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काजोल की पौराणिक-हॉरर फिल्म 'मां': आस्था और बुराई का रोंगटे खड़े करने वाला संगम

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रेटिंग : (4 स्टार),

कलाकार : काजोल, रोनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता, खेरिन शर्मा.

निर्देशक : विशाल फुरिया

‘शैतान’ के निर्माताओं की अपनी तरह की पहली पौराणिक-हॉरर मूवी ‘मां’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. यह एक अनोखी हॉरर फिल्म है जिसमें डर, पौराणिक कथाओं और भावना का जबरदस्त मेल देखने को मिलता है. इसे विशाल फुरिया ने निर्देशित किया है और काजोल ने इसमें अपने करियर का दमदार अभिनय किया है. यह फिल्म भारतीय सिनेमा को एक नए और साहसिक जोन में ले जाती है.

फिल्म की कहानी आधुनिक समय में घटती है, जहां प्राचीन शक्तियां फिर से सामने आती हैं. इसमें अंबिका नाम की मां की कहानी है, एक ऐसी मां जिसका अटूट प्रेम उसके बच्चे को खतरे में डालने पर दैवीय क्रोध में बदल जाता है. काजोल ने अंबिका का किरदार बहुत जबरदस्त ढंग से निभाया है. वह एक तरफ मां का प्यार दिखाती हैं, तो दूसरी तरफ गुस्से में राक्षसों का विनाश करने वाली देवी जैसी लगती हैं.

‘मां’ की खास बात यह है कि इसमें डर का माहौल बनाने के लिए सस्ते डरावने दृश्यों (जैसे अचानक डराने वाले सीन) का सहारा नहीं लिया गया. बल्कि यह पौराणिक कथाओं को डरावनी कहानियों के साथ सहजता से जोड़ती है. फिल्म में काली और रक्तबीज की पौराणिक कथा को नए अंदाज में पेश किया गया है. इसमें आस्था और बुराई के बीच चलने वाली लड़ाई को दिखाया गया है. फिल्म में भावनात्मक जुड़ाव के साथ-साथ सुपरनेचुरल रोमांच भी भरपूर है.

फिल्म के विजुअल्स और साउंडस्केप भी बहुत शानदार है. शानदार वीएफएक्स और साउंड का प्रभाव दर्शकों को कहानी में पूरी तरह डुबो देता है. इमर्सिव साउंड डिजाइन फिल्म का पौराणिक स्केल बढ़ाता है. फिल्म के सबसे बेहतरीन पल में एक “काली शक्ति” गाना है, जिससे दिग्गज गायिका उषा उत्थुप ने हिंदी प्लेबैक गायन में वापसी की है. यह गाना दमदार है जो आध्यात्मिक और सिनेमाई स्तर पर गहरा प्रभाव छोड़ता है. इसे बड़े पर्दे पर देखना एक बेहतरीन अनुभव है.

साईविन क्वाड्रस की लिखी कहानी मजबूत और पकड़ बनाए रखने वाली है. विशाल फुरिया का निर्देशन इस फिल्म को केवल दिखावे तक सीमित नहीं रहने देता, बल्कि इसे दिल को छू लेने वाला अनुभव बनाता है. जब आपको लगता है कि कहानी खत्म हो गई है, तो फिल्म में एक बड़ा ट्विस्ट भी है, जो अंत में दर्शकों को चौंका देता है और आगे देखने की इच्छा पैदा करता है.

कुल मिलाकर ‘मां’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि आस्था, डर और भावनाओं का जबरदस्त संगम है. हॉरर और इमोशन का यह दुर्लभ मिश्रण भारतीय सिनेमा के लिए एक नया बेंचमार्क स्थापित करता है.

एएस/

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