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दतिया का पीतांबरा शक्तिपीठ, जहां हवन के बाद युद्ध थमे, चीन-पाक दोनों झुके!

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दतिया जिले का पीतांबरा पीठ मंदिर युद्ध के समय किए गए धार्मिक कार्यों के लिए जाना जाता है। यहां 1971 के भारत-पाक युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान विशेष पूजा की गई थी। ऐसा माना जाता है कि इन पूजाओं से भारत को युद्ध में मदद मिली थी। यह मंदिर राजसत्ता, यश और दुश्मनों पर जीत के लिए पीतांबरा माई को समर्पित है। राजनेता और आम लोग यहां दर्शन करने आते हैं।पीतांबरा पीठ मंदिर बहुत पुराना है। युद्ध के समय यहां होने वाली घटनाओं का इतिहास रहा है। पुराने समय से ही भारत में युद्ध जैसी मुश्किल स्थिति में भगवान की पूजा का महत्व रहा है। आज भी धर्म और आस्था का ऐसा मेल देखने को मिलता है। पीतांबरा पीठ इसका एक बड़ा उदाहरण है। यहां युद्ध के समय किए गए धार्मिक कामों की कई मान्यताएं हैं। बगलामुखी माता का शक्तिपीठयह मंदिर ग्वालियर से 65 किलोमीटर दूर है। इसे बगलामुखी माता का शक्तिपीठ कहते हैं। लोग इसे पीतांबरा माई धाम के नाम से भी जानते हैं। ऐसा मानते हैं कि यह मंदिर पीतांबरा माई को समर्पित है। पीतांबरा माई यश, वैभव, राजसत्ता और दुश्मनों पर जीत दिलाती हैं। यहां धूमावती माता की मूर्ति भी है। उन्हें शत्रुनाशिनी देवी माना जाता है। बड़े नेता, व्यापारी, कलाकार और आम लोग इस मंदिर में दर्शन करने और हवन करने आते हैं। युद्धकाल में इंदिरा गांधी ने करवाया था हवनइतिहासकारों के अनुसार 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यहां गुप्त हवन करवाया था। एक वरिष्ठ पत्रकारस देव बताते हैं कि 16 दिसंबर 1971 को जब हवन पूरा हुआ, उसी दिन पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया और युद्ध विराम की घोषणा हुई। इसे एक चमत्कार माना गया। वाजपेयी और नेहरू भी करवा चुके पूजनइसी तरह 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यहां विशेष पूजा करवाई थी। वाजपेयी जी ग्वालियर के रहने वाले थे और पीतांबरा माई में उनकी गहरी श्रद्धा थी। एक और कहानी 1962 के भारत-चीन युद्ध से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध रोकने के लिए यहां 11 दिनों तक 51 कुंडीय यज्ञ करवाया था। यज्ञ खत्म होने के तुरंत बाद चीन ने अपनी सेना वापस बुला ली थी। हालांकि, इस यज्ञ का कोई सीधा सबूत नहीं है, लेकिन मंदिर में आज भी वह यज्ञशाला मौजूद है।पीतांबरा पीठ सिर्फ एक मंदिर नहीं है। यह भारतीय राजनीति और सुरक्षा के कई बड़े मौकों पर चुपचाप सब कुछ देखता रहा है। यह दिखाता है कि समय चाहे जो भी हो, आस्था की शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए।
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