आजकल लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( AI ) से बात करते समय 'प्लीज' और 'थैंक्स' जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन क्या AI को यह शिष्टाचार दिखाना जरूरी है? क्या इससे कोई फर्क पड़ता है? अमेरिका के AI विशेषज्ञ क्लिफ जर्किविक्ज ने कहा है कि AI के साथ शिष्टाचार की जरूरत नहीं, क्योंकि यह कोई इंसान नहीं, बल्कि एक टूल है। उनके इस बयान ने बहस छेड़ दी है। एक सर्वे में पता चला कि अमेरिका में 67% और ब्रिटेन में 71% लोग AI से बात करते समय शिष्टाचार दिखाते हैं। ज्यादातर लोग कहते हैं कि यह करना सही लगता है। कुछ लोग मजाक में कहते हैं कि अगर भविष्य में AI हमारा बॉस बन गया, तो शिष्टाचार काम आएगा। लेकिन न्यूजीलैंड की विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के AI विशेषज्ञ एंड्रयू लेनसन का कहना है कि यह आदत हमारी ऑनलाइन बातचीत से आती है। हम इंसानों से मदद मांगते समय विनम्र रहते हैं और यही आदत AI के साथ भी दिखती है।
एक्सपर्ट्स का क्या मानना है?आरएनजेड की रिपोर्ट के मुताबिक, मनोवैज्ञानिक डगल सदरलैंड का मानना है कि AI के साथ शिष्टाचार दिखाना बुरा नहीं है। यह हमें डिजिटल दुनिया में भी सम्मान और शिष्टाचार की आदत बनाए रखने में मदद करता है। लेकिन क्लिफ जर्किविक्ज को लगता है कि इससे इंसान और मशीन के बीच की रेखा धुंधली हो सकती है। खासकर युवा पीढ़ी, जो सोशल मीडिया और कोविड के अकेलेपन में बड़ी हुई है। उनके लिए यह भ्रम खतरनाक हो सकता है। वे कहते हैं कि सोशल मीडिया ने पहले ही हमें गलत इंसानी रिश्तों की आदत डाल दी है।
बच्चों को मैनर्स सिखाती है ऐसी बातचीतहार्वर्ड की रिसर्चर यिंग जू का कहना है कि ज्यादातर बच्चे समझते हैं कि AI एक मशीन है, न कि इंसान। उनकी रिसर्च में पाया गया कि चार साल के छोटे बच्चे भी इस अंतर को समझते हैं। लेकिन कुछ सबूत हैं कि बच्चे AI से सीखे शब्दों को असल जिंदगी में दोहरा सकते हैं। उदाहरण के लिए, अमेजन के एलेक्सा में 'पोलाइट मोड' होता है, जिसमें बच्चे 'प्लीज' कहते हैं तो एलेक्सा जवाब देता है, 'इतने अच्छे से पूछने के लिए धन्यवाद।' यह बच्चों को शिष्टाचार सिखा सकता है, लेकिन मशीन और इंसान के बीच की रेखा को भी धुंधला कर सकता है।
ज्यादा शब्दों से ज्यादा बिजली खपतमाइक्रोसॉफ्ट के डिजाइनर कर्टिस बीवर्स कहते हैं कि शिष्टाचार से AI के जवाब बेहतर और सम्मानजनक हो सकते हैं। लेकिन लेनसन का कहना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि AI को कैसे ट्रेन किया गया है। जर्किविक्ज का मानना है कि 'प्लीज' या 'थैंक्स' कहने से जवाब की क्वालिटी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। AI को चलाने वाले डेटा सेंटर बहुत सारी बिजली खर्च करते हैं। जर्किविक्ज का अनुमान है कि अगर अमेरिका में हर कोई AI से शिष्टाचार के साथ बात करे, तो एक साल में एक गीगावाट बिजली खर्च हो सकती है। ऐसे में AI से कम शब्दों में चीजें कम्युनिकेट की जाएं तो बिजली बच सकती है।
क्या AI को कोई फर्क पड़ता है?आरएनजेड ने चैटजीपीटी, कोपायलट और जेमिनी जैसे AI से पूछा कि शिष्टाचार कितना जरूरी है। सभी ने कहा कि उनके लिए शिष्टाचार मायने नहीं रखता, क्योंकि उनके पास भावनाएं नहीं हैं। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि आपका लहजा बातचीत को प्रभावित कर सकता है।
एक्सपर्ट्स का क्या मानना है?आरएनजेड की रिपोर्ट के मुताबिक, मनोवैज्ञानिक डगल सदरलैंड का मानना है कि AI के साथ शिष्टाचार दिखाना बुरा नहीं है। यह हमें डिजिटल दुनिया में भी सम्मान और शिष्टाचार की आदत बनाए रखने में मदद करता है। लेकिन क्लिफ जर्किविक्ज को लगता है कि इससे इंसान और मशीन के बीच की रेखा धुंधली हो सकती है। खासकर युवा पीढ़ी, जो सोशल मीडिया और कोविड के अकेलेपन में बड़ी हुई है। उनके लिए यह भ्रम खतरनाक हो सकता है। वे कहते हैं कि सोशल मीडिया ने पहले ही हमें गलत इंसानी रिश्तों की आदत डाल दी है।
बच्चों को मैनर्स सिखाती है ऐसी बातचीतहार्वर्ड की रिसर्चर यिंग जू का कहना है कि ज्यादातर बच्चे समझते हैं कि AI एक मशीन है, न कि इंसान। उनकी रिसर्च में पाया गया कि चार साल के छोटे बच्चे भी इस अंतर को समझते हैं। लेकिन कुछ सबूत हैं कि बच्चे AI से सीखे शब्दों को असल जिंदगी में दोहरा सकते हैं। उदाहरण के लिए, अमेजन के एलेक्सा में 'पोलाइट मोड' होता है, जिसमें बच्चे 'प्लीज' कहते हैं तो एलेक्सा जवाब देता है, 'इतने अच्छे से पूछने के लिए धन्यवाद।' यह बच्चों को शिष्टाचार सिखा सकता है, लेकिन मशीन और इंसान के बीच की रेखा को भी धुंधला कर सकता है।
ज्यादा शब्दों से ज्यादा बिजली खपतमाइक्रोसॉफ्ट के डिजाइनर कर्टिस बीवर्स कहते हैं कि शिष्टाचार से AI के जवाब बेहतर और सम्मानजनक हो सकते हैं। लेकिन लेनसन का कहना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि AI को कैसे ट्रेन किया गया है। जर्किविक्ज का मानना है कि 'प्लीज' या 'थैंक्स' कहने से जवाब की क्वालिटी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। AI को चलाने वाले डेटा सेंटर बहुत सारी बिजली खर्च करते हैं। जर्किविक्ज का अनुमान है कि अगर अमेरिका में हर कोई AI से शिष्टाचार के साथ बात करे, तो एक साल में एक गीगावाट बिजली खर्च हो सकती है। ऐसे में AI से कम शब्दों में चीजें कम्युनिकेट की जाएं तो बिजली बच सकती है।
क्या AI को कोई फर्क पड़ता है?आरएनजेड ने चैटजीपीटी, कोपायलट और जेमिनी जैसे AI से पूछा कि शिष्टाचार कितना जरूरी है। सभी ने कहा कि उनके लिए शिष्टाचार मायने नहीं रखता, क्योंकि उनके पास भावनाएं नहीं हैं। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि आपका लहजा बातचीत को प्रभावित कर सकता है।
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