अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल ख़रीदने के कारण भारत पर 'और अधिक टैरिफ़' लगाने की चेतावनी दी है. भारत ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है.
डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, "भारत को परवाह नहीं है कि रूस की युद्ध मशीन से यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं. इसलिए, मैं भारत पर टैरिफ़ बढ़ाने जा रहा हूँ."
जवाब में भारत ने ट्रंप की इस चेतावनी को 'अनुचित और तर्कहीन' बताया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि 'अमेरिका अब भी रूस से अपने परमाणु उद्योग के लिए यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री के लिए पैलेडियम, उर्वरक और रसायन आयात करता है.'
भारत फ़िलहाल रूसी तेल के सबसे बड़े ख़रीदारों में शामिल है.
2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद कई यूरोपीय देशों ने व्यापार घटाया, जिसके बाद भारत रूस के लिए एक अहम बाज़ार बन गया.
डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ़ बढ़ाने की बात कही है लेकिन यह नहीं बताया कि टैरिफ़ में कितने प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी.
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ट्रुथ सोशल पर किए गए एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "भारत न सिर्फ़ रूस से बड़ी मात्रा में तेल ख़रीद रहा है, बल्कि ख़रीदे गए इस तेल का एक बड़ा हिस्सा खुले बाज़ार में बेचकर भारी मुनाफ़ा भी कमा रहा है. उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि यूक्रेन में रूस की युद्ध मशीन कितने लोगों को मार रही है. इसी कारण, मैं भारत पर टैरिफ़ बढ़ाने जा रहा हूँ."
इससे पहले, 30 जुलाई को भी ट्रंप ने भारत पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी.
उन्होंने यह भी कहा था कि अगर भारत रूस से सैन्य उपकरण और तेल ख़रीदना जारी रखता है, तो मौजूदा टैरिफ़ के अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
ट्रंप का आरोप है कि भारत के तेल ख़रीदने से रूस को यूक्रेन के साथ युद्ध जारी रखने में मदद मिल रही है.
ट्रंप की ताज़ा टैरिफ़ बढ़ाने की चेतावनी से पहले व्हाइट हाउस के डिप्टी चीफ़ ऑफ स्टाफ़ को दिए इंटरव्यू में भारत और रूस के बीच व्यापार को लेकर टिप्पणी की थी.
मिलर ने कहा था, "लोग यह जानकर चौंक जाएँगे कि रूस से तेल ख़रीदने में भारत लगभग चीन के बराबर है. यह चौंकाने वाली बात है. भारत ख़ुद को हमारा सबसे क़रीबी दोस्त बताता है, लेकिन हमारे प्रोडक्ट नहीं ख़रीदता. भारत इमिग्रेशन में गड़बड़ी करता है. यह अमेरिकी कामगारों के लिए बहुत ख़तरनाक है और रूसी तेल भी ख़रीदता है, जो स्वीकार्य नहीं है. राष्ट्रपति ट्रंप भारत से अच्छे रिश्ते चाहते हैं, लेकिन हमें सच्चाई समझनी होगी."

भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में ट्रंप की आलोचना को ख़ारिज करते हुए कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ ख़ुद रूस के साथ व्यापार जारी रखे हुए हैं.
पिछले साल अमेरिका ने कड़े प्रतिबंधों के बावजूद रूस के साथ अनुमानित 3.5 अरब डॉलर का 'गुड्स ट्रेड' किया था.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद अमेरिका और यूरोपीय संघ भारत को रूस से तेल ख़रीदने के लिए निशाना बना रहे हैं.
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, "वास्तव में भारत ने रूस से तेल इसलिए आयात शुरू किया, क्योंकि संघर्ष के बाद पारंपरिक सप्लाई यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी. उस समय अमेरिका ने ख़ुद भारत को ऐसे आयात के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि दुनिया के तेल बाज़ार की स्थिरता बनी रह सके."
"भारत अपने उपभोक्ताओं के लिए सस्ती और स्थिर ऊर्जा मुहैया कराने के लिए आयात करता है. यह वैश्विक बाज़ार के हालात की मजबूरी है. जो देश भारत की आलोचना कर रहे हैं, वे ख़ुद रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं. भारत की तरह उनका यह व्यापार उनके देश के लिए कोई मजबूरी भी नहीं है."
भारत ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था की तरह भारत अपने राष्ट्रीय हित और आर्थिक सुरक्षा के लिए सभी ज़रूरी क़दम उठाएगा.
ट्रंप ने जब टैरिफ़ बढ़ाने की चेतावनी दी, उस रात भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर नई दिल्ली में बिम्सटेक के संगीत महोत्सव 'सप्तसुर' में हिस्सा ले रहे थे.
इस दौरान अपने भाषण में जयशंकर ने कहा, "हम जटिल और अनिश्चित समय में जी रहे हैं. हमारी सामूहिक इच्छा एक न्यायपूर्ण वैश्विक व्यवस्था देखने की है, न कि कुछ देशों के दबदबे वाली. इस कोशिश को अक्सर राजनीतिक या आर्थिक संतुलन के रूप में देखा जाता है. परंपराएँ ख़ास मायने रखती हैं क्योंकि आख़िरकार वे हमारी पहचान तय करती हैं."
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भारत के सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि ट्रंप से निपटना भारत के लिए चुनौती बन गया है.
ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर लिखा, "अपनी आक्रामक टैरिफ़ नीतियों और नियमों के प्रति अनदेखी के साथ, ट्रंप भौगोलिक राजनीतिक माहौल में अव्यवस्था पैदा करने वाले साबित हो रहे हैं. उनसे निपटना किसी भी देश के लिए चुनौती है- ख़ासकर जोखिम से बचने वाले भारत के लिए. उनकी ताज़ा धमकी ने भारत को रूस के साथ व्यापार को लेकर पश्चिमी देशों की पाखंड वाली नीति पर सवाल उठाने को मजबूर किया है."
वह लिखते हैं, "ध्यान देने वाली बात यह है कि पश्चिमी देश भारत की रूस से तेल ख़रीदने के लिए आलोचना करते हैं, जबकि वे ख़ुद अपने व्यापार से रूस को कहीं ज़्यादा पैसा भेजते हैं. यह अजीब बात है, क्योंकि पश्चिमी गुट यूक्रेन में रूस के ख़िलाफ़ प्रॉक्सी वॉर लड़ रहे हैं."
अजय श्रीवास्तव दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के प्रमुख हैं. वह कहते हैं कि रूस के साथ भारत के तेल व्यापार को लेकर ट्रंप के दावे कई कारणों से भ्रामक हैं.
अजय श्रीवास्तव ने बीबीसी को बताया कि यह व्यापार पारदर्शी रहा है और अमेरिका को इसकी पूरी जानकारी रही है.
अजय श्रीवास्तव ने कहा, "भारत ने पश्चिमी प्रतिबंधों से आपूर्ति बाधित होने के बाद वैश्विक बाज़ार को स्थिर करने के लिए तेल ख़रीद में इज़ाफ़ा किया, जिससे वैश्विक तेल की क़ीमतों में उछाल रुकने में मदद मिली. भारत की तेल रिफ़ाइनरियाँ- चाहे सार्वजनिक हों या निजी, यह तय करती हैं कि कच्चा तेल कहाँ से ख़रीदा जाए. वे क़ीमत, आपूर्ति की सुरक्षा और निर्यात नियम के आधार पर फ़ैसला लेती हैं. ये रिफ़ाइनरियाँ स्वतंत्र रूप से काम करती हैं और रूस या किसी अन्य देश से तेल ख़रीदने के लिए सरकार की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं होती."
इस बीच भारत में अमेरिका के राजदूत रहे एरिक गार्सेटी का एक पुराना बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
इस बयान में एरिक गार्सेटी कहते हैं, "भारत ने रूसी तेल इसलिए ख़रीदा, क्योंकि अमेरिका चाहता था कि भारत तय किए गए 'प्राइस कैप' पर तेल ख़रीदे. यह कोई उल्लंघन नहीं था. अमेरिका नहीं चाहता था कि तेल की क़ीमत बढ़े और उन्होंने ऐसा किया."
एरिक गार्सेटी ने यह बयान मई, 2024 में एक के दौरान दिया था.
कबीर तनेजा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ओआरएफ़) में स्ट्रैटिजिक स्टडीज़ के डिप्टी डायरेक्टर हैं.
कबीर तनेजा का मानना है, "यह दिलचस्प है कि अमेरिका के टैरिफ़ हमले तुर्की, यूएई, सऊदी अरब और क़तर को प्रभावित नहीं कर रहे, जबकि ये सभी रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं. ट्रंप शायद भारत को इसलिए निशाना बना रहे हैं, क्योंकि भारत ने उनके पाकिस्तान के साथ युद्धविराम कराने के दावे से असहमति जताई है."
ओआरएफ़ के सीनियर फ़ेलो सुशांत सरीन ट्रंप की इस धमकी को भारत-अमेरिका संबंधों के बीच भरोसा कम होने के रूप में देखते हैं.
उन्होंने एक्स पर लिखा, "भारत ने यूरोपीय संघ और अमेरिका के रूस के साथ व्यापार का ज़िक्र किया, लेकिन चीन के रूसी तेल ख़रीदने और ट्रंप के साथ चीन के रुख़ का ज़िक्र नहीं किया. अमेरिका ने भारत का भरोसा खो दिया है. भले ही ट्रंप के ग़ुस्से में लगाए गए टैरिफ़ खत्म हो जाएँ, लेकिन अब भारत में अमेरिका पर कौन भरोसा करेगा?."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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