उमेश चतुर्वेदी, नई दिल्ली: कश्मीर की धरती पिछली सदी के नब्बे के दशक से ही आतंकवाद से पीड़ित रही है। लेकिन 22 अप्रैल को पर्यटकों की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद लोगों में गुस्सा है। ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री निवास में हुई पीएम नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात की अहमियत सहज ही समझी जा सकती है। हालांकि मुलाकात के दौरान हुई चर्चा की जानकारी न तो संघ की ओर से साझा की गई है, और ना ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बारे में कोई बयान दिया है। क्या बात हुई : मुलाकात के दौरान क्या चर्चा हुई होगी, इसे समझने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के एक इंटरव्यू को याद करना होगा। जब चंद्रशेखर से पूछा गया था कि राष्ट्र पर संकट हो तो उसे बचाने के लिए सबसे पहले कौन आगे आएगा, तब उन्होंने बिना लाग-लपेट के जवाब दिया था कि भारतीय सेना और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। ध्यान रखने की बात है कि चंद्रशेखर खांटी समाजवादी थे। लेकिन संघ की कार्यशैली से वे अच्छी तरह परिचित थे। सेना को मिला अधिकार : संघ प्रमुख से मुलाकात के ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और तीनों सेना प्रमुखों तथा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ से मिले। इसी बैठक में सेनाओं को अपने हिसाब से वक्त चुनने और कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया। इस फैसले के बाद संघ प्रमुख की प्रधानमंत्री से भेंट का सांकेतिक महत्व भी है। इस भेंट से साफ है कि संघ ने प्रधानमंत्री को अपनी भावना से अवगत करा दिया है। संघ की भावना हमले के बाद जारी उसके इस बयान से स्पष्ट होती है, ‘सभी राजनीतिक दलों और संगठनों को आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर इस आतंकी हमले की निंदा करनी चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को उपयुक्त सजा मिले।’ राजा अपना काम करेगा : इससे पहले मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख कह चुके हैं कि ‘जिन लोगों की हत्या की गई, उनसे उनका धर्म पूछा गया। अष्टभुजा शक्ति से असुरों का नाश किया जाना चाहिए।’ दिल्ली के एक कार्यक्रम में उन्होंने यह भी कहा कि ‘हम कभी भी अपने पड़ोसियों का नुकसान नहीं करते। इसके बाद भी अगर कोई गलत रास्ता अपनाता है तो राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना। राजा अपना काम करेगा।’ प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान मोहन भागवत के इन संदेशों की छाप जरूर रही होगी। भीतरी ताकतों का सवाल : पहलगाम हमले को लेकर लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा स्वाभाविक है। लेकिन यह भी सच है कि सीमा के भीतर भी ऐसी ताकतें हैं, जो अंदरूनी तौर पर व्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश कर सकती हैं। हमले के बाद हुई सर्वदलीय बैठक में तमाम राजनीतिक दलों ने सरकार को हर कार्रवाई में साथ देने का ऐलान भले ही कर दिया हो, इस मसले पर राजनीतिक उठापटक खूब चल रही है। देश के अंदर इस मसले पर वैचारिक संघर्ष भी जारी है। एक वर्ग ऐसा है, जो सरकार के भावी कदमों को शक की निगाह से देख रहा है। देश विरोधी छुपी ताकतें भी सक्रिय हैं। वे मौके की ताक में हैं। संघ का विशाल नेटवर्क : ऐसे में अगर आतंकवाद के खिलाफ कोई निर्णायक और कठोर कार्रवाई होती है तो देश के भीतर भी व्यवस्था बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी। सामाजिक और धार्मिक सद्भाव बनाए रखने के लिए तंत्र को जूझना पड़ेगा। ऐसे में मजबूत और व्यापक संगठन की वजह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका बड़ी हो जाती है। संघ के 44 आनुषंगिक संगठन हैं, विशाल कार्यकर्ता समूह है, बड़ा नेटवर्क है। इनके सहयोग से संघ देश में सकारात्मक माहौल बनाए रखने में बड़ा मददगार साबित हो सकता है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख के बीच संघ की इस क्षमता की भी चर्चा हुई होगी। नैरेटिव की जंग : पहलगाम हमला भले भारत की धरती पर हुआ है, लेकिन इसका एक सिरा नैरेटिव के जरिए वैश्विक स्तर तक जाता है। नैरेटिव की लड़ाई में भारत को मात देने की कोशिश होगी। अगर भविष्य में कोई कठोर कार्रवाई होती है, तब नैरेटिव की जंग और तीखी हो सकती है। इस युद्ध में भी संघ अहम भूमिका निभा सकता है। सरकार चाहे किसी भी दल या समूह की क्यों न हो, युद्ध, तूफान, बाढ़, विभीषिका जैसी संकट की घड़ियों में अंदरूनी मोर्चे पर ऐसे संगठनों के सहयोग की आकांक्षी रहती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके आनुषंगिक संगठन इस आकांक्षा को पूरा कर सकते हैं। संघ की जो वैचारिकी है, उसमें राष्ट्र के सामने हर चीज छोटी है। अब दोनों बड़े नेताओं में हुई बातचीत के निष्कर्ष व्यवहार में किस रूप में सामने आते हैं, यह देखने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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