नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में, मंगलवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को झूठी गवाही देने के लिए धमकाना एक संज्ञेय अपराध है और 2006 में भारतीय दंड संहिता ( आईपीसी ) में जोड़े गए एक प्रावधान की अस्पष्टता पर स्थिति स्पष्ट की, जिसकी वजह से दो हाई कोर्ट ने अलग-अलग व्याख्या की थी।
अलग हैं ये सभी धाराएं जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने कहा कि विधिक योजना से यह साफ है कि आईपीसी की धारा 195ए को धारा 193 (झूठी गवाही के लिए सजा), 194 (मौत की सजा वाले अपराध में दंड दिलाने के इरादे से झूठी गवाही देना या गढ़ना), 195 (उम्रकैद या सात साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराध में सजा दिलाने के इरादे से झूठी गवाही देना या गढ़ना) और 196 (झूठी गवाही) के तहत आने वाले अपराधों से अलग अपराध के रूप में बनाया गया था।
शिकायत कर सकते हैं सिर्फ ये लोगशीर्ष अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 193 से 196 के तहत अपराधों के लिए शिकायत केवल वही लोग कर सकते हैं जिनके नाम का जिक्र दंड प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी ) की धारा 195(1)(बी)(आई) में किया गया है और ये सभी गैर-संज्ञान अपराध हैं।
धारा 195ए के तहत किया गया संज्ञेय अपराधपीठ ने कहा, ''हालांकि, धारा 195ए के तहत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है और यह किसी व्यक्ति को उसकी जान, प्रतिष्ठा, संपत्ति या किसी ऐसे व्यक्ति की जान या प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की धमकी देकर झूठी गवाही देने के लिए उकसाने से जुड़ा है, जिसमें उस व्यक्ति की दिलचस्पी हो। पीठ ने कहा कि किसी गवाह को अदालत में आने से बहुत पहले भी धमकी दी जा सकती है, हालांकि ऐसी धमकी के तहत झूठी गवाही देना उस अदालत में चल रही कार्यवाही से जुड़ी होती है।
इन्हें दे सकता है शिकायतपीठ ने कहा, ''शायद यही वजह है कि इस अपराध को संज्ञेय बनाया गया ताकि जिस गवाह या दूसरे व्यक्ति को धमकी दी गई है, वह तुरंत कदम उठा सके। इसके लिए वह या तो धारा 154, सीआरपीसी के तहत संबंधित पुलिस अधिकारी को इस संज्ञेय अपराध के होने की मौखिक जानकारी दे सकता है, या धारा 195ए, सीआरपीसी के तहत क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के पास शिकायत कर सकता है, ताकि फौजदारी कानून की प्रक्रिया शुरू हो सके।''
सीआरपीसी की धारा लाने का मकसदपीठ ने कहा, ''इसलिए, सीआरपीसी की धारा 195ए का मकसद इस मुद्दे पर स्पष्टता लाना था। जिस गवाह या दूसरे व्यक्ति को धमकी दी गई है, वह पुलिस के पास जा सकता है या आईपीसी की धारा 195ए के तहत अपराध के संबंध में शिकायत दायर कर सकता है, ताकि संज्ञेय अपराधों से संबंधित प्रक्रिया तुरंत शुरू हो सके।''
परेशानी का सबब बना हुई है धाराकोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 195ए का मुश्किल मामला कई कोर्टों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है, जिसके चलते विरोधाभासी और असंगत विचार सामने आए हैं। इसने केरल और कर्नाटक हाई कोर्ट के उन आदेशों का जिक्र किया, जहां अलग-अलग अपराधों में गवाहों को धमकाने के आरोप में गिरफ्तार आरोपियों को इस आधार पर जमानत दे दी गई थी कि अपराध दर्ज करने के लिए तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
शीर्ष अदालत ने दोनों हाई कोर्ट के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि इन अदालतों के जजों द्वारा प्रावधानों की व्याख्या मानने लायक नहीं है।
अलग हैं ये सभी धाराएं जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने कहा कि विधिक योजना से यह साफ है कि आईपीसी की धारा 195ए को धारा 193 (झूठी गवाही के लिए सजा), 194 (मौत की सजा वाले अपराध में दंड दिलाने के इरादे से झूठी गवाही देना या गढ़ना), 195 (उम्रकैद या सात साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराध में सजा दिलाने के इरादे से झूठी गवाही देना या गढ़ना) और 196 (झूठी गवाही) के तहत आने वाले अपराधों से अलग अपराध के रूप में बनाया गया था।
शिकायत कर सकते हैं सिर्फ ये लोगशीर्ष अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 193 से 196 के तहत अपराधों के लिए शिकायत केवल वही लोग कर सकते हैं जिनके नाम का जिक्र दंड प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी ) की धारा 195(1)(बी)(आई) में किया गया है और ये सभी गैर-संज्ञान अपराध हैं।
धारा 195ए के तहत किया गया संज्ञेय अपराधपीठ ने कहा, ''हालांकि, धारा 195ए के तहत किया गया अपराध एक संज्ञेय अपराध है और यह किसी व्यक्ति को उसकी जान, प्रतिष्ठा, संपत्ति या किसी ऐसे व्यक्ति की जान या प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की धमकी देकर झूठी गवाही देने के लिए उकसाने से जुड़ा है, जिसमें उस व्यक्ति की दिलचस्पी हो। पीठ ने कहा कि किसी गवाह को अदालत में आने से बहुत पहले भी धमकी दी जा सकती है, हालांकि ऐसी धमकी के तहत झूठी गवाही देना उस अदालत में चल रही कार्यवाही से जुड़ी होती है।
इन्हें दे सकता है शिकायतपीठ ने कहा, ''शायद यही वजह है कि इस अपराध को संज्ञेय बनाया गया ताकि जिस गवाह या दूसरे व्यक्ति को धमकी दी गई है, वह तुरंत कदम उठा सके। इसके लिए वह या तो धारा 154, सीआरपीसी के तहत संबंधित पुलिस अधिकारी को इस संज्ञेय अपराध के होने की मौखिक जानकारी दे सकता है, या धारा 195ए, सीआरपीसी के तहत क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के पास शिकायत कर सकता है, ताकि फौजदारी कानून की प्रक्रिया शुरू हो सके।''
सीआरपीसी की धारा लाने का मकसदपीठ ने कहा, ''इसलिए, सीआरपीसी की धारा 195ए का मकसद इस मुद्दे पर स्पष्टता लाना था। जिस गवाह या दूसरे व्यक्ति को धमकी दी गई है, वह पुलिस के पास जा सकता है या आईपीसी की धारा 195ए के तहत अपराध के संबंध में शिकायत दायर कर सकता है, ताकि संज्ञेय अपराधों से संबंधित प्रक्रिया तुरंत शुरू हो सके।''
परेशानी का सबब बना हुई है धाराकोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 195ए का मुश्किल मामला कई कोर्टों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है, जिसके चलते विरोधाभासी और असंगत विचार सामने आए हैं। इसने केरल और कर्नाटक हाई कोर्ट के उन आदेशों का जिक्र किया, जहां अलग-अलग अपराधों में गवाहों को धमकाने के आरोप में गिरफ्तार आरोपियों को इस आधार पर जमानत दे दी गई थी कि अपराध दर्ज करने के लिए तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
शीर्ष अदालत ने दोनों हाई कोर्ट के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि इन अदालतों के जजों द्वारा प्रावधानों की व्याख्या मानने लायक नहीं है।
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