नई दिल्ली: लखनऊ को यूनेस्को ने 'सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी' का खिताब दिया है। यह शहर की पाक कला को ग्लोबल पहचान दिलाता है। यूनेस्को का यह सम्मान लखनऊ की अवधी व्यंजन परंपरा को सिर्फ स्वादिष्ट भोजन से कहीं बढ़कर एक ब्रांड के तौर पर पेश करता है। इसका शहर की इकोनॉमी पर बड़ा असर पड़ सकता है। इस टैग से लखनऊ की खाने-पीने की चीजों को दुनिया भर में एक 'प्रीमियम ब्रांड' के तौर पर जाना जाएगा। यह खबर लखनऊ के लिए कई नए व्यावसायिक मौके लेकर आई है। इससे पर्यटन, फूड इंडस्ट्री, स्थानीय अर्थव्यवस्था और निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
यूनेस्को का 'सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी' का खिताब असल में एक ब्रांडिंग और दुनिया भर में पहचान का सर्टिफिकेट है। यह यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (यूसीसीएन) का हिस्सा है। उन चुनिंदा शहरों को यह सम्मान मिलता है जिनकी खाने-पीने की कला इतिहास और पहचान से गहराई से जुड़ी है। यह मान्यता बताती है कि लखनऊ की अवधी व्यंजन परंपरा, जैसे टुंडे कबाब, बिरयानी, निहारी, मलाई गिलौरी सिर्फ खाने में ही लाजवाब नहीं है, बल्कि यह शहर के टिकाऊ शहरी विकास और सांस्कृतिक विविधता के लिए बड़ा आर्थिक इंजन भी है। सीधे शब्दों में कहें तो यह टैग लखनऊ की पाक कला को दुनिया के नक्शे पर एक 'प्रीमियम ब्रांड' के रूप में स्थापित करता है।
इस टैग से क्या होंगे फायदे?इस नए खिताब से लखनऊ को कई तरह के फायदे होंगे। सबसे पहले पर्यटन बढ़ेगा। दुनिया भर से 'फूड टूरिस्ट', यानी खाने के शौकीन लोग लखनऊ आएंगे। ये लोग अक्सर ज्यादा खर्च करते हैं। इससे होटल, एयरलाइन, टैक्सी और ट्रैवल एजेंसियों की कमाई बढ़ेगी। दूसरा, खाद्य उद्योग यानी फूड एंड बेवरेज सेक्टर को फायदा होगा। लखनऊ के खास पकवानों और सामग्री, जैसे बासमती चावल और मसालों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रीमियम टैग मिलेगा। इससे इन चीजों का निर्यात बढ़ेगा और स्थानीय रेस्तरां, खाने के उत्पादकों और स्ट्रीट वेंडर्स की आमदनी में भी भारी उछाल आएगा।
इसके अलावा, स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। इस खिताब से शेफ, कारीगरों, छोटे दुकानदारों और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में बहुत सारे नए रोजगार पैदा होंगे। साथ ही, कुकिंग सिखाने वाले संस्थानों (कल्नरी इंस्टीट्यूट्स) और छोटे-मझोले उद्योगों (एमएसएमई) के लिए निवेश और विकास के नए रास्ते खुलेंगे। निवेश के मामले में भी इसका फायदा होगा। खाद्य प्रसंस्करण, कोल्ड स्टोरेज चेन और अंतरराष्ट्रीय स्तर के रेस्तरां चेन लखनऊ में निवेश करने के लिए आकर्षित होंगे। कारण है कि अब शहर की एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय ब्रांड पहचान बन गई है। इससे रियल एस्टेट और संबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी तेजी से निवेश होगा।
लखनऊ को मिलेगा ग्लोबल प्लेटफॉर्मयह टैग लखनऊ को वैश्विक सहयोग के लिए भी एक मंच देगा। दूसरे यूनेस्को क्रिएटिव शहरों के साथ ज्ञान का आदान-प्रदान होगा और खाने-पीने की कला से जुड़ी संयुक्त परियोजनाएं शुरू हो सकेंगी। इससे लखनऊ अंतरराष्ट्रीय फूड फेस्टिवल्स और टूरिज्म मार्केटिंग में भी आक्रामक तरीके से हिस्सा ले सकेगा।
और किसे मिल चुका है यह खिताब?लखनऊ 'सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी' बनने वाला भारत का दूसरा शहर है। इससे पहले हैदराबाद को 2019 में यह सम्मान मिला था। यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (यूसीसीएन) में भारत के कई शहर शामिल हैं। जयपुर और वाराणसी को 2015 में शिल्प एवं लोक कला और संगीत की नगरी के तौर पर चुना गया था। चेन्नई को 2017 में संगीत की नगरी, मुंबई को 2019 में फिल्म सिटी, श्रीनगर को 2021 में शिल्प एवं लोक कला, ग्वालियर को 2023 में संगीत की नगरी और कोझिकोड को भी 2023 में साहित्य के क्षेत्र में मान्यता मिली है।
यूनेस्को का 'सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी' का खिताब असल में एक ब्रांडिंग और दुनिया भर में पहचान का सर्टिफिकेट है। यह यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (यूसीसीएन) का हिस्सा है। उन चुनिंदा शहरों को यह सम्मान मिलता है जिनकी खाने-पीने की कला इतिहास और पहचान से गहराई से जुड़ी है। यह मान्यता बताती है कि लखनऊ की अवधी व्यंजन परंपरा, जैसे टुंडे कबाब, बिरयानी, निहारी, मलाई गिलौरी सिर्फ खाने में ही लाजवाब नहीं है, बल्कि यह शहर के टिकाऊ शहरी विकास और सांस्कृतिक विविधता के लिए बड़ा आर्थिक इंजन भी है। सीधे शब्दों में कहें तो यह टैग लखनऊ की पाक कला को दुनिया के नक्शे पर एक 'प्रीमियम ब्रांड' के रूप में स्थापित करता है।
इस टैग से क्या होंगे फायदे?इस नए खिताब से लखनऊ को कई तरह के फायदे होंगे। सबसे पहले पर्यटन बढ़ेगा। दुनिया भर से 'फूड टूरिस्ट', यानी खाने के शौकीन लोग लखनऊ आएंगे। ये लोग अक्सर ज्यादा खर्च करते हैं। इससे होटल, एयरलाइन, टैक्सी और ट्रैवल एजेंसियों की कमाई बढ़ेगी। दूसरा, खाद्य उद्योग यानी फूड एंड बेवरेज सेक्टर को फायदा होगा। लखनऊ के खास पकवानों और सामग्री, जैसे बासमती चावल और मसालों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रीमियम टैग मिलेगा। इससे इन चीजों का निर्यात बढ़ेगा और स्थानीय रेस्तरां, खाने के उत्पादकों और स्ट्रीट वेंडर्स की आमदनी में भी भारी उछाल आएगा।
इसके अलावा, स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। इस खिताब से शेफ, कारीगरों, छोटे दुकानदारों और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में बहुत सारे नए रोजगार पैदा होंगे। साथ ही, कुकिंग सिखाने वाले संस्थानों (कल्नरी इंस्टीट्यूट्स) और छोटे-मझोले उद्योगों (एमएसएमई) के लिए निवेश और विकास के नए रास्ते खुलेंगे। निवेश के मामले में भी इसका फायदा होगा। खाद्य प्रसंस्करण, कोल्ड स्टोरेज चेन और अंतरराष्ट्रीय स्तर के रेस्तरां चेन लखनऊ में निवेश करने के लिए आकर्षित होंगे। कारण है कि अब शहर की एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय ब्रांड पहचान बन गई है। इससे रियल एस्टेट और संबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी तेजी से निवेश होगा।
लखनऊ को मिलेगा ग्लोबल प्लेटफॉर्मयह टैग लखनऊ को वैश्विक सहयोग के लिए भी एक मंच देगा। दूसरे यूनेस्को क्रिएटिव शहरों के साथ ज्ञान का आदान-प्रदान होगा और खाने-पीने की कला से जुड़ी संयुक्त परियोजनाएं शुरू हो सकेंगी। इससे लखनऊ अंतरराष्ट्रीय फूड फेस्टिवल्स और टूरिज्म मार्केटिंग में भी आक्रामक तरीके से हिस्सा ले सकेगा।
और किसे मिल चुका है यह खिताब?लखनऊ 'सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी' बनने वाला भारत का दूसरा शहर है। इससे पहले हैदराबाद को 2019 में यह सम्मान मिला था। यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (यूसीसीएन) में भारत के कई शहर शामिल हैं। जयपुर और वाराणसी को 2015 में शिल्प एवं लोक कला और संगीत की नगरी के तौर पर चुना गया था। चेन्नई को 2017 में संगीत की नगरी, मुंबई को 2019 में फिल्म सिटी, श्रीनगर को 2021 में शिल्प एवं लोक कला, ग्वालियर को 2023 में संगीत की नगरी और कोझिकोड को भी 2023 में साहित्य के क्षेत्र में मान्यता मिली है।
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