एक सेठजी ने सुना कि भागवत सुनने से व्यक्ति को परम गति प्राप्त होती है। उन्होंने अपने पुरोहित को कॉल पर भागवत कथा सुनाने का अनुरोध किया। पुरोहित ने कहा, 'कथा महीने भर चलेगी, इसका खर्चा कम से कम एक लाख रुपये होगा,' सेठ ने सोचा, 'एक लाख रुपये में मोक्ष मिल जाये, तो सस्ता सौदा है।' उधर पुरोहित ने सोचा, 'एक महीने में एक लाख की आमदनी हो जाये तो बहुत है।' भागवत पाठ संपन्न हुआ, मरने के बाद यमराज ने दोनों को ही नरक में भेज दिया, कारण यह कि वक्ता और श्रोता, दोनों में ही भावना नहीं थी, वे सौदेबाजी कर रहे थे।
भाव स्वतः आता है और विचार सोच-समझकर: एक आदमी शाम को ऑफिस से घर लौटा तो बहुत थका हुआ था। सोफे पर लेटते ही उसे नींद आ गई, उसकी पत्नी जब पानी लेकर आई तो देखा कि पति को झपकी आ चुकी है, वह गिलास लिए खड़ी रही। कुछ पलों के बाद जब पति की आंख खुली तो उसने कहा, 'पानी' और पत्नी ने तुरंत पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ा दिया। यह किस्सा किसी दूसरी महिला ने सुना, तो उसने अपने पति से कहा, 'शाम को आप अपने काम से लौटकर आयें तो थोड़ी देर लेटकर झपकी ले लें। मैं पानी लेकर खड़ी रहूंगी, उठकर आप जैसे ही मांगेंगे, मैं तुरंत गिलास थमा दूंगी।'
पहली महिला ने अपनी भावना की वजह से पति के उठने का इंतजार किया था, जबकि दूसरी ने सोच-विचार कर, प्रतिस्पर्धा की वजह से। पति के लिए ऐसा आचरण उसने दिखाने के लिए किया। आज पूरे समाज की स्थिति कुछ इसी तरह की है। अपने परिवार या समाज में हम जो कुछ कर रहे हैं, वह भावना की वजह से नहीं है, वह सोच-विचार का फल है। लड़का और लड़की शादी से पूर्व एक-दूसरे के गुणों पर विचार करते हैं, जैसे सुंदरता, नौकरी, परिवार का स्तर, सामाजिक प्रतिष्ठा आदि। इसमें कोई भावना नहीं है, सोच-विचार है, भावना शादी के बाद पैदा होती है। इसी तरह पिता और पुत्र अपनी-अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए एक-दूसरे को उपदेश देते हैं। पति और पत्नी परिवार के लिए अपने योगदान का जिक्र करते हैं। ऐसा वे प्रेम के कारण नहीं, बल्कि अपना प्रभाव जमाने के लिए करते हैं, इसके लिए वे अपने बौद्धिक कौशल का प्रयोग करते हैं। जब हम भावना से कोई कार्य करते हैं, तो उसका प्रतिफल हमें हमारी भावना के अनुरूप ही प्राप्त होता है, इसलिए पूजा-पाठ, ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से करें, जिससे ईश्वरीय आशीर्वाद का चमत्कार आपको प्राप्त हो सके।
भाव स्वतः आता है और विचार सोच-समझकर: एक आदमी शाम को ऑफिस से घर लौटा तो बहुत थका हुआ था। सोफे पर लेटते ही उसे नींद आ गई, उसकी पत्नी जब पानी लेकर आई तो देखा कि पति को झपकी आ चुकी है, वह गिलास लिए खड़ी रही। कुछ पलों के बाद जब पति की आंख खुली तो उसने कहा, 'पानी' और पत्नी ने तुरंत पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ा दिया। यह किस्सा किसी दूसरी महिला ने सुना, तो उसने अपने पति से कहा, 'शाम को आप अपने काम से लौटकर आयें तो थोड़ी देर लेटकर झपकी ले लें। मैं पानी लेकर खड़ी रहूंगी, उठकर आप जैसे ही मांगेंगे, मैं तुरंत गिलास थमा दूंगी।'
पहली महिला ने अपनी भावना की वजह से पति के उठने का इंतजार किया था, जबकि दूसरी ने सोच-विचार कर, प्रतिस्पर्धा की वजह से। पति के लिए ऐसा आचरण उसने दिखाने के लिए किया। आज पूरे समाज की स्थिति कुछ इसी तरह की है। अपने परिवार या समाज में हम जो कुछ कर रहे हैं, वह भावना की वजह से नहीं है, वह सोच-विचार का फल है। लड़का और लड़की शादी से पूर्व एक-दूसरे के गुणों पर विचार करते हैं, जैसे सुंदरता, नौकरी, परिवार का स्तर, सामाजिक प्रतिष्ठा आदि। इसमें कोई भावना नहीं है, सोच-विचार है, भावना शादी के बाद पैदा होती है। इसी तरह पिता और पुत्र अपनी-अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए एक-दूसरे को उपदेश देते हैं। पति और पत्नी परिवार के लिए अपने योगदान का जिक्र करते हैं। ऐसा वे प्रेम के कारण नहीं, बल्कि अपना प्रभाव जमाने के लिए करते हैं, इसके लिए वे अपने बौद्धिक कौशल का प्रयोग करते हैं। जब हम भावना से कोई कार्य करते हैं, तो उसका प्रतिफल हमें हमारी भावना के अनुरूप ही प्राप्त होता है, इसलिए पूजा-पाठ, ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना से करें, जिससे ईश्वरीय आशीर्वाद का चमत्कार आपको प्राप्त हो सके।
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