जानी-मानी अदाकारा शेफाली शाह ने यूं तो अपने करियर की शुरुआत टीवी से की। फिर 'सत्या', 'मॉनसून वेडिंग', 'दिल धड़कने दो' और 'वक्त' जैसी फिल्मों के लिए चर्चा में रहीं, लेकिन उनकी एक्टिंग का असली दमखम दिखा OTT पर, जब वह एमी अवॉर्ड विनिंग सीरीज 'दिल्ली क्राइम' में मैडम सर यानी एसीपी वर्तिका चतुर्वेदी के रूप में नजर आईं। इसके बाद तो वह 'ह्यूमन', 'डार्लिंग्स', 'जलसा' और 'थ्री ऑफ अस' जैसी हर फिल्म, हर सीरीज से दर्शकों के दिल में अपनी छाप मजबूत करती गईं। 'दिल्ली क्राइम 2' के लिए प्रतिष्ठित एमी अवॉर्ड जीतने वाली शेफाली अब इसके तीसरे सीजन में लौटी हैं। जाहिर है यह शो उनके लिए बेहद स्पेशल है। वह कहती हैं कि उन्हें इस शो और किरदार से बेहद प्यार है।
वर्दी पहनते ही एक चौड़ आ जाती है
'दिल्ली क्राइम सीजन 3' से क्राइम और इन्वेस्टीगेशन की इस दुनिया में लौटने के बारे में शेफाली बताती हैं, 'मेरा एक्साइटमेंट तभी शुरू होता है, जब मुझे पता चलता है कि इस शो का नया सीजन आ रहा है। मुझे इस शो और मैडम सर से प्यार है। हालांकि, जब सेट पर जाने का वक्त आता है तो मेरा टेंशन, स्ट्रेस सब बढ़ जाता है। ऐसा लगता है कि मुझे कुछ नहीं आता, लेकिन जब मैं उसके जूते में पैर रखती हूं, मेरी चाल बदल जाती है। वह यूनिफॉर्म पहनते ही मुझमें अचानक एक चौड़ आ जाती है। वैसे, यह इमोशनली आपको सुखा देने वाला शो है। बहुत इंटेंस शो है। मैंने तीन सीजन कर लिए, मगर कभी भी ऐसा नहीं लगा कि सबकुछ आसान है। मैं सब आसानी से कर रही हूं, क्योंकि हर बार अलग केस है तो उनका रिएक्शन अलग होगा। वह पहले एसीपी थी, अब डीआईजी है, ट्रांसफर हो चुका है, तो काफी चीजें बदल चुकी हैं, इसलिए इसे करते वक्त कुछ भी बोरिंग या प्रिडिक्टेबल नहीं लगता है।'
बदलाव सबसे पहले घर से आता है
'दिल्ली क्राइम 4' गर्ल ट्रैफिकिंग यानी लड़कियों की तस्करी के मुद्दे पर आधारित है। शो करते हुए ये घटनाएं पर कितना असर करती हैं? यह पूछने पर वह कहती हैं, 'बहुत असर करती हैं। अगर मुझ पर असर नहीं होगा, मुझे महसूस नहीं होगा तो मैं दिखाऊंगी क्या? अगर मुझे ये चीज अंदर तक नहीं झकझोरेगी तो मैं उसे दिखा भी नहीं पाऊंगी। मैं सच में कह रही हूं कि जो इमोशन आप स्क्रीन पर देखते हैं, वो 100 फीसदी सच होता है।'
मगर शेफाली को खुद लड़कियों से जुड़े कौन से मुद्दे परेशान करते हैं? इस पर वह कहती हैं, 'बहुत सारी समस्याएं हैं। भ्रूण हत्या, किसी भी तरह का मानसिक, शारीरिक या सेक्शुअल शोषण। समाज में बराबरी का न होगा लेकिन ये सब इतनी आसानी से नहीं बदलेगा। ये बरसों की सोच है जिसे बदलना है और यह बदलाव सबसे पहले आपके घर से आएगा। मैं हमेशा कहती रही हूं कि हमारी बेटियां तभी सुरक्षित होंगी जब हम अपने बेटों की सही तरह से परवरिश करेंगे। यह हमारी जिम्मेदारी है।'
अपनी प्राथमिकताएं तय करना सीख गई हूं
सीरीज रसिका दुग्गल के किरदार के बहाने औरतों पर घर और काम के दबाव को भी दिखाती है। शेफाली खुद इन दोनों के बीच कैसे बैलेंस बनाती हैं? इस पर वह बताती हैं, 'आपको बस करना होता है। हमारे पास ऑप्शन क्या है? ये है कि मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं तो अब उन्हें मेरी उतनी जरूरत नहीं है, पर अब भी बहुत सारी चीजें हैं। हालांकि, वक्त के साथ मैं प्राथमिकताएं तय करना सीख गई हूं कि कौन सी चीज तुरंत करना जरूरी है। जैसे, मेरा यह रहता है कि अगर घर पर सब खुश, स्वस्थ और सुरक्षित हैं तो ठीक है। अगर इन तीन चीजों में दिक्कत है तो मैं दुनिया की बाकी सब चीजें छोड़ दूंगी।
उसके अलावा खाना नहीं बना, खाना नहीं खाया, पानी नहीं आया, ये सब हैंडल करना बहुत थकाऊ होता है। खासकर, इसलिए कि वर्तिका की तरह मैं भी अपने काम में डूब जाती हूं, तो उस वक्त अगर घर में खाना नहीं बना तो क्या करूं? लेकिन फोन आता है, तो मैं कहती हूं ऑर्डर कर लो। उस पर भी ओटीपी की व्यथा कथा शुरू हो जाती है (हंसती हैं)। ये ओटीपी बहुत दर्दनाक चीज है। मतलब, दिल्ली क्राइम के पहले सीजन की सनडांस में स्क्रीनिंग चल रही थी। शो शुरू होने वाला था और मेरा बेटा फोन पर फोन किए जा रहा है। मैंने पूछा क्या हुआ, सब जिंदा हैं, तो बोला- मुझे ओटीपी चाहिए। मतलब क्या कहूं पर मुझे देना पड़ा।'
वर्दी पहनते ही एक चौड़ आ जाती है
'दिल्ली क्राइम सीजन 3' से क्राइम और इन्वेस्टीगेशन की इस दुनिया में लौटने के बारे में शेफाली बताती हैं, 'मेरा एक्साइटमेंट तभी शुरू होता है, जब मुझे पता चलता है कि इस शो का नया सीजन आ रहा है। मुझे इस शो और मैडम सर से प्यार है। हालांकि, जब सेट पर जाने का वक्त आता है तो मेरा टेंशन, स्ट्रेस सब बढ़ जाता है। ऐसा लगता है कि मुझे कुछ नहीं आता, लेकिन जब मैं उसके जूते में पैर रखती हूं, मेरी चाल बदल जाती है। वह यूनिफॉर्म पहनते ही मुझमें अचानक एक चौड़ आ जाती है। वैसे, यह इमोशनली आपको सुखा देने वाला शो है। बहुत इंटेंस शो है। मैंने तीन सीजन कर लिए, मगर कभी भी ऐसा नहीं लगा कि सबकुछ आसान है। मैं सब आसानी से कर रही हूं, क्योंकि हर बार अलग केस है तो उनका रिएक्शन अलग होगा। वह पहले एसीपी थी, अब डीआईजी है, ट्रांसफर हो चुका है, तो काफी चीजें बदल चुकी हैं, इसलिए इसे करते वक्त कुछ भी बोरिंग या प्रिडिक्टेबल नहीं लगता है।'
बदलाव सबसे पहले घर से आता है
'दिल्ली क्राइम 4' गर्ल ट्रैफिकिंग यानी लड़कियों की तस्करी के मुद्दे पर आधारित है। शो करते हुए ये घटनाएं पर कितना असर करती हैं? यह पूछने पर वह कहती हैं, 'बहुत असर करती हैं। अगर मुझ पर असर नहीं होगा, मुझे महसूस नहीं होगा तो मैं दिखाऊंगी क्या? अगर मुझे ये चीज अंदर तक नहीं झकझोरेगी तो मैं उसे दिखा भी नहीं पाऊंगी। मैं सच में कह रही हूं कि जो इमोशन आप स्क्रीन पर देखते हैं, वो 100 फीसदी सच होता है।'
मगर शेफाली को खुद लड़कियों से जुड़े कौन से मुद्दे परेशान करते हैं? इस पर वह कहती हैं, 'बहुत सारी समस्याएं हैं। भ्रूण हत्या, किसी भी तरह का मानसिक, शारीरिक या सेक्शुअल शोषण। समाज में बराबरी का न होगा लेकिन ये सब इतनी आसानी से नहीं बदलेगा। ये बरसों की सोच है जिसे बदलना है और यह बदलाव सबसे पहले आपके घर से आएगा। मैं हमेशा कहती रही हूं कि हमारी बेटियां तभी सुरक्षित होंगी जब हम अपने बेटों की सही तरह से परवरिश करेंगे। यह हमारी जिम्मेदारी है।'
अपनी प्राथमिकताएं तय करना सीख गई हूं
सीरीज रसिका दुग्गल के किरदार के बहाने औरतों पर घर और काम के दबाव को भी दिखाती है। शेफाली खुद इन दोनों के बीच कैसे बैलेंस बनाती हैं? इस पर वह बताती हैं, 'आपको बस करना होता है। हमारे पास ऑप्शन क्या है? ये है कि मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं तो अब उन्हें मेरी उतनी जरूरत नहीं है, पर अब भी बहुत सारी चीजें हैं। हालांकि, वक्त के साथ मैं प्राथमिकताएं तय करना सीख गई हूं कि कौन सी चीज तुरंत करना जरूरी है। जैसे, मेरा यह रहता है कि अगर घर पर सब खुश, स्वस्थ और सुरक्षित हैं तो ठीक है। अगर इन तीन चीजों में दिक्कत है तो मैं दुनिया की बाकी सब चीजें छोड़ दूंगी।
उसके अलावा खाना नहीं बना, खाना नहीं खाया, पानी नहीं आया, ये सब हैंडल करना बहुत थकाऊ होता है। खासकर, इसलिए कि वर्तिका की तरह मैं भी अपने काम में डूब जाती हूं, तो उस वक्त अगर घर में खाना नहीं बना तो क्या करूं? लेकिन फोन आता है, तो मैं कहती हूं ऑर्डर कर लो। उस पर भी ओटीपी की व्यथा कथा शुरू हो जाती है (हंसती हैं)। ये ओटीपी बहुत दर्दनाक चीज है। मतलब, दिल्ली क्राइम के पहले सीजन की सनडांस में स्क्रीनिंग चल रही थी। शो शुरू होने वाला था और मेरा बेटा फोन पर फोन किए जा रहा है। मैंने पूछा क्या हुआ, सब जिंदा हैं, तो बोला- मुझे ओटीपी चाहिए। मतलब क्या कहूं पर मुझे देना पड़ा।'
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