अमेरिकी प्रशासन ने यूएस की 9 यूनिवर्सिटीज को इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए सीटें सीमित करने के दिशा-निर्देश दिए हैं। इनमें कई अमेरिका की Ivy लीग के बेस्ट उच्च शिक्षा संस्थान भी शामिल हैं। Ivy लीग में आठ प्रमुख अमेरिकी यूनिवर्सिटीज का एक ग्रुप है, जो अपनी शैक्षणिक उत्कृष्टता, उच्च स्तर की दाखिला प्रक्रिया और ऐतिहासिक प्रतिष्ठा के लिए जाने जाते हैं। इनके नाम हैं- हार्वर्ड, प्रिंसटन यूनिवर्सिटीज, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, डार्टमाउथ कॉलेज, ब्राउन यूनिवर्सिटी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी और येल यूनिवर्सिटी।
विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप सरकार के इस फैसले का असर आईवी लीग की कुछ यूनिवर्सिटीज समेत केवल 9 संस्थानों पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि अमेरिका के ज्यादातर संस्थानों में भारत के छात्रों के एडमिशन की राह मुश्किल होगी।
अमेरिका के टॉप 50 संस्थानों में कम हो रहे भारतीय छात्रकरियर काउंसलर आलोक बंसल का कहना है कि 2025 में वैसे भी भारतीय छात्रों को अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में एडमिशन के लिए वीजा मिलने में दिक्कतें हुईं। उसके बाद H-1B Visa की फीस बढ़ाकर सालाना 1 लाख डॉलर किए जाने के बाद मुश्किलों में और इजाफा हुआ। अब एक नये आदेश में किसी देश के केवल 5 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय छात्रों के ही एडमिशन के आदेश के बाद भारतीय छात्रों का नंबर और कम होगा।
वह कहते हैं कि वैसे भी इस बार अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या में 50 से 55 फीसदी तक की कमी का अनुमान लगाया जा रहा है। अगर ट्रंप सरकार के ये फैसले बरकार रहते हैं, तो 2026 में यह नंबर और कम हो जाएगा।
अमेरिका के टॉप 50 संस्थानों में भारतीय छात्र ज्यादा एडमिशन लेते हैं। बंसल का कहना है कि टॉप 50 संस्थानों के अलावा अमेरिका के जिन दूसरे संस्थानों में भारतीय छात्र जाते थे, उनको उन संस्थानों के लिए वीजा मिलने में परेशानी हुई है और कम छात्रों को ही वीजा मिल पाया है। क्यूएस रैंकिंग में टॉप पर रहने वाले अमेरिका के Massachusetts Institute of Technology (MIT) में भी भारतीय छात्रों का नंबर कम रहेगा।
लोन लेकर अमेरिका जाने वालों की टेंशन बढ़ीआलोक बंसल बताते हैं कि बड़ी संख्या में ऐसे भारतीय छात्र हैं, जो एजुकेशन लोन लेकर अमेरिका में पढ़ाई के लिए जाना चाहते हैं। औसतन देखें तो अमेरिका में चार साल की ग्रेजुएशन करने के लिए सालाना 93000 डॉलर यानी 85-90 लाख रुपये तक का खर्चा आता है। लेकिन छात्र यह सोचते हैं कि करोड़ों का खर्च करने के बाद वह अमेरिका में ही रहकर कमा लेंगे और अपना लोन उतार देंगे।
लेकिन एच-1वी वीजा की शर्त के बाद छात्रों का अमेरिका में रहकर जॉब करना अब आसान नहीं होगा। वहीं, इस बार अमेरिका के जिन संस्थानों में थोड़ी कम फीस होती है, वहां के लिए बहुत कम छात्रों को वीजा मिला है। अब नई शर्त के बाद वे छात्र तो अमेरिका जाने के लिए ट्राई जरूर करेंगे, जिनके पैरंट्स के पास पैसे की कमी नहीं है और वे हर हाल में अमेरिका जाना चाहते हैं। लेकिन लोन लेकर पढ़ाई करने की उम्मीद रखने वाले 100 बार जरूर सोचेंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप सरकार के इस फैसले का असर आईवी लीग की कुछ यूनिवर्सिटीज समेत केवल 9 संस्थानों पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि अमेरिका के ज्यादातर संस्थानों में भारत के छात्रों के एडमिशन की राह मुश्किल होगी।
अमेरिका के टॉप 50 संस्थानों में कम हो रहे भारतीय छात्रकरियर काउंसलर आलोक बंसल का कहना है कि 2025 में वैसे भी भारतीय छात्रों को अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में एडमिशन के लिए वीजा मिलने में दिक्कतें हुईं। उसके बाद H-1B Visa की फीस बढ़ाकर सालाना 1 लाख डॉलर किए जाने के बाद मुश्किलों में और इजाफा हुआ। अब एक नये आदेश में किसी देश के केवल 5 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय छात्रों के ही एडमिशन के आदेश के बाद भारतीय छात्रों का नंबर और कम होगा।
वह कहते हैं कि वैसे भी इस बार अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या में 50 से 55 फीसदी तक की कमी का अनुमान लगाया जा रहा है। अगर ट्रंप सरकार के ये फैसले बरकार रहते हैं, तो 2026 में यह नंबर और कम हो जाएगा।
अमेरिका के टॉप 50 संस्थानों में भारतीय छात्र ज्यादा एडमिशन लेते हैं। बंसल का कहना है कि टॉप 50 संस्थानों के अलावा अमेरिका के जिन दूसरे संस्थानों में भारतीय छात्र जाते थे, उनको उन संस्थानों के लिए वीजा मिलने में परेशानी हुई है और कम छात्रों को ही वीजा मिल पाया है। क्यूएस रैंकिंग में टॉप पर रहने वाले अमेरिका के Massachusetts Institute of Technology (MIT) में भी भारतीय छात्रों का नंबर कम रहेगा।
लोन लेकर अमेरिका जाने वालों की टेंशन बढ़ीआलोक बंसल बताते हैं कि बड़ी संख्या में ऐसे भारतीय छात्र हैं, जो एजुकेशन लोन लेकर अमेरिका में पढ़ाई के लिए जाना चाहते हैं। औसतन देखें तो अमेरिका में चार साल की ग्रेजुएशन करने के लिए सालाना 93000 डॉलर यानी 85-90 लाख रुपये तक का खर्चा आता है। लेकिन छात्र यह सोचते हैं कि करोड़ों का खर्च करने के बाद वह अमेरिका में ही रहकर कमा लेंगे और अपना लोन उतार देंगे।
लेकिन एच-1वी वीजा की शर्त के बाद छात्रों का अमेरिका में रहकर जॉब करना अब आसान नहीं होगा। वहीं, इस बार अमेरिका के जिन संस्थानों में थोड़ी कम फीस होती है, वहां के लिए बहुत कम छात्रों को वीजा मिला है। अब नई शर्त के बाद वे छात्र तो अमेरिका जाने के लिए ट्राई जरूर करेंगे, जिनके पैरंट्स के पास पैसे की कमी नहीं है और वे हर हाल में अमेरिका जाना चाहते हैं। लेकिन लोन लेकर पढ़ाई करने की उम्मीद रखने वाले 100 बार जरूर सोचेंगे।
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