देवउठनी एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं। आज देवउठनी एकादशी के मौके पर भगवान विष्णु को योग निद्रा से जगाया जाएगा। इस एकादशी का सभी भक्तों को पूरा बेसब्री से इंतजार रहता है। देवउठनी एकादशी को एक महापर्व के रुप में देखा जाता है। हालांकि, भगवान विष्णु को उठाने के लिए विशेष मंत्र और गीत गाए जाते हैं। यहां जानें देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को उठाने का मंत्र और विधि।
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को उठाने के मंत्र
देवउठनी एकादशी का मौके पर सबसे पहले शाम के समय गेरु से देव की प्रतिमा बनाएं और नीचे उनके पद चिन्ह या रंगोली बनाएं। इसके बाद सिंघाड़ा शक्कर गंदी, गन्ना आदि चीजे रखें और फिर एक दीपक जला लें। दीपक को किसी कोटरी से आधा ढक ले। इसके बाद इस मंत्र का जप करें।
ब्रह्मेन्द्ररुदाग्नि कुबेर सूर्यसोमादिभिर्वन्दित वंदनीय,
बुध्यस्य देवेश जगन्निवास मंत्र प्रभावेण सुखेन देव।
इसका अर्थ है कि ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र आग्नि, कुबेर, सूर्य आदि से वंदनीय, देवताओं के स्वामी आप सुखपूर्वक उठें।
अब देव उठने के बाद भगवान विष्णु की वंदना करें और बोले उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते,
इसके बाद देवउठनी एकादशी का लोक गीत गाएं और टोकरी को हाथ दीपक पर रखते हुए हल्के हाथ से उठे बजाएं।
देवउठनी एकादशी का गीत
उठो देव बैठो देव - पाटकली चटकाओ देव
आषाढ़ में सोए देव - कार्तिक में जागे देव
कोरा कलशा मीठा पानी - उठो देव पियो पानी
हाथ पैर फटकारी देव - आंगुलिया चटकाओ देव
कुवारी के ब्याह कराओ देव-ब्याह के गौने कराओ
तुम पर फूल चढ़ाए देव-घीका दीया जलाये देव
आओ देव पधारो देव-तुमको हम मनाएं देव चूल्हा पीछे पांच पछीटे सासू जी बलदाऊ जी धारे रे बेटा
ओने कोने झांझ मंजीरा - सहोदर किशन जी तुम्हारे वीरा
ओने कोने रखे अनार ये है किशन जी तुम्हारे व्यार
ओने कोने लटकी चाबी सहोदरा ये है तुम्हारी भाभी
जितनी खूंटी टांगो सूट - उतने इस घर जन्मे पूत
जितनी इस घर सीक सलाई-उतनी इस घर बहुएं आईं
जितनी इस घर ईंट और रोडे उतने इस घर हाथी-घोड़े
गन्ने का भोग लगाओ देव सिंघाड़े का भोग लगाओ देव
बेर का भोग लगाओ देव गाजर का भोग लगाओ देव
गाजर का भोग लगाओं देव
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को उठाने के मंत्र
देवउठनी एकादशी का मौके पर सबसे पहले शाम के समय गेरु से देव की प्रतिमा बनाएं और नीचे उनके पद चिन्ह या रंगोली बनाएं। इसके बाद सिंघाड़ा शक्कर गंदी, गन्ना आदि चीजे रखें और फिर एक दीपक जला लें। दीपक को किसी कोटरी से आधा ढक ले। इसके बाद इस मंत्र का जप करें।
ब्रह्मेन्द्ररुदाग्नि कुबेर सूर्यसोमादिभिर्वन्दित वंदनीय,
बुध्यस्य देवेश जगन्निवास मंत्र प्रभावेण सुखेन देव।
इसका अर्थ है कि ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र आग्नि, कुबेर, सूर्य आदि से वंदनीय, देवताओं के स्वामी आप सुखपूर्वक उठें।
अब देव उठने के बाद भगवान विष्णु की वंदना करें और बोले उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते,
इसके बाद देवउठनी एकादशी का लोक गीत गाएं और टोकरी को हाथ दीपक पर रखते हुए हल्के हाथ से उठे बजाएं।
देवउठनी एकादशी का गीत
उठो देव बैठो देव - पाटकली चटकाओ देव
आषाढ़ में सोए देव - कार्तिक में जागे देव
कोरा कलशा मीठा पानी - उठो देव पियो पानी
हाथ पैर फटकारी देव - आंगुलिया चटकाओ देव
कुवारी के ब्याह कराओ देव-ब्याह के गौने कराओ
तुम पर फूल चढ़ाए देव-घीका दीया जलाये देव
आओ देव पधारो देव-तुमको हम मनाएं देव चूल्हा पीछे पांच पछीटे सासू जी बलदाऊ जी धारे रे बेटा
ओने कोने झांझ मंजीरा - सहोदर किशन जी तुम्हारे वीरा
ओने कोने रखे अनार ये है किशन जी तुम्हारे व्यार
ओने कोने लटकी चाबी सहोदरा ये है तुम्हारी भाभी
जितनी खूंटी टांगो सूट - उतने इस घर जन्मे पूत
जितनी इस घर सीक सलाई-उतनी इस घर बहुएं आईं
जितनी इस घर ईंट और रोडे उतने इस घर हाथी-घोड़े
गन्ने का भोग लगाओ देव सिंघाड़े का भोग लगाओ देव
बेर का भोग लगाओ देव गाजर का भोग लगाओ देव
गाजर का भोग लगाओं देव
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