलता है. इससे भी एडमिशन में कमी आई है.
सरकार के मर्जर आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. ये याचिका कृष्णा कुमारी और अन्य लोगों की ओर से दाखिल की गई थी.
याचिका में कहा गया था कि मर्जर के कारण छोटे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है और ये बच्चे स्कूल छोड़ सकते हैं.
याचिका में ये भी कहा गया था कि ये शिक्षा के अधिकार क़ानून के प्रावधानों का उल्लंघन है.
इसमें छोटे बच्चों के स्कूल दूर हो जाने पर होने वाली परेशानियों का भी ज़िक्र किया गया था और प्राथमिक स्कूलों की चल रही मर्जर की कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील की गई थी.
आरटीई यानी शिक्षा के अधिकार के तहत 300 की आबादी वाले गाँव में एक किलोमीटर के दायरे में 6-14 साल तक के बच्चों के लिए स्कूल अनिवार्य किया गया था.
कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से याचिकाओं का विरोध किया गया था.
सरकार ने दलील दी थी कि विलय की कार्रवाई बच्चों के हित में संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए की जा रही है.
बाद में हाई कोर्ट ने विलय के ख़िलाफ़ दायर याचिका ख़ारिज कर दी.
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हालाँकि मर्जर का पहला चरण पूरा होने पर बंद किए गए स्कूल से दूसरे स्कूल में अभी कम बच्चे आ रहे हैं.
लखनऊ के माल ब्लॉक में सरैया प्राथमिक विद्यालय का स्कूल बलदेव खेड़ा में विलय हुआ है.
लेकिन स्कूल खुलने के एक सप्ताह बाद पुराने स्कूल से सिर्फ़ तीन बच्चे ही नए स्कूल में आ रहे हैं. जबकि पुराने स्कूल में 20 से ज़्यादा बच्चे थे.
इस तरह बुलाकीहार के प्राथमिक विद्यालय का विलय मोहम्मद नगर-रहमत नगर के प्राथमिक विद्यालय में हुआ है.
पुराने स्कूल के 30 बच्चों में से कुछ बच्चे ही आ रहे हैं. हालाँकि स्कूल के अध्यापक कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं.
अभिभावक कह रहे हैं कि वो लोग मज़दूरी करते हैं. इसलिए बच्चों को दूर के स्कूल में नहीं पहुँचा सकते हैं. ये दोनों ही स्कूल पुराने स्कूल से तक़रीबन एक-डेढ़ किलोमीटर दूर हैं.
लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर गौश खेड़ा में गाँव के लोग सरकार के इस क़दम से नाराज़ हैं.
यहाँ के प्राथमिक विद्यालय में क़रीब 30 बच्चे हैं. प्रशासन ने तय किया कि दो किलोमीटर की दूरी पर कसमंडी खुर्द के स्कूल में इसका विलय किया जाएगा. लेकिन गाँव के लोग इससे सहमत नहीं थे.
वे सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार नहीं थे. सरकार की तरफ़ से ब्लॉक शिक्षा अधिकारी और बीडीओ भी आए, समझाने का प्रयास किया, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ.
गाँव के लोगों का कहना है कि दूरी बढ़ जाने से उनके बच्चों को गाँव से दूर स्कूल में जाना मुश्किल है.
एक अभिभावक प्रीति और उनके पति विकलांग हैं. दोनों के बच्चे दो किलोमीटर चल कर गौश खेड़ा के स्कूल में आते हैं.
प्रीति कहती हैं, "हम दोनों लोग दिव्यांग हैं. दो बच्चे पढ़ रहे हैं. अभी भी काफ़ी दूर चल कर आ रहे हैं. दूरी और बढ़ जाएगी तो कैसे पहुँचाएँगे.हम यही चाहते हैं कि स्कूल कहीं और शिफ़्ट न किया जाए, क्योंकि बच्चों को इतना दूर नहीं भेज पाएंगे. वो स्कूल भी दूर है, जहाँ विलय किया जा रहा है."
इस गाँव में काफ़ी संख्या में महिलाएँ आई थीं, जो अधिकारियों को अपनी समस्या बता रही थीं. इनमें रानी देवी भी थीं. इनके दो बच्चे पढ़ते हैं.
रानी देवी कहती हैं, "मेरे दो बच्चे हैं. उनको इतना दूर कौन पहुँचाएगा. बच्चों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कौन लेगा. ऐसे में तो पढ़ाई छूट जाएगी."
अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि बच्चों के लिए गाड़ियों की व्यवस्था की जाएगी. लेकिन रानी देवी कहती हैं, "सरकार का हर वादा पूरा हो जाएगा, इसकी कोई गांरटी नहीं है. सरकार जैसा कहती है वैसा होता नहीं है."
इस मामले पर गाँव के प्रधान प्रधान मोहम्मद सलीम कहते हैं, "हम लोगों पर दबाव है. एक तरफ़ सरकार का, दूसरी तरफ गाँव वालों का. लेकिन हम नहीं चाहते कि स्कूल यहाँ से दूसरी जगह जाए. हम अपने गाँव वालों के साथ हैं."
ब्लॉक शिक्षा अधिकारी पदम शेखर मौर्या ने बीबीसी से कहा कि वे तो सरकारी आदेश का पालन कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, "हम लोग समझा रहे हैं कि ये फ़ैसला बच्चों के हित में है. इससे पढ़ाई बेहतर होगी. स्कूल में सरकार की तरफ़ से बेहतर सुविधा दी जाएगी. हम लोग सहमति के आधार पर काम कर रहे हैं."
वैसे ये प्रक्रिया सिर्फ़ ग्रामीण इलाक़ों में ही नहीं, बल्कि शहरी स्कूलों में भी चल रही है.
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सरकार की ये स्कीम शहरी स्कूल में भी लागू है.
लखनऊ में राज्य विधानसभा से क़रीब दो किलोमीटर पर शाहनजफ़ का इमामबाड़ा है.
पेयरिंग स्कीम के तहत शाहनजफ़ के स्कूल का भी नाम है. अधिकारिक काग़ज़ों में दिखाया गया है कि इसमें 10 से कम बच्चे हैं.
रोचक बात ये है कि ये स्कूल वर्ष 2015 में नरही में शिफ़्ट कर दिया गया था. स्थानीय लोगों ने बताया कि स्कूल पहले इस इमारत के एक हिस्से में चलता था. लेकिन अब नहीं है.
नरही में हमारी मुलाक़ात अश्विनी शर्मा से हुई. ये शाहनजफ़ वाले स्कूल में अध्यापक थे.
उन्होंने बताया, "2015 में अदालती आदेश के बाद वहाँ से स्कूल नरही में शिफ़्ट हो गया और कहा गया कि इसका नया भवन बनेगा. लेकिन तब से स्कूल यहीं चल रहा है."
अश्विनी शर्मा ने कहा, "स्कूल में 65 बच्चे थे. लेकिन स्कूल जब नरही आया तो सिर्फ़ छह-सात बच्चे ही यहाँ आए. यहाँ पर वहाँ के बच्चे नहीं आते हैं. क्योंकि स्कूल में पहली प्राथमिकता नरही के आसपास रहने वाले बच्चों को दी जाती है."
शिक्षक संघ का विरोधसरकार के इस क़दम का शिक्षक संघ भी विरोध कर रहे हैं.
प्राथमिक शिक्षक संघ लखनऊ के वीरेंद्र सिंह ने बीबीसी से कहा, "सरकार ने कोई नीति निर्धारित नहीं की है. न तो बच्चों के लिए न शिक्षकों के लिए. कई स्कूल जहाँ पेयरिंग हो रही है, वहाँ शिक्षकों को वेतन कैसे मिलेगा इस बारे में कुछ पता नहीं है. वेतन स्कूल से मिलेगा या नए स्कूल से, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.''
उन्होंने कहा, "ये व्यावहारिक दिक़्क़्त है. बच्चों की उपस्थिति कम हो जाएगी. स्कूल बंद हो रहे हैं. हेड मास्टरों की संख्या कम हो रही है. सरकार के पहले मर्जर से भी शिक्षकों को नुक़सान हुआ था."
इस मामले पर विपक्षी समाजवादी पार्टी भी सरकार पर हमलावर है.
पार्टी के प्रवक्ता आज़म ख़ान ने कहा, "सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे स्कूल में ज़्यादा संख्या में आएँ और पढ़ें. लेकिन सरकार स्कूल बंद करने पर आमादा है. हम लोग इसका विरोध कर रहे हैं. इससे बच्चों का स्कूल छूट जाएगा और भविष्य ख़राब हो सकता है."
पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरकार से सवाल किया, ''बेटियाँ स्कूल कैसे जाएँगीं.''
लेकिन बीजेपी ने सरकार का बचाव किया है. बीजेपी का दावा है कि इससे बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहेगा.
बीजेपी के प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने बीबीसी से कहा, "योगी आदित्यनाथ की सरकार में कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा. सरकार बच्चों को ज़्यादा सुविधा देने जा रही है. बिना सहमति के कोई भी स्कूल मर्जर नहीं किया जाएगा. जहाँ तक दूरी का सवाल है, सरकार उपाय कर रही है."
इस पूरे मामले पर सरकार का पक्ष जानने के लिए बीबीसी ने बेसिक शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया. उनका जवाब आने पर ख़बर को अपडेट किया जाएगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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