नई दिल्ली: भारत ने व्यापार से जुड़ी कई गतिविधियों को लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश पर बैन लगाया है। इसके बाद ये दोनों देश एक दूसरे के करीब आ गए हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश ने सोमवार को ढाका में अपनी संयुक्त आर्थिक आयोग (JEC) की बैठक की थी। यह बैठक 20 साल बाद हुई है। सूत्रों के मुताबिक दोनों देशों ने व्यापार, कृषि, IT, खाद्य, ऊर्जा, दवा और कनेक्टिविटी जैसे कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई है।
वहीं दूसरी ओर भारत वैश्विक टेक्सटाइल बाजार में अपनी कीमत की पकड़ फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बांग्लादेश, वियतनाम और चीन जैसे देश अब ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन गए हैं। सरकार एक ऐसी योजना बना रही है जिससे प्रोडक्शन की लागत कम की जा सके। भारत का यह कदम बांग्लादेश को जोड़कर भी देखा जा रहा है। चूंकि बांग्लादेश टेक्सटाइल सेक्टर में दुनिया में टॉप पॉजिशन पर है। अब बांग्लादेश पाकिस्तान के करीब भी आ गया है। वहीं बांग्लादेश और पाकिस्तान पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के मुकाबले बहुत कम टैरिफ लगाया है। ऐसे में भारत अपने टेक्सटाइल सेक्टर को बचाने और उसे बढ़ाने के लिए ये कदम उठा रहा है।
पाकिस्तान की मदद करेगा बांग्लादेशबांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के दौरान दोनों देशों के रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं रहे। इसलिए ढाका ने पिछले दो दशकों से इस आयोग की बैठक नहीं बुलाई थी। पिछले दस सालों में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से काफी आगे निकल गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण, अब उसके पास ढाका को देने के लिए ज्यादा आर्थिक फायदे नहीं हैं।
क्या है भारत का प्लान?टेक्सटाइल सेक्टर से जुड़ी भारत की यह योजना कई चरणों में लागू होगी। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार पहले दो साल के लिए एक छोटी अवधि की योजना होगी, फिर पांच साल के लिए एक मध्यम अवधि की योजना और उसके बाद एक लंबी अवधि की योजना। इस योजना में कच्चे माल, मजदूरों से जुड़े नियम, टैक्स और दूसरे जरूरी नियमों जैसी सभी बड़ी लागतों पर गौर किया जाएगा। इसका मकसद उत्पादन और निर्यात को सस्ता बनाना है।
100 अरब डॉलर की उम्मीदइस नई योजना से साल 2030 तक टेक्सटाइल निर्यात को मौजूदा लगभग 40 अरब डॉलर से बढ़ाकर 100 अरब डॉलर (करीब 8.80 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचाने की उम्मीद है। इस काम से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इस योजना का लक्ष्य यह पता लगाना है कि भारत की लागत अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में कहां ज्यादा है और उन कमियों को दूर करना है।
एक अधिकारी ने बताया, 'हमारा मकसद भारत की लागत की तुलना दुनिया के मुख्य प्रतिस्पर्धियों से करना है और उत्पादन व निर्यात की लागत कम करने के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग में होने वाली बर्बादी को भी घटाने के उपायों पर काम करना है।'
भारतीय टेक्सटाइल पीछे क्यों हैं?दुनिया के सबसे बड़े टेक्सटाइल उत्पादकों में से एक होने के बावजूद, भारत कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है। मजदूरों से जुड़े नियमों में लचीलेपन की कमी, महंगे कच्चे माल और ज्यादा लॉजिस्टिक्स (सामान ढोने) और ऊर्जा की लागत भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। ये सब मिलकर भारत की वैश्विक बाजार में पकड़ को कमजोर कर रहे हैं।
इसकी तुलना में, बांग्लादेश और वियतनाम कम लागत और बेहतर उत्पादकता के साथ काम कर रहे हैं। उनके मजदूरों से जुड़े नियम ज्यादा लचीले माने जाते हैं। साथ ही, उन्हें कच्चे माल और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में ड्यूटी-फ्री (बिना टैक्स के) पहुंच का फायदा मिलता है। वियतनाम चीन को भी बिना किसी टैक्स के सामान भेजता है, जबकि बांग्लादेश को भारत की तुलना में कम मजदूरी का फायदा मिलता है। उद्योग के प्रतिनिधियों का अनुमान है कि इन प्रतिस्पर्धी देशों में मजदूरों की उत्पादकता 20% से 40% ज्यादा है।
वहीं दूसरी ओर भारत वैश्विक टेक्सटाइल बाजार में अपनी कीमत की पकड़ फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बांग्लादेश, वियतनाम और चीन जैसे देश अब ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन गए हैं। सरकार एक ऐसी योजना बना रही है जिससे प्रोडक्शन की लागत कम की जा सके। भारत का यह कदम बांग्लादेश को जोड़कर भी देखा जा रहा है। चूंकि बांग्लादेश टेक्सटाइल सेक्टर में दुनिया में टॉप पॉजिशन पर है। अब बांग्लादेश पाकिस्तान के करीब भी आ गया है। वहीं बांग्लादेश और पाकिस्तान पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के मुकाबले बहुत कम टैरिफ लगाया है। ऐसे में भारत अपने टेक्सटाइल सेक्टर को बचाने और उसे बढ़ाने के लिए ये कदम उठा रहा है।
पाकिस्तान की मदद करेगा बांग्लादेशबांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के दौरान दोनों देशों के रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं रहे। इसलिए ढाका ने पिछले दो दशकों से इस आयोग की बैठक नहीं बुलाई थी। पिछले दस सालों में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से काफी आगे निकल गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण, अब उसके पास ढाका को देने के लिए ज्यादा आर्थिक फायदे नहीं हैं।
क्या है भारत का प्लान?टेक्सटाइल सेक्टर से जुड़ी भारत की यह योजना कई चरणों में लागू होगी। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार पहले दो साल के लिए एक छोटी अवधि की योजना होगी, फिर पांच साल के लिए एक मध्यम अवधि की योजना और उसके बाद एक लंबी अवधि की योजना। इस योजना में कच्चे माल, मजदूरों से जुड़े नियम, टैक्स और दूसरे जरूरी नियमों जैसी सभी बड़ी लागतों पर गौर किया जाएगा। इसका मकसद उत्पादन और निर्यात को सस्ता बनाना है।
100 अरब डॉलर की उम्मीदइस नई योजना से साल 2030 तक टेक्सटाइल निर्यात को मौजूदा लगभग 40 अरब डॉलर से बढ़ाकर 100 अरब डॉलर (करीब 8.80 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचाने की उम्मीद है। इस काम से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इस योजना का लक्ष्य यह पता लगाना है कि भारत की लागत अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में कहां ज्यादा है और उन कमियों को दूर करना है।
एक अधिकारी ने बताया, 'हमारा मकसद भारत की लागत की तुलना दुनिया के मुख्य प्रतिस्पर्धियों से करना है और उत्पादन व निर्यात की लागत कम करने के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग में होने वाली बर्बादी को भी घटाने के उपायों पर काम करना है।'
भारतीय टेक्सटाइल पीछे क्यों हैं?दुनिया के सबसे बड़े टेक्सटाइल उत्पादकों में से एक होने के बावजूद, भारत कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है। मजदूरों से जुड़े नियमों में लचीलेपन की कमी, महंगे कच्चे माल और ज्यादा लॉजिस्टिक्स (सामान ढोने) और ऊर्जा की लागत भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। ये सब मिलकर भारत की वैश्विक बाजार में पकड़ को कमजोर कर रहे हैं।
इसकी तुलना में, बांग्लादेश और वियतनाम कम लागत और बेहतर उत्पादकता के साथ काम कर रहे हैं। उनके मजदूरों से जुड़े नियम ज्यादा लचीले माने जाते हैं। साथ ही, उन्हें कच्चे माल और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में ड्यूटी-फ्री (बिना टैक्स के) पहुंच का फायदा मिलता है। वियतनाम चीन को भी बिना किसी टैक्स के सामान भेजता है, जबकि बांग्लादेश को भारत की तुलना में कम मजदूरी का फायदा मिलता है। उद्योग के प्रतिनिधियों का अनुमान है कि इन प्रतिस्पर्धी देशों में मजदूरों की उत्पादकता 20% से 40% ज्यादा है।
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