Patna, 11 अक्टूबर . मोरवा बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र है, जिसे राजनीति के जानकार हमेशा ‘कांटे की टक्कर’ वाले क्षेत्रों में गिनते हैं. उजियारपुर Lok Sabha क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली इस सीट के चुनावी मुकाबले का सीधा असर दिल्ली की राजनीति पर भी पड़ता है.
वर्तमान में यह सीट सामान्य श्रेणी में है, जहां राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का परचम लहरा रहा है. मोरवा कस्बा समस्तीपुर जिला मुख्यालय से मह 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. भौगोलिक रूप से यह उपजाऊ गंगा के मैदान का हिस्सा है. इससे लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर बूढ़ी गंडक नदी बहती है, जो इस क्षेत्र की कृषि को जीवन देती है.
इस क्षेत्र की पहचान हमेशा से ही निर्णायक मतदाताओं और अप्रत्याशित नतीजों के लिए रही है. 2020 का विधानसभा चुनाव मोरवा के लिए एक बड़ा Political घटनाक्रम साबित हुआ, जब रणविजय साहू (राजद) ने अपने मजबूत प्रतिद्वंद्वी को हराकर सीट पर कब्जा किया.
रणविजय साहू की यह जीत दस हजार से अधिक वोटों के अंतर से हुई, जिसने यह साबित कर दिया कि मोरवा के मतदाता किसी एक दल या व्यक्ति के बंधक नहीं हैं, बल्कि समय के साथ बदलाव स्वीकार करते हैं. उस चुनाव में राजद और जदयू ही मुख्य दल थे, जिनके बीच सीधा मुकाबला देखने को मिला.
मोरवा विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई, इसलिए इसका चुनावी इतिहास बहुत पुराना नहीं है, लेकिन बेहद दिलचस्प है.
मोरवा सीट पर पहला चुनाव 2010 में हुआ था. इस चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के वैद्यनाथ सहनी ने जीत हासिल की थी. उन्होंने राजद के अशोक सिंह को हराकर इस नई सीट पर जदयू का झंडा फहराया. वैद्यनाथ सहनी की जीत का मुख्य आधार सहनी समाज का मजबूत समर्थन था.
2015 में जदयू उस समय महागठबंधन का हिस्सा था. इसलिए जदयू के विद्या सागर निषाद महागठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे थे. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सुरेश राय को पराजित कर यह सीट बरकरार रखी. 2020 में समीकरण बदले और रणविजय साहू (राजद) ने बाजी पलटते हुए जीत दर्ज की.
मोरवा की राजनीति में भले ही विकास की बातें हों, लेकिन बिहार के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी जातिगत समीकरण ही चुनाव के नतीजों पर सबसे अधिक हावी रहते हैं.
मोरवा में सहनी समाज (जो निषाद समुदाय का हिस्सा है) की आबादी सबसे अधिक है. यह समाज न केवल संख्या में बड़ा है, बल्कि यह सबसे अग्रेसिव होकर वोट करता है यानी मतदान के प्रति सबसे ज्यादा जागरूक और सक्रिय रहता है.
यही समाज इस क्षेत्र की एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि मछली पालन के लिए जाना जाता है, जिससे उनकी क्षेत्रीय पहचान और शक्ति और भी मजबूत होती है.
इस सीट पर लगभग 30 फीसदी वोटिंग मुस्लिम और यादव (एमवाई) मतदाताओं की है. ये दोनों समुदाय मिलकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लिए एक मजबूत और विश्वसनीय वोट बैंक तैयार करते हैं.
इन प्रमुख समुदायों के अलावा, ब्राह्मण और राजपूत मतदाता भी मोरवा की चुनावी तस्वीर में एक अहम भूमिका निभाते हैं. यह दिखाता है कि यहां की राजनीति कई परतों वाली है, जहां हर समुदाय का अपना महत्व है.
मोरवा की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है. यहां धान, गेहूं, मक्का और दालों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. कृषि आधारित कुछ छोटे स्तर के उद्योग भी यहां मौजूद हैं.
बिहार की राजधानी Patna यहां से लगभग 90 किलोमीटर दूर है, लेकिन, मोरवा की सबसे बड़ी और चिंताजनक बात यहां की बेरोजगारी है.
6 नवंबर को इस सीट पर चुनाव होने हैं. मोरवा में बेरोजगारी और गरीबी जैसे प्रमुख मुद्दे जरूर उभरेंगे, लेकिन हमेशा की तरह जातिगत समीकरण भी एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकता है.
यहां जदयू और राजद के बीच हमेशा कांटे की टक्कर देखने को मिलती रही है. इस बार नई पार्टी जन सुराज भी बिहार की राजनीति में प्रमुखता से दिख रही है. जन सुराज ने बाकी दलों से पहले ही अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें इस सीट से कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉ. जागृति ठाकुर को चुनावी मैदान में उतारा गया है. अब इस सीट से प्रमुखता के साथ त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा.
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वीकेयू/वीसी
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