
'अल्लाह करे कि अगली दफ़ा जब भारत और पाकिस्तान का मैच हो तो अलग-अलग ग्राउंड पर न हो'
पाकिस्तानी चैनल एआरवाई में एक पैनल डिस्कशन के दौरान क्रिकेट जर्नलिस्ट शाहिद हसन की ये टिप्पणी बताती है कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मुक़ाबलों में तनाव पैदा करने वाला घटनाक्रम कहां से कहां पहुँच गया है.
पहले 'नो हैंडशेक', मैदान पर भड़काऊ इशारे, आक्रामक बयान, टॉस के लिए दो-दो प्रेजेंटर का मौजूद रहना और फिर विजेता टीम का ट्रॉफी लेने से इनकार.
दुबई में खेले गए टी20 एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए मुक़ाबलों में ये सब कुछ हुआ. बेहद रोमांचक फ़ाइनल मुक़ाबले में भारत ने क्रिकेट के खेल में अपनी श्रेष्ठता साबित की और चैंपियन बनी, लेकिन एक बार फिर 'खेल में राजनीति' हावी होती दिखी.
सूर्य कुमार यादव के नेतृत्व में खेल रही टीम इंडिया ने तकरीबन एक घंटे देरी से शुरू हुई प्रेजेंटेशन सेरेमनी में एशिया कप ट्रॉफी लेने से इनकार कर दिया. इनकार की वजह ये रही कि ट्रॉफी एशियन क्रिकेट काउंसिल के प्रेसिडेंट मोहसिन नक़वी को देनी थी. मोहसिन नक़वी पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के चेयरमैन हैं और पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री भी हैं.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के सचिव देवजीत सैकिया ने एएनआई से कहा, "हमने तय किया है कि एसीसी चेयरमैन से ट्रॉफी नहीं लेंगे, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि ये जेंटलमैन (नक़वी) मेडल्स के साथ ट्रॉफी भी अपने साथ ले जाएं. ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और हम उम्मीद करते हैं कि ट्रॉफी और मेडल्स जितनी जल्दी संभव हो भारत को लौटाए जाएंगे."
सैकिया ने कहा, "नवंबर में दुबई में आईसीसी कॉन्फ्रेंस होगी. एसीसी चेयरपर्सन ने जो किया है उसके ख़िलाफ़ हम आईसीसी कॉन्फ्रेंस में गंभीर और तीखा प्रतिरोध व्यक्त करेंगे.
फ़ाइनल मुक़ाबला दुबई के स्थानीय समय के मुताबिक रात साढ़े 10 बजे खत्म हो गया था, लेकिन प्रेजेंटेशन सेरेमनी के लिए लोगों को आधी रात तक इंतज़ार करना पड़ा. शुरुआत में ये स्पष्ट नहीं था कि आख़िर देरी क्यों हो रही है, हालाँकि अटकलें लगाई जा रही थी कि भारत नक़वी के हाथों ट्रॉफी नहीं लेना चाहता.
शनिवार को एसीसी की वेबसाइट पर जारी बयान में बताया गया था कि नक़वी विजेता टीम को अपने हाथों से ट्रॉफी देना चाहते हैं.
जैसे ही प्रेजेंटेशन सेरेमनी शुरू हुई, कुलदीप यादव, अभिषेक शर्मा और तिलक वर्मा ने स्टेज पर अपने-अपने अवॉर्ड लिए. पाकिस्तान के कप्तान सलमान आग़ा ने उपविजेता का चेक लिया और इसके बाद सेरेमनी ख़त्म हो गई.
ब्रॉडकास्टर प्रेजेंटर साइमन डूल ने सेरेमनी में घोषणा की, "एशियन क्रिकेट काउंसिल ने मुझे बताया है कि भारतीय टीम आज रात अपने अवॉर्ड्स नहीं ले रही है... इसके साथ ही पोस्ट मैच प्रेजेंटेशन ख़त्म होता है."
- इन वजहों से एशिया कप फ़ाइनल में पाकिस्तान को हल्के में नहीं ले सकता भारत
- एशिया कप फ़ाइनल में टीम की परफॉर्मेंस देख भड़के पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर क्या कह रहे हैं
- एशिया कप में मोहसिन नक़वी से ट्रॉफ़ी न लेने का फ़ैसला किसका था, मैच के बाद क्या-क्या हुआ?

कभी क्रिकेट को भारत और पाकिस्तान के बीच 'कूटनीतिक मंच' माना जाता था.लेकिन नक़वी के हाथों ट्रॉफी लेने से भारतीय क्रिकेटरों के इनकार के साथ ही दोनों पड़ोसियों के क्रिकेट रिश्ते निचले स्तर पर पहुँच गए हैं.
भारत की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर टीम को बधाई दी. उन्होंने अपने पोस्ट में 'ऑपरेशन सिंदूर' का ज़िक्र किया.
प्रधानमंत्री ने लिखा, "खेल के मैदान पर ऑपरेशन सिंदूर. नतीजा वही है - भारत जीतता है. हमारे क्रिकेट खिलाड़ियों को बधाई."
भारत ने पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई को 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया था.
प्रधानमंत्री के इस पोस्ट पर एसीसी अध्यक्ष मोहसिन नक़वी ने भी एक्स पर प्रतिक्रिया दी.
उन्होंने मोदी के पोस्ट का जवाब देते हुए लिखा, "अगर युद्ध आपके गर्व का पैमाना है, तो इतिहास पहले ही भारत की पाकिस्तान के हाथों मिली शर्मनाक हार को दर्ज कर चुका है और कोई क्रिकेट मुक़ाबला उस सच को नहीं बदल सकता. युद्ध को खेल में घसीटना निराशा और खेल भावना का अपमान है."
पीएम मोदी के बयान पर राजनीतिक दलों के अलावा सोशल मीडिया में आम लोगों ने भी प्रतिक्रियाएं दी हैं.
शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने लिखा, "15 दिन पहले सिरीज़ की शुरुआत में पाकिस्तान के मंत्री मोहसिन नक़वी के साथ हाथ भी मिलाया ,फोटो खिंचवाया. अभी ये लोग देश को नौटंकी दिखा रहे है.इतनी राष्ट्रभक्ति आपके खून में थी तो पाकिस्तान के साथ मैदान में नहीं उतरना था, ऊपर से नीचे तक ड्रामा ही ड्रामा."
जनता दल यूनाइटेड के नेता केसी त्यागी ने संजय राउत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "संजय राउत भी उसी जाल में फंसते जा रहे हैं जो कांग्रेस पार्टी बुनती है. पीसीबी अध्यक्ष से पुरस्कार न लेना ये भारतीय गौरव और सम्मान का प्रतीक है."
सोशल मीडिया पर एक यूजर आशीष गुप्ता ने लिखा, "क्रिकेट की तुलना ऑपरेशन सिंदूर से करना, जिसमें हमारे सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया, बेहद अपमानजनक है. ये न केवल असंवेदनशीलता है बल्कि एक सियासी नारे के लिए उनके बलिदान को कम आंकना है."
गर्वित सेठी ने लिखा, "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते लेकिन क्रिकेट खेला जा सकता है. बहुत अच्छे मोदी जी."
वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर लिखा, "शानदार जीत, हमारे खिलाड़ियों की ज़बरदस्त ऊर्जा ने एक बार फिर विरोधियों को ध्वस्त कर दिया."
'राइवलरी' क्या अब नहीं रही?भारत और पाकिस्तान के बीच एशिया कप में सुपर 4 मुक़ाबले के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में टीम इंडिया के कप्तान सूर्यकुमार यादव ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच अब कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं बची है और इसके बारे में अब सवाल करना भी बंद कर देना चाहिए.
उन्होंने कहा, "आपको भारत और पाकिस्तान के बीच प्रतिद्वंद्विता के बारे में सवाल करने ही बंद कर देने चाहिए. क्योंकि मेरे मुताबिक़ अगर दो टीमें 15-20 मैच खेलती हैं, तो उसमें कोई टीम कोई टीम 7-8 से आगे चल रही है तो उसे अच्छा क्रिकेट खेलना कह सकते हैं. लेकिन 13-0 या 10-1 (मुझे पता नहीं क्या आँकड़े हैं) हो तो फिर ये राइवलरी नहीं है."
लेकिन क्या वाक़ई राइवलरी नहीं है? कम से कम एशिया कप का फ़ाइनल देखने के बाद तो ऐसा नहीं लगा.
दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम दर्शकों से भरा था. जब-जब पाकिस्तान या भारत की पारी के दौरान छक्का या चौका लगता या फिर कोई विकेट गिरता तो विपक्षी टीम के ड्रेसिंग रूम में निराशा ने दिखाया कि 'प्रतिद्वंद्विता' कायम है. 'राइवलरी' है क्योंकि टी20 इंटरनेशनल की रैंकिंग में भारत से पाकिस्तान बेहद पीछे है, उसके बावजूद 148 रन का पीछा करते हुए दुनिया की नंबर एक टीम इंडिया कई मौकों पर दबाव में नज़र आई.
ये सही है कि भारत ने ग्रुप मैच और सुपर-4 मुक़ाबले में पाकिस्तान को आसानी से हरा दिया था, लेकिन पाकिस्तान ने फ़ाइनल में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए ज़ोरदार शुरुआत की और फिर गेंदबाज़ी में भी भारत को शुरुआती झटके देकर भारतीय प्रशंसकों को कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन ख़ामोश किया. ये देखकर लगा कि भारत और पाकिस्तान के बीच अब भी वही 'राइवलरी' क़ायम है.
दुबई में क्या बदला?ऐसा नहीं है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों की टीमें पहली बार क्रिकेट के मैदान पर थीं. 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच हालात बेहद तनावपूर्ण थे. लेकिन तब भी दोनों देशों के बीच क्रिकेट खेला गया.
पहले वर्ल्ड कप और फिर इसके तुरंत बाद ऑस्ट्रेलिया में हुई ट्राई सिरीज़ में. बेशक प्रदर्शन तब भी हुए थे, लेकिन तब सियासत पर खेल भारी पड़ा था. खिलाड़ियों ने हाथ भी मिलाए थे, हज़ारों की संख्या में लोग मैच देखने स्टेडियम भी पहुँचे थे और क्रिकेट प्रशासक पर्दे के पीछे ही रहे थे.
लेकिन दुबई में ये सब पीछे छूट गया. यहां खिलाड़ियों के हर इशारे या उनकी ख़ामोशी के सियासी मायने निकाले गए. इन्हें राष्ट्र के सम्मान या राष्ट्र के अपमान के तौर पर देखा गया.
दोनों टीमों के खिलाड़ी गेंद-बल्ले में तो ज़ोर आज़माइश कर ही रहे थे, इशारों में एक-दूसरे को जवाब देने में भी पीछे नहीं रहे. हारिस रऊफ़ को हवाई जहाज़ गिरने का इशारा करते देखा गया तो फ़ाइनल में जसप्रीत बुमराह ने भी रऊफ़ को आउट करने के बाद कुछ ऐसा ही किया.
ख़ास बात ये रही कि दोनों देशों का मीडिया भी इसमें उलझता दिखा. भारतीय फ़ैंस ने जहां रऊफ़ के 'इशारे' को ग़लत बताया वहीं पाकिस्तानी फ़ैंस ने उन्हें शाबाशी दी रहे थे. लेकिन बाद में जिन लोगों को रऊफ़ का इशारा ग़लत लगा वही बुमराह के इशारे की तारीफ़ करते दिखे.
सिर्फ़ क्रिकेट ही क्यों?जैसे ही क्रिकेट की दुनिया से बाहर झांककर देखते हैं तो ये दोहरा मानदंड साफ़ नज़र आता है. मई में 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद जून 2025 में भारत और पाकिस्तान की टीमें एशियन स्क्वैश डबल्स चैंपियनशिप के फ़ाइनल में आमने-सामने थीं.
सितंबर में दोनों देशों की अंडर-17 फ़ुटबॉल टीमों ने सैफ़ चैंपियनशिप में एक-दूसरे का मुक़ाबला किया. ये प्रतियोगिताएं बिना किसी शोर-हंगामे के खेली गईं. किसी सियासी दल ने न तो कोई बयान दिया और ना ही बहिष्कार का आह्वान किया. सोशल मीडिया भी तकरीबन ख़ामोश ही रहा. किसी ने न तो मीम्स डाले और न ही बैन की मांग की गई. ज़ाहिर है स्क्वैश और फुटबॉल वैसी पॉलिटिकल माइलेज नहीं देता जैसा कि क्रिकेट में मिलता है.
सितंबर में ही वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जेवलिन थ्रो इवेंट का फाइनल हुआ. इसमें भारत के नीरज चोपड़ा, सचिन यादव ने हिस्सा लिया जबकि पाकिस्तान के अरशद नदीम भी एक्शन में थे.
खेल पत्रकार हेमंत रस्तोगी कहते हैं कि एक अच्छा ख़ासा टूर्नामेंट अपने प्रदर्शन से ज़्यादा विवादों के कारण चर्चाओं में रहा. हेमंत कहते हैं, "एशिया कप का फ़ाइनल दबाव में खेली गई तिलक वर्मा की शानदार पारी के लिए लोगों की याद में शामिल होना चाहिए, लेकिन शायद ये प्रेजेंटेशन सेरेमनी में देरी, इशारों और बयानों के लिए ज़्यादा याद किया जाएगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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