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आंखों की रोशनी को 15 मिनट में वापस लाने की नई तकनीक

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आंखों की रोशनी में सुधार की नई उम्मीद

आंखों की रोशनी 15 मिनट में वापस आ सकती है.
Image Credit source: Getty Images

उम्र बढ़ने के साथ आंखों में सूखापन आ जाता है, जिससे ड्राई आई की समस्या उत्पन्न होती है। दरअसल, आंखों में एक रेटिना पिगमेंट होता है, जो समय के साथ क्षतिग्रस्त होने लगता है। इस स्थिति के लिए अब तक कोई स्थायी उपचार उपलब्ध नहीं था। एम्स के आर पी सेंटर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजपाल ने बताया कि इस बीमारी का इलाज करने के लिए केवल एक या दो दवाएं हैं, जिनका प्रभाव सीमित है। लेकिन अब एक नई तकनीक के माध्यम से इलाज संभव हो गया है। डॉ. राजपाल ने कहा कि हमने एम्स आरपी सेंटर में पहली बार स्टेम सेल के जरिए उपचार किया है, जिसका परिणाम काफी सकारात्मक रहा है.

उपचार की प्रक्रिया

डॉ. राजपाल ने बताया कि हम स्टेम सेल को रेटिना में सीधे इंजेक्ट करते हैं, जहां इसकी कमी होती है। इससे सेल्स फिर से विकसित होते हैं। इस प्रक्रिया में 2 से 3 महीने का समय लगता है, और इस दौरान मरीजों की आंखों की रोशनी में सुधार होता है। विशेष रूप से, जिन मरीजों को ड्राई आई के कारण अंधापन हो जाता है, उनके लिए यह तकनीक बहुत प्रभावी साबित हो सकती है.

स्टेम सेल का स्रोत

डॉ. राजपाल ने बताया कि यह स्टेम सेल पूरी तरह से देसी प्रणाली पर आधारित है। वर्तमान में, एम्स दिल्ली में यह स्टेम सेल बेंगलुरु से प्राप्त किया जा रहा है, जहां इसे विकसित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हमने स्टेम सेल पर काफी शोध किया है.

सिंथेटिक कॉर्निया का महत्व

एम्स में आरपी सेंटर की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. नम्रता साह ने बताया कि कॉर्निया की कमी को दूर करने के लिए सिंथेटिक कॉर्निया पर काम चल रहा है। अब तक 72 मरीजों को सिंथेटिक कॉर्निया लगाया जा चुका है, और इसके परिणाम बहुत अच्छे आए हैं। डॉ. नम्रता ने कहा कि सिंथेटिक कॉर्निया सामान्य कॉर्निया के समान होता है, और हमारे अध्ययन में दोनों के परिणाम लगभग समान रहे हैं. विशेष रूप से, कैरटॉकोनस के मरीजों में सिंथेटिक कॉर्निया का इंटीग्रेशन भी बहुत अच्छा होता है.

ड्राई आई सिंड्रोम किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह उम्र बढ़ने के साथ अधिक सामान्य हो जाता है। लगभग एक तिहाई वृद्ध लोगों को सूखी आंखों की समस्या होती है, और युवा व्यक्तियों में यह लगभग 10 में से 1 को प्रभावित करता है. महिलाएं इस समस्या से पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं.


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