सोचिए, आपने हेल्थ इंश्योरेंस का क्लेम फाइल किया। पूरी ईमानदारी से अपनी बीमारी की जानकारी दी, इलाज के सारे डॉक्यूमेंट जमा कर दिए। लेकिन दावा खारिज हो गया, वजह? बीमा कंपनी ने आपके Google Timeline का डेटा देखा और कहा कि जिस समय आप हास्पिटल में भर्ती थे, आपकी लोकेशन वहां की नहीं थी।
यह मामला वल्लभ मोटका का है, जिनका दावा सिर्फ इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि कंपनी को उनके बयान और मोबाइल की टाइमलाइन में फर्क मिला। बीमा कंपनी ने साफ तौर पर कहा- 'Google Timeline' के मुताबिक मरीज हॉस्पिटल में मौजूद नहीं था, जबकि मोबाइल उस वक्त मरीज के पास ही था।'
अब सवाल ये उठता है- क्या बीमा कंपनियों को हमारी डिजिटल प्राइवेट जानकारी, जैसे कि Google Timeline तक पहुंचने का अधिकार है? क्या ऐसा करना कानूनन सही है या ये हमारी निजता का सीधा उल्लंघन है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए ET ने बीमा और कानून के जानकारों से बात की।
क्या हुआ था?
वल्लभ मोटका ने Go Digit General Insurance से ₹6.5 लाख की हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी, जो 21 फरवरी 2025 को खत्म होने वाली थी। सितंबर 2024 में उन्हें वायरल न्यूमोनिया हो गया और वे अर्हम हॉस्पिटल, सिलवासा में 11 सितंबर को भर्ती हुए। 14 सितंबर को उनका इलाज पूरा होकर उन्हें हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई।
इलाज के बाद जब उन्होंने ₹48,251 का दावा बीमा कंपनी को दिया, तो कंपनी ने उनका क्लेम खारिज कर दिया। इसकी वजह यह थी कि कंपनी ने उनका Google Timeline देखा और पाया कि हॉस्पिटल की लोकेशन उस समय उनकी मोबाइल की लोकेशन पर नहीं थी। यानी, जिस दिन वे हॉस्पिटल में थे, उनके फोन की लोकेशन हॉस्पिटल के पास नहीं दिखी। इस वजह से कंपनी ने कहा कि उनका दावा सही नहीं है। लेकिन वल्लभ ने हार नहीं मानी और उन्होंने यह मामला कंज्यूमर फोरम में ले जाकर शिकायत की। वहां कोर्ट ने वल्लभ का पक्ष लिया और बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वे उनका पूरा ₹48,251 का दावा भरें।
Go Digit Insurance का इस मामले में क्या है रुख?
Go Digit Insurance ने कहा कि उन्होंने वल्लभ मोटका से उनकी सहमति लेकर ही Google Timeline की जानकारी ली थी। कंपनी ने ये भी बताया कि क्लेम सिर्फ Google Timeline के आधार पर नहीं रोका गया था। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने डॉक्यूमेंट्स की जांच की तो कुछ गलतियां मिलीं, जैसे-
क्या IRDAI पॉलिसीहोल्जर्स की डिजिटल जानकारी एक्सेस करने की अनुमति देता है?
Digit Insurance का कहना है कि उन्होंने वल्लभ मोटका की Google Timeline की जानकारी उनकी अनुमति लेकर ही हासिल की थी। लेकिन वल्लभ के वकील का कहना है कि कई बार बीमा कंपनियां मरीजों को फंसाकर उनके फोन की लोकेशन हिस्ट्री देख लेती हैं, जो सही नहीं है। एक्सपर्ट का मानना है कि बिना पॉलिसीहोल्डर की स्पष्ट और पूरी जानकारी के बीमा कंपनियां उनकी Google लोकेशन हिस्ट्री का इस्तेमाल करके क्लेम को मंजूर या अस्वीकार नहीं कर सकतीं। IRDAI या भारत के कानून में ऐसा कोई नियम नहीं है जो बीमाकर्ताओं को Google Maps की लोकेशन डेटा मांगने या उसे आखिरी सबूत मानने की अनुमति देता हो।
अगर बीमा कंपनियां ऐसा करती हैं तो यह हमारी निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी IRDAI के नियमों में भी क्लेम की जांच के लिए मोबाइल ट्रैकिंग या लोकेशन की बात नहीं है, बल्कि क्लेम की जांच हॉस्पिटल के रिकॉर्ड, डॉक्टर के सर्टिफिकेट जैसे कागजातों के आधार पर होनी चाहिए। इसके साथ ही, किसी भी डिजिटल जानकारी को कानूनी मान्यता तभी मिलती है जब उसकी प्रमाणिकता का प्रमाण मौजूद हो, जो इस मामले में नहीं था। इसलिए फोरम ने कहा कि जब तक Google के अधिकारी कोर्ट में उस डेटा की पुष्टि नहीं करते, तब तक Google Timeline को कोई कानूनी महत्व नहीं दिया जा सकता। इसके अलावा, लोकेशन डेटा के आधार पर क्लेम रिजेक्ट करने के लिए बीमा कंपनियों को पॉलिसी में साफ-साफ अनुमति लेनी चाहिए, पॉलिसीहोल्डर से पूरी जानकारी लेकर सहमति लेनी चाहिए और यह साबित करना चाहिए कि इस डेटा में कोई धोखाधड़ी हुआ है।
यह मामला वल्लभ मोटका का है, जिनका दावा सिर्फ इसलिए रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि कंपनी को उनके बयान और मोबाइल की टाइमलाइन में फर्क मिला। बीमा कंपनी ने साफ तौर पर कहा- 'Google Timeline' के मुताबिक मरीज हॉस्पिटल में मौजूद नहीं था, जबकि मोबाइल उस वक्त मरीज के पास ही था।'
अब सवाल ये उठता है- क्या बीमा कंपनियों को हमारी डिजिटल प्राइवेट जानकारी, जैसे कि Google Timeline तक पहुंचने का अधिकार है? क्या ऐसा करना कानूनन सही है या ये हमारी निजता का सीधा उल्लंघन है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए ET ने बीमा और कानून के जानकारों से बात की।
क्या हुआ था?
वल्लभ मोटका ने Go Digit General Insurance से ₹6.5 लाख की हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी, जो 21 फरवरी 2025 को खत्म होने वाली थी। सितंबर 2024 में उन्हें वायरल न्यूमोनिया हो गया और वे अर्हम हॉस्पिटल, सिलवासा में 11 सितंबर को भर्ती हुए। 14 सितंबर को उनका इलाज पूरा होकर उन्हें हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई।
इलाज के बाद जब उन्होंने ₹48,251 का दावा बीमा कंपनी को दिया, तो कंपनी ने उनका क्लेम खारिज कर दिया। इसकी वजह यह थी कि कंपनी ने उनका Google Timeline देखा और पाया कि हॉस्पिटल की लोकेशन उस समय उनकी मोबाइल की लोकेशन पर नहीं थी। यानी, जिस दिन वे हॉस्पिटल में थे, उनके फोन की लोकेशन हॉस्पिटल के पास नहीं दिखी। इस वजह से कंपनी ने कहा कि उनका दावा सही नहीं है। लेकिन वल्लभ ने हार नहीं मानी और उन्होंने यह मामला कंज्यूमर फोरम में ले जाकर शिकायत की। वहां कोर्ट ने वल्लभ का पक्ष लिया और बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वे उनका पूरा ₹48,251 का दावा भरें।
Go Digit Insurance का इस मामले में क्या है रुख?
Go Digit Insurance ने कहा कि उन्होंने वल्लभ मोटका से उनकी सहमति लेकर ही Google Timeline की जानकारी ली थी। कंपनी ने ये भी बताया कि क्लेम सिर्फ Google Timeline के आधार पर नहीं रोका गया था। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने डॉक्यूमेंट्स की जांच की तो कुछ गलतियां मिलीं, जैसे-
- हॉस्पिटल में भर्ती होने के बीच बीच में ब्रेक था यानी पूरा समय अस्पताल में मौजूद नहीं थे।
- जो बिल और हॉस्पिटल के रिकॉर्ड दिए गए थे, उनमें भी कुछ गलत बातें थीं।
- इलाज के बारे में दी गई जानकारी में भी कुछ बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई बातें थीं।
- Google Timeline में भी कुछ जानकारी मेल नहीं खाती थी।
क्या IRDAI पॉलिसीहोल्जर्स की डिजिटल जानकारी एक्सेस करने की अनुमति देता है?
Digit Insurance का कहना है कि उन्होंने वल्लभ मोटका की Google Timeline की जानकारी उनकी अनुमति लेकर ही हासिल की थी। लेकिन वल्लभ के वकील का कहना है कि कई बार बीमा कंपनियां मरीजों को फंसाकर उनके फोन की लोकेशन हिस्ट्री देख लेती हैं, जो सही नहीं है। एक्सपर्ट का मानना है कि बिना पॉलिसीहोल्डर की स्पष्ट और पूरी जानकारी के बीमा कंपनियां उनकी Google लोकेशन हिस्ट्री का इस्तेमाल करके क्लेम को मंजूर या अस्वीकार नहीं कर सकतीं। IRDAI या भारत के कानून में ऐसा कोई नियम नहीं है जो बीमाकर्ताओं को Google Maps की लोकेशन डेटा मांगने या उसे आखिरी सबूत मानने की अनुमति देता हो।
अगर बीमा कंपनियां ऐसा करती हैं तो यह हमारी निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी IRDAI के नियमों में भी क्लेम की जांच के लिए मोबाइल ट्रैकिंग या लोकेशन की बात नहीं है, बल्कि क्लेम की जांच हॉस्पिटल के रिकॉर्ड, डॉक्टर के सर्टिफिकेट जैसे कागजातों के आधार पर होनी चाहिए। इसके साथ ही, किसी भी डिजिटल जानकारी को कानूनी मान्यता तभी मिलती है जब उसकी प्रमाणिकता का प्रमाण मौजूद हो, जो इस मामले में नहीं था। इसलिए फोरम ने कहा कि जब तक Google के अधिकारी कोर्ट में उस डेटा की पुष्टि नहीं करते, तब तक Google Timeline को कोई कानूनी महत्व नहीं दिया जा सकता। इसके अलावा, लोकेशन डेटा के आधार पर क्लेम रिजेक्ट करने के लिए बीमा कंपनियों को पॉलिसी में साफ-साफ अनुमति लेनी चाहिए, पॉलिसीहोल्डर से पूरी जानकारी लेकर सहमति लेनी चाहिए और यह साबित करना चाहिए कि इस डेटा में कोई धोखाधड़ी हुआ है।
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