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बिहार चुनाव: इस बार कांग्रेस को 2020 जितनी सीटें क्यों नहीं देंगे तेजस्वी? जानिए इसके पीछे की वजह

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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने खुद को मजबूत करने की भरपूर कोशिश की है। प्रदेश अध्यक्ष की बदली, कर्नाटक के युवा नेता कृष्णा अल्लावरू को बिहार का नया प्रभारी नियुक्त किया गया और 'पलायन रोको, रोजगार दो' यात्रा के जरिए राहुल गांधी और सचिन पायलट जैसे दिग्गज नेताओं की मौजूदगी से कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी सक्रियता दिखाई। इन सब प्रयासों से पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हुआ है, लेकिन बावजूद इसके आगामी चुनाव में कांग्रेस को महागठबंधन में पिछली बार की तुलना में कम सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। महागठबंधन की समन्यव समिति के नेता चुने गए तेजस्वी यादव इस बार कांग्रेस की सीटें कम क्यों कर सकते हैं? आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह... पिछले चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें उसे केवल 19 सीटों पर सफलता मिली। इस प्रकार पार्टी की स्ट्राइक रेट महज 27 फीसदी रही। वहीं राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 75 सीटों पर जीत दर्ज कर गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। लेकिन कांग्रेस के उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन न करने की वजह से तेजस्वी, सरकार नहीं बना सके। वहीं, 2015 के चुनाव में कांग्रेस ने RJD और JDU के साथ गठबंधन में 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 27 सीटें जीती थीं, जो कि 1995 के बाद उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन था। पिछला प्रदर्शन ही कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। इस बार कांग्रेस को कम सीटें मिलने की आशंका क्यों?इस बार कांग्रेस, राजद, लेफ्ट और वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के साथ महागठबंधन में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों के लिहाज से सीटों का बंटवारा चार दलों के बीच होना है। राजद सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण स्वाभाविक रूप से अधिक सीटों पर दावा करेगी। वहीं वीआईपी के जुड़ने से कांग्रेस और लेफ्ट के हिस्से में सीटें और घट सकती हैं। कांग्रेस की सीटें कम होने की तीसरी वजह राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी बन सकती है। एनडीए से अलग हो चुके पशुपति पारस की पार्टी के भी महागठबंधन में शामिल होने की प्रबल संभावनाएं हैं। ऐसे में पशुपति पारस की पार्टी के लिए महागठबंधन में सीटों का एडजस्टमेंट होगा। तेजस्वी यादव अपनी कुछ सीट मुकेश सहनी के छोड़ सकते हैं तो कांग्रेस-लेफ्ट की कुछ सीटें पशुपति पारस की पार्टी को दे सकते हैं। महागठबंधन की बैठक में तय होगा फॉर्मूलाहाल ही में तेजस्वी यादव ने दिल्ली में मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी। इसके बाद 17 अप्रैल को पटना में महागठबंधन की एक बैठक हुई और अगली बैठक 24 अप्रैल को कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में प्रस्तावित है, जहां सीट बंटवारे पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। वीआईपी की हिस्सेदारी बनी कांग्रेस के लिए चुनौतीवीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने स्पष्ट किया है कि इस बार की परिस्थितियां 2020 से अलग हैं। उनका कहना है, 'इस बार वीआईपी भी महागठबंधन का हिस्सा है और हमारे पास भी जनाधार है। कांग्रेस और राजद दोनों से कुछ सीटें निकाली जाएंगी और नए सिरे से बंटवारा होगा।' मुकेश सहनी ने यह भी कहा कि वीआईपी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, इसका फैसला महागठबंधन की बैठक में आपसी चर्चा से किया जाएगा।
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