नई दिल्ली, 26 जून . लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की चुनाव आयोग से डिजिटल मतदाता सूची की मांग को लेकर लगातार दिए जा रहे बयानों को संवैधानिक विशेषज्ञों और सूत्रों ने कानूनी रूप से अव्यावहारिक करार दिया है.
चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि यह मुद्दा पहले ही सुप्रीम कोर्ट में उठाया जा चुका है और शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में चुनाव आयोग के पक्ष को वैध ठहराया है.
सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा बार-बार इस मांग को दोहराना सिर्फ प्रचार पाने की रणनीति प्रतीत होती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मांग को खारिज कर चुका है.
चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों ने 2018 में कांग्रेस नेता कमलनाथ द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रमुख अंश साझा किए, जिनमें कहा गया, “ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल जिस फॉर्मेट में याचिकाकर्ता को दिया गया, वह चुनाव आयोग के मैनुअल में वर्णित आवश्यकताओं को पूरा करता है.”
चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि यह स्पष्टीकरण राहुल गांधी द्वारा नवंबर में महाराष्ट्र चुनावों को लेकर ‘फिक्स्ड इलेक्शन’ कहे जाने के आरोपों और चुनाव आयोग द्वारा उन्हें संदेह दूर करने के लिए बुलाए गए संवाद के संदर्भ में दिया गया है, जिसमें वे अब तक शामिल नहीं हुए हैं.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह सही है कि राहुल गांधी पिछले सात महीने से मशीन-पठनीय वोटर लिस्ट की मांग कर रहे हैं, लेकिन यह कांग्रेस की कोई नई मांग नहीं है. बल्कि यह पार्टी की पिछले आठ वर्षों से चली आ रही रणनीति का हिस्सा है.”
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की यह ऐतिहासिक मांग वर्तमान कानूनी ढांचे के भीतर वैध नहीं है, और इस विषय को देश का सर्वोच्च न्यायालय पहले ही निपटा चुका है.
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डीएससी/एकेजे
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