नई दिल्ली, 4 जुलाई . नेशनल वर्कहॉलिक्स डे हर साल 5 जुलाई को मनाया जाता है. यह दिन खासतौर पर उन लोगों को समर्पित है, जो हमेशा काम में व्यस्त रहते हैं और शायद ही कभी अपने लिए समय निकाल पाते हैं. सरल भाषा में कहें तो यह उन लोगों की मेहनत और समर्पण को पहचान देता है, जो अपने काम को इतनी प्राथमिकता देते हैं कि अक्सर अपनी निजी जिंदगी को नजरअंदाज कर देते हैं.
नेशनल वर्कहॉलिक्स डे, जरूरत से ज्यादा काम करने वाले लोगों को यह याद दिलाने के लिए है कि उन्हें समय निकालकर अपने जीवन के अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए.
वर्कहॉलिक आमतौर पर लंबी अवधि तक काम करते हैं और अक्सर 40 घंटे के सामान्य कार्यसप्ताह से कहीं अधिक समय तक काम करते हैं. ऐसे लोगों के लिए सप्ताह में 50-60 या उससे भी ज्यादा घंटे काम करना सामान्य बात है. हालांकि, इस तरह की कार्यशैली के गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं, जैसे कि तनाव, थकान, बर्नआउट और वर्क-लाइफ बैलेंस का अभाव.
यह समझना बेहद जरूरी है कि काम के प्रति प्रतिबद्धता और मेहनत से सफलता जरूर मिलती है, लेकिन लगातार ओवरवर्क करने से मानसिक और शारीरिक थकान, स्वास्थ्य समस्याएं और रिश्तों में तनाव आ सकता है. अक्सर होता भी है कि ऐसे लोगों को व्यक्तिगत और भावनात्मक नुकसान का सामना करना पड़ता है.
मसलन, नेशनल वर्कहॉलिक्स डे पर लोगों को यह प्रोत्साहन दिया जाता है कि वे रुकें, अपने काम करने के तरीकों पर विचार करें और जरूरत हो तो कुछ बदलाव करें, ताकि काम और निजी जीवन के बीच बेहतर संतुलन बना सकें.
वर्कहॉलिक होने की अवधारणा मानव इतिहास में लंबे समय से मौजूद रही है. हालांकि नेशनल वर्कहॉलिक्स डे मनाने की शुरुआत को लेकर कोई आधिकारिक तथ्य नहीं हैं, लेकिन माना जाता है कि 16वीं शताब्दी के दौरान इसकी शुरुआत हुई थी. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 16वीं शताब्दी में प्यूरिटन समुदाय ने काम को एक सामाजिक और धार्मिक कर्तव्य के तौर पर रखा और इसी अवधारणा में ‘वर्कहॉलिक्स डे’ को सबसे पहले उन्होंने अपनाया.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1940 में कहीं-कहीं ‘वर्कहॉलिक’ शब्द का इस्तेमाल हुआ, जबकि रॉडनी डेंजरफील्ड ने 1968 में इस शब्द को लोकप्रिय बनाया.
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डीसीएच/एकेजे
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