झुंझुनूं: राजस्थान के पीडब्ल्यूडी विभाग में अफसरशाही के अजीबोगरीब फैसलों पर जोधपुर हाईकोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए झुंझुनूं निवासी सहायक अभियंता (AEN) हिमांशु को एपीओ (Awaiting Posting Order) किए जाने पर तत्काल रोक लगा दी है। साथ ही विभाग के उच्च अधिकारियों से कड़े शब्दों में जवाब तलब किया गया है। इस पूरे मामले में कोर्ट में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय महला और सुनीता महला ने जो तथ्य रखे, वे चौंकाने वाले हैं। अधिवक्ता महला का कहना है कि यह मामला न केवल प्रशासनिक मनमानी का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह अधिकारियों की कथित राजनीति और व्यक्तिगत रंजिशें ईमानदारी से काम करने वाले अफसरों को निशाना बनाती हैं।
क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स में अधिवक्ता संजय महला ने बताया कि एईएन हिमांशु ने 20 जनवरी को चूरू जिले में PWD सिटी डिवीजन में कार्यभार संभाला। ठीक दो महीने बाद 17 मार्च को उन्हें एपीओ कर दिया गया। मगर अजीब बात ये रही कि एपीओ करने के बाद भी हिमांशु से लगातार विभागीय कार्य लिया जाता रहा। मीडिया रिपोर्ट्स में एडवोकेट महला ने बताया कि इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के अप्रैल दौरे के दौरान भी एपीओ किए जा चुके हिमांशु की ड्यूटी का आदेश जारी किया गया। फिर करीब ढाई महीने बाद 3 जून को उन्हें अचानक रिलीव कर दिया गया। ये सब दर्शाता है कि पीडब्ल्यूडी में कैसे नियमों को ताक पर रखकर अफसरों की मनमर्जी चल रही है।
कोर्ट की सख्ती, अफसरों से मांगा जवाब
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय महला ने कोर्ट में दलील दी कि यह एपीओ आदेश पूरी तरह से नियमों के खिलाफ और राजनीति से प्रेरित है। साथ ही उन्होंने इस तथ्य को भी सामने रखा कि हिमांशु की पत्नी झुंझुनूं में जेईएन पद पर कार्यरत हैं, और सरकारी सेवा में कार्यरत दम्पत्तियों को एक स्थान या पास-पास पोस्टिंग देने का स्पष्ट प्रावधान है। बावजूद इसके, हिमांशु को एपीओ कर जयपुर भेजा गया, जो सेवा नियमों की भी अनदेखी है।
कोर्ट ने यह दिए आदेश
इन तर्कों पर सहमति जताते हुए अवकाशकालीन न्यायाधीश जस्टिस सुनिल बेनीवाल ने एईएन हिमांशु के एपीओ आदेश पर स्टे जारी करते हुए, पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव, संयुक्त सचिव व शासन सचिवालय जयपुर सहित संबंधित अधिकारियों को 15 जुलाई से पहले जवाब देने का निर्देश दिया है तथा मामले को 15 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने के आदेश जारी किए।
अब सवाल ये है
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय महला एवं सुनिता महला ने सवाल खड़े किए है कि क्या एपीओ का खेल विभागीय साजिश था और क्या अफसरशाही के दबाव में नियमों को ताक पर रखकर आदेश जारी किए गए? वही इन सबके बीच मामला सामने के बाद लोगों का कहना है कि क्या इस आदेश से एक ईमानदार अफसर को टारगेट किया गया? अब इन तमाम सवालों का जवाब अब PWD के आला अफसरों को हाईकोर्ट में देना होगा।
क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स में अधिवक्ता संजय महला ने बताया कि एईएन हिमांशु ने 20 जनवरी को चूरू जिले में PWD सिटी डिवीजन में कार्यभार संभाला। ठीक दो महीने बाद 17 मार्च को उन्हें एपीओ कर दिया गया। मगर अजीब बात ये रही कि एपीओ करने के बाद भी हिमांशु से लगातार विभागीय कार्य लिया जाता रहा। मीडिया रिपोर्ट्स में एडवोकेट महला ने बताया कि इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के अप्रैल दौरे के दौरान भी एपीओ किए जा चुके हिमांशु की ड्यूटी का आदेश जारी किया गया। फिर करीब ढाई महीने बाद 3 जून को उन्हें अचानक रिलीव कर दिया गया। ये सब दर्शाता है कि पीडब्ल्यूडी में कैसे नियमों को ताक पर रखकर अफसरों की मनमर्जी चल रही है।
कोर्ट की सख्ती, अफसरों से मांगा जवाब
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय महला ने कोर्ट में दलील दी कि यह एपीओ आदेश पूरी तरह से नियमों के खिलाफ और राजनीति से प्रेरित है। साथ ही उन्होंने इस तथ्य को भी सामने रखा कि हिमांशु की पत्नी झुंझुनूं में जेईएन पद पर कार्यरत हैं, और सरकारी सेवा में कार्यरत दम्पत्तियों को एक स्थान या पास-पास पोस्टिंग देने का स्पष्ट प्रावधान है। बावजूद इसके, हिमांशु को एपीओ कर जयपुर भेजा गया, जो सेवा नियमों की भी अनदेखी है।
कोर्ट ने यह दिए आदेश
इन तर्कों पर सहमति जताते हुए अवकाशकालीन न्यायाधीश जस्टिस सुनिल बेनीवाल ने एईएन हिमांशु के एपीओ आदेश पर स्टे जारी करते हुए, पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव, संयुक्त सचिव व शासन सचिवालय जयपुर सहित संबंधित अधिकारियों को 15 जुलाई से पहले जवाब देने का निर्देश दिया है तथा मामले को 15 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने के आदेश जारी किए।
अब सवाल ये है
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय महला एवं सुनिता महला ने सवाल खड़े किए है कि क्या एपीओ का खेल विभागीय साजिश था और क्या अफसरशाही के दबाव में नियमों को ताक पर रखकर आदेश जारी किए गए? वही इन सबके बीच मामला सामने के बाद लोगों का कहना है कि क्या इस आदेश से एक ईमानदार अफसर को टारगेट किया गया? अब इन तमाम सवालों का जवाब अब PWD के आला अफसरों को हाईकोर्ट में देना होगा।
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