एक गाँव में एक जमींदार ठाकुर लंबे समय से बीमार थे। उन्होंने इलाज के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन कोई भी उपाय कारगर नहीं हुआ।
उनकी बीमारी से राहत पाने की कोई उम्मीद नहीं थी।
एक दिन, गाँव में एक संत आए। जमींदार ने उनके दर्शन किए और दुखी मन से कहा, 'महात्मा जी, मैं इस गाँव का जमींदार हूँ, मेरे पास सैकड़ों बीघा जमीन है, फिर भी मुझे एक गंभीर बीमारी है जो ठीक नहीं हो रही।'
महात्मा जी ने पूछा, 'आपको क्या समस्या है?'
'मुझे मल त्याग करते समय अत्यधिक खून आता है और जलन होती है, जो सहन नहीं होती। ऐसा लगता है कि मैं मर जाऊंगा। कृपया मेरी मदद करें।'
महात्मा जी ने आँखें बंद कर लीं और कुछ समय बाद बोले, 'क्या आप बुरा मानेंगे अगर मैं एक सवाल पूछूं?'
'नहीं महाराज, पूछिए।'
'क्या आपने कभी किसी का दिल इतना दुखाया है कि उसने आपको बद्दुआ दी हो, जिसका फल आप आज भोग रहे हैं?'
'नहीं बाबा, मुझे याद नहीं आता कि मैंने किसी का दिल दुखाया हो।'
'क्या आपने कभी किसी का हक छीना है, या किसी को नुकसान पहुँचाया है?'
महात्मा जी की बात सुनकर जमींदार चुप हो गए और शर्मिंदा होकर बोले, 'मेरी एक विधवा भाभी है, जो अपने हिस्से की जमीन मांगती थी। मैंने उसे कुछ नहीं दिया क्योंकि मुझे लगा कि वह इसे अपने भाइयों को दे देगी।'
महात्मा जी ने कहा, 'आप उसे हर महीने सौ रुपये भेजना शुरू करें।' यह उस समय की बात है जब सौ रुपये में पूरा परिवार चल जाता था।
जमींदार ने कुछ रुपये भेजना शुरू किया। कुछ हफ्तों बाद, वह संत के पास आया और कहा, 'मैं 75% ठीक हूँ!'
महात्मा जी ने पूछा, 'आप कितने रुपये भेजते हैं?'
'मैं हर महीने 75 रुपये भेजता हूँ।'
महात्मा जी ने कहा, 'इसीलिए आपकी बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं हुई। उसे पूरा हक दें और उसे इज्जत से बुलाकर उसकी जमीन और पैसे उसे दें।'
जमींदार को पछतावा हुआ। उसने अपनी भाभी और उसके भाइयों को बुलाया और गाँव के सामने उन्हें उनका हक दिया और माफी मांगी।
उसकी भाभी ने उसे माफ कर दिया और आशीर्वाद दिया।
जमींदार की बीमारी जल्द ही ठीक हो गई।
अगर आप भी किसी गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं, तो सोचें कि क्या आपने कभी किसी का हक छीना है या किसी को दुख पहुँचाया है।
याद रखें, परमात्मा की लाठी बिना आवाज़ के होती है।
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