नई दिल्ली, 30 जून . हूल दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संथाल क्रांति के वीरों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी. ऐतिहासिक संथाल विद्रोह को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मानित स्वतंत्रता सेनानियों, सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो, के साथ-साथ अन्य बहादुर आदिवासी शहीदों की चिरस्थायी विरासत को नमन किया, जिन्होंने औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ अपने प्राणों की आहुति दी.
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ”हूल दिवस हमें अपने आदिवासी समाज के अदम्य साहस और अद्भुत पराक्रम की याद दिलाता है. ऐतिहासिक संथाल क्रांति से जुड़े इस विशेष अवसर पर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो के साथ ही उन सभी वीर-वीरांगनाओं का हृदय से नमन और वंदन, जिन्होंने विदेशी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ लड़ते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया. उनकी शौर्यगाथा देश की हर पीढ़ी को मातृभूमि के स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्रेरित करती रहेगी.”
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संथाल क्रांति के योद्धाओं को श्रद्धांजलि देते हुए एक्स पर लिखा, ”आज हूल दिवस पर हम उन वीर आदिवासी भाइयों-बहनों को नमन करते हैं, जिन्होंने महान सिदो और कान्हू के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ ऐतिहासिक संथाल हूल विद्रोह का बिगुल फूंका. यह जनक्रांति न केवल अपनी जमीन, संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए थी, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय भी बनी. इस विद्रोह में हजारों आदिवासी भाइयों-बहनों ने प्राणों की आहुति दी, इसने अन्याय के खिलाफ एकजुटता की मिसाल कायम की. उन वीर हुतात्माओं का साहस और बलिदान सदैव स्मरणीय रहेगा.”
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हूल दिवस पर वीर शहीदों को याद करते हुए लिखा, ”’हूल दिवस’ पर संथाल विद्रोह के अमर बलिदानियों सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो सहित सभी वीर-वीरांगनाओं के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूं. ‘अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो’ का नारा बुलंद कर विद्रोह का बिगुल फूंक देने वाले सभी जनजातीय भाई-बहनों की गौरव गाथा सदैव भावी पीढ़ियों को अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद करने तथा मातृभूमि के लिए मर-मिटने की प्रेरणा देती रहेंगी.”
हूल दिवस हर साल 30 जून को मनाया जाता है. यह दिन 1855 के संथाल हूल विद्रोह की याद में मनाया जाता है, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के पहले बड़े जनजातीय विद्रोहों में से एक था. साल 1855 में झारखंड (अब का संथाल परगना क्षेत्र) में दो संथाल भाइयों ने ब्रिटिश शासन, जमींदारों और महाजनों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा जन-विद्रोह खड़ा किया. इस आंदोलन को ‘हूल विद्रोह’ कहा जाता है.
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एसके/एबीएम
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