महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर फिर एक बार सियासी घमासान छिड़ गया है। समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अबू आजमी ने भिवंडी में मराठी बोलने की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा, “मराठी और हिंदी में आखिर फर्क ही क्या है?” उनकी यह टिप्पणी सामने आते ही विवाद गहराता चला गया और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने तीखा पलटवार किया।
यह विवाद तब उठा जब अबू आजमी ने ठाणे जिले के भिवंडी शहर का दौरा किया। वे यहां कल्याण रोड चौड़ीकरण का विरोध कर रहे थे। चूंकि इस इलाके में मुस्लिम समुदाय की बड़ी संख्या रहती है, इसलिए आजमी का यह दौरा खासा चर्चा में रहा। इस दौरान जब पत्रकारों ने उनसे मराठी में बयान देने का अनुरोध किया, तो उन्होंने तर्क दिया कि, “मैं मराठी बोल सकता हूं, लेकिन भिवंडी में इसकी जरूरत क्यों है? दिल्ली या उत्तर प्रदेश में अगर मराठी में बयान दूंगा, तो कौन समझेगा?”
आजमी के इस बयान ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया। मनसे की ठाणे इकाई के अध्यक्ष परेश चौधरी ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “अबू आजमी, आप महाराष्ट्र की राजनीति कर रहे हैं, तो यहां की भाषा का सम्मान भी करना होगा। यह उत्तर प्रदेश नहीं है कि वहां की चिंता करें। भिवंडी महाराष्ट्र में है और यहां मराठी ही चलेगी। अगर आपको मराठी बोलने में शर्म आती है, तो मनसे की अपनी शैली में जवाब मिलेगा।”
केवल मनसे ही नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) ने भी अबू आजमी की टिप्पणी पर अप्रसन्नता जताई। भिवंडी से एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के सांसद सुरेश म्हात्रे ने स्पष्ट कहा कि जिस जगह पर आप खड़े हैं, वहां की भाषा का इस्तेमाल करना ही बेहतर और सम्मानजनक होता है।
इस विवाद ने एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा की संवेदनशीलता को सामने ला खड़ा किया है। मराठी बनाम हिंदी की बहस न सिर्फ सियासी दलों की जुबानी जंग को हवा दे रही है, बल्कि यह भी सवाल उठा रही है कि क्षेत्रीय अस्मिता और पहचान का सम्मान किस तरह से बरकरार रखा जाए।
You may also like
Chanakya Neeti : अपने वैवाहिक जीवन में ना आने दें कड़वाहट और नाराजगी, इन चार बातों का रखें ध्यान
UPSC ESE 2026: आवेदन प्रक्रिया और महत्वपूर्ण जानकारी
आरएसएस की शताब्दी पर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने दी बधाई, संगठन के योगदान को सराहा
बिहार में सरकारी नौकरी के अवसर: लाइब्रेरियन और शिक्षकों की भर्ती
उद्धव ठाकरे की रैली सिर्फ रोने-धोने का कार्यक्रम: राम कदम