प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत बीजेपी सरकार को संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा से एक बड़ी राजनीतिक बढ़त मिली है. आगामी 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले बीजेपी ने राज्यसभा में 100 का आंकड़ा फिर से पार कर लिया है, जो पार्टी के लिए सियासी तौर पर बेहद अहम मानी जा रही है.
बीजेपी की ताकत अब 102 सांसदों तक पहुंच गई है, जो कि अप्रैल 2022 के बाद पहली बार हुआ है. यह बढ़त तीन नामित सदस्यों के बीजेपी में शामिल होने से मिली है- शीर्ष वकील उज्ज्वल निकम, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और केरल के समाजसेवी सी सदानंदन मास्टर…
बीजेपी ने दूसरी बार पार किया 100 का आंकड़ा
राज्यसभा की मौजूदा ताकत 240 सांसदों की है, जिसमें 12 नामित सदस्य भी शामिल हैं और 5 सीटें खाली हैं. ऐसे में बीजेपी के पास अकेले 102 सांसद हैं, जबकि एनडीए गठबंधन की कुल संख्या बढ़कर 134 हो गई है, जो बहुमत के लिए जरूरी 121 के आंकड़े से कहीं ज्यादा है.
31 मार्च, 2022 को 13 राज्यसभा सीटों के लिए हुए चुनावों के नतीजे घोषित होने के बाद बीजेपी भारतीय इतिहास में संसद के ऊपरी सदन में 100 से अधिक सांसदों वाली दूसरी पार्टी बन गई थी. तब बीजेपी की संख्या 97 से बढ़कर 101 हो गई थी. कांग्रेस को 1988 और 1990 के बीच यह गौरव प्राप्त था.
कौन हैं ये तीन नए चेहरे?
उज्ज्वल निकम: 26/11 मुंबई आतंकी हमलों में अजमल कसाब को सज़ा दिलवाने वाले स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर. 2016 में पद्मश्री से सम्मानित. 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर उतरे थे, हालांकि हार गए थे.
हर्षवर्धन श्रृंगला: 2020 से 2022 तक भारत के विदेश सचिव रहे. वह G20 समिट 2023 के चीफ कोऑर्डिनेटर भी रहे हैं. अमेरिका और बांग्लादेश में भारत के राजदूत के तौर पर काम कर चुके हैं.
सी सदानंदन मास्टर: केरल के चर्चित समाजसेवी और शिक्षक. 1994 में हिंसा में उनके पैर काट दिए गए थे, आरोप सीपीएम कार्यकर्ताओं पर लगे थे. 2016 में बीजेपी के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ा था.
एक और नामित सदस्य – मीना मेनन
इन तीनों के साथ नामित हुईं राजनीतिक इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन को भी बीजेपी के विचारों के करीब माना जाता है. वे भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) की सदस्य रह चुकी हैं और 2020 में उन्हें भी पद्मश्री से नवाजा गया था.
क्या है इसका मतलब?
राज्यसभा में 102 सांसदों के साथ बीजेपी अब संसद के दोनों सदनों में मजबूत पकड़ रखती है. इसका सीधा असर कानूनों के पारित होने में रफ्तार, नीतियों के लागू होने में सुगमता और राजनीतिक दबदबे में दिखेगा. 2024 के बाद पीएम मोदी की तीसरी पारी में यह संसदीय मजबूती उनके लिए ‘नीतिगत सुधारों’ को तेज़ी से लागू करने का रास्ता खोलती है.
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