मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि लंबे समय से चला आ रहा सहमति से बना संबंध, जो बाद में विवाद या अलगाव की वजह से खत्म हो जाता है, उसे अपने आप में दुष्कर्म नहीं माना जा सकता है। एक शख्स को दुष्कर्म के आरोप से दोषमुक्त करते हुए कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। एडिशनल सेशंस जज बोरीवली (दिंडोशी) ने 27 नवंबर 2024 के अपने आदेश में शख्स को आरोप मुक्त करने से इनकार कर दिया था, जिसे शख्स ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस अमित बोरकर ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सेशंस कोर्ट ने दुर्भावना से किए झूठे वादे और बाद की परिस्थितियों से उत्पन्न वादाखिलाफी के बीच के अंतर को नजरअंदाज किया है।
रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिससे निष्कर्ष निकाला जा सके कि शख्स का शुरू से शिकायतकर्ता (महिला) को धोखा देने का इरादा था। इस प्रकार जस्टिस बोरकर ने सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
ये है मामलाजूते के शोरूम में साथ काम करने वाले शख्स और शिकायतकर्ता के बीच दोस्ती धीरे-धीरे प्रेम में बदल गई। शख्स ने शादी का प्रस्ताव रखा, तो महिला ने बताया कि उसका तलाक का मामला फैमिली कोर्ट में लंबित है। एक दिन वह महिला के घर खाना खाने गया, जहां उसने शादी का वादा कर संबंध बनाए। बाद में शिकायतकर्ता को पता चला कि शख्स पहले से शादीशुदा है। शख्स ने कहा कि उसकी पत्नी उससे तलाक चाहती है। कुछ समय बाद पारिवारिक झगड़े के चलते शख्स के पास जब रहने के लिए घर नहीं था, तो उसने शिकायतकर्ता की मां से उनके घर में रहने की अनुमति ले ली।
दिसंबर 2018 से 17 अगस्त 2020 तक शख्स और शिकायतकर्ता पति-पत्नी की तरह साथ रहे और उनके बीच शारीरिक संबंध भी बने। बाद में वह पिता की तबीयत का बहाना बनाकर राजस्थान चला गया और संबंध तोड़ लिए। इससे नाराज महिला ने 2021 में शख्स के खिलाफ FIR दर्ज कराई। इन तथ्यों पर जस्टिस बोरकर ने कहा कि महिला को शख्स के बारे में शारीरिक संबंध विकसित होने से पहले पता था। ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जो दर्शाता हो कि शख्स ने शुरू से शादी का झूठा वादा किया था।
कोर्ट ने शख्स को क्यों दी राहतमौजूदा मामले में आईपीसी की धारा 376 (2एन) के तहत अपराध के मूल तत्वों का अभाव है। उक्त धारा के अंतर्गत अपराध के दायरे में आने के लिए जरूरी शर्त यह है कि विवाह का वादा शुरू से ही झूठा हो। शारीरिक संबंध बनाने की सहमति ऐसे झूठे वादे से हासिल हुई हो। बाद में केवल वादा पूरा न करना बलात्कार का अपराध नहीं माना जाएगा। ऐसे में शख्स के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।
रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिससे निष्कर्ष निकाला जा सके कि शख्स का शुरू से शिकायतकर्ता (महिला) को धोखा देने का इरादा था। इस प्रकार जस्टिस बोरकर ने सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
ये है मामलाजूते के शोरूम में साथ काम करने वाले शख्स और शिकायतकर्ता के बीच दोस्ती धीरे-धीरे प्रेम में बदल गई। शख्स ने शादी का प्रस्ताव रखा, तो महिला ने बताया कि उसका तलाक का मामला फैमिली कोर्ट में लंबित है। एक दिन वह महिला के घर खाना खाने गया, जहां उसने शादी का वादा कर संबंध बनाए। बाद में शिकायतकर्ता को पता चला कि शख्स पहले से शादीशुदा है। शख्स ने कहा कि उसकी पत्नी उससे तलाक चाहती है। कुछ समय बाद पारिवारिक झगड़े के चलते शख्स के पास जब रहने के लिए घर नहीं था, तो उसने शिकायतकर्ता की मां से उनके घर में रहने की अनुमति ले ली।
दिसंबर 2018 से 17 अगस्त 2020 तक शख्स और शिकायतकर्ता पति-पत्नी की तरह साथ रहे और उनके बीच शारीरिक संबंध भी बने। बाद में वह पिता की तबीयत का बहाना बनाकर राजस्थान चला गया और संबंध तोड़ लिए। इससे नाराज महिला ने 2021 में शख्स के खिलाफ FIR दर्ज कराई। इन तथ्यों पर जस्टिस बोरकर ने कहा कि महिला को शख्स के बारे में शारीरिक संबंध विकसित होने से पहले पता था। ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जो दर्शाता हो कि शख्स ने शुरू से शादी का झूठा वादा किया था।
कोर्ट ने शख्स को क्यों दी राहतमौजूदा मामले में आईपीसी की धारा 376 (2एन) के तहत अपराध के मूल तत्वों का अभाव है। उक्त धारा के अंतर्गत अपराध के दायरे में आने के लिए जरूरी शर्त यह है कि विवाह का वादा शुरू से ही झूठा हो। शारीरिक संबंध बनाने की सहमति ऐसे झूठे वादे से हासिल हुई हो। बाद में केवल वादा पूरा न करना बलात्कार का अपराध नहीं माना जाएगा। ऐसे में शख्स के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।
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