नई दिल्ली: भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है। इसके उलट उनकी संपत्ति उतनी तेजी से नहीं बढ़ी है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों से इसका पता चलता है। डेटा के अनुसार, 2019 से 2025 के बीच जहां हर साल वित्तीय संपत्ति में 48% की बढ़ोतरी हुई। वहीं, देनदारियों यानी कर्ज में 102% का भारी उछाल आया है। इस दौरान जीडीपी प्रतिशत के रूप में भी वित्तीय संपत्ति का एडिशन कम हुआ है। इसके उलट देनदारियों का जुड़ाव बढ़ा है। हालांकि, इस बीच बचत और निवेश के तरीकों में बड़ा बदलाव आया है। इसमें म्यूचुअल फंड एक लोकप्रिय साधन बनकर उभरे हैं।
यह विश्लेषण आरबीआई के आंकड़ों पर आधारित है। इनसे पता चलता है कि भारतीय परिवारों ने 2019-20 में अपनी वित्तीय संपत्ति में 24.1 लाख करोड़ रुपये जोड़े थे। यह आंकड़ा 2024-25 तक बढ़कर 35.6 लाख करोड़ रुपये हो गया। यानी कुल 48% की बढ़ोतरी। दूसरी ओर, इसी अवधि में परिवारों ने अपनी देनदारियों में 7.5 लाख करोड़ रुपये से 15.7 लाख करोड़ रुपये का इजाफा किया। यह 102% की बढ़ोतरी दर्शाता है। इसका मतलब है कि हर साल कर्ज संपत्ति से दोगुना तेजी से बढ़ रहा है। बढ़ते कर्ज के इस 'बम' ने टेंशन बढ़ा दी है।
GDP प्रतिशत में भी साफ दिख रही है तस्वीर
अगर हम इसे देश की कुल आय यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में देखें तो भी यह तस्वीर साफ होती है। 2019-20 में परिवारों की ओर से हर साल जोड़ी गई वित्तीय संपत्ति जीडीपी का 12% थी। यह 2024-25 तक घटकर 10.8% रह गई। महामारी के बाद यह आंकड़ा लगभग इसी स्तर पर बना हुआ है।
वहीं, परिवारों की वित्तीय देनदारियां 2019 में जीडीपी का 3.9% थीं, जो 2024-25 में बढ़कर 4.7% हो गईं। हालांकि, इस मामले में हाल के वर्षों में कुछ सुधार हुआ है। 2023-24 में यह अनुपात महामारी के बाद के सबसे ऊंचे स्तर 6.2% पर पहुंच गया था, लेकिन 2024-25 में इसमें गिरावट आई है।
सेविंंग के ट्रेंड में बड़ा बदलाव ये आंकड़े बताते हैं कि भारतीय किस तरह से अपनी बचत और निवेश कर रहे हैं। बैंक जमा अभी भी बचत का मुख्य जरिया बने हुए हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड का हिस्सा तेजी से बढ़ा है। 2019-20 में कुल घरेलू वित्तीय संपत्ति में बैंक जमा का हिस्सा 32% था, जो 2024-25 तक मामूली बढ़कर 33.3% हो गया। अगर हम पैसों के हिसाब से देखें तो 2019-20 में परिवारों ने बैंक जमा में 7.7 लाख करोड़ रुपये जोड़े थे, जो 2024-25 तक 54% बढ़कर 11.8 लाख करोड़ रुपये हो गए।
लेकिन, म्यूचुअल फंड में निवेश का तरीका पूरी तरह से बदल गया है। 2019-20 में कुल घरेलू वित्तीय संपत्ति में म्यूचुअल फंड का हिस्सा सिर्फ 2.6% था, जो 2024-25 तक छलांग लगाकर 13.1% पर पहुंच गया। यानी म्यूचुअल फंड में नया निवेश 2019-20 के 61,686 करोड़ रुपये से 655% बढ़कर 2024-25 में 4.7 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह दिखाता है कि लोग अब ज्यादातर पैसा म्यूचुअल फंड में लगा रहे हैं।
म्यूचुअल फंड का यह बढ़ता हुआ हिस्सा, करेंसी (यानी हाथ में रखे पैसे) में किए जाने वाले निवेश की कीमत पर आया है। 2019-20 और 2024-25 के बीच करेंसी में निवेश का हिस्सा 11.7% से घटकर 5.9% रह गया। इसका मतलब है कि लोग अब नकदी के बजाय म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना पसंद कर रहे हैं।
अन्य बचत और निवेश के साधनों जैसे जीवन बीमा फंड, प्रॉविडेंट फंड और पेंशन फंड, इक्विटी (शेयर बाजार) और छोटी बचत योजनाओं में 2019-20 और 2024-25 के बीच हिस्सेदारी में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। वे लगभग उसी स्तर पर बने हुए हैं।
यह स्थिति महत्वपूर्ण आर्थिक बदलाव को दर्शाती है। जहां एक ओर भारतीय परिवार तेजी से कर्ज ले रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर वे अपनी बचत को ज्यादा रिटर्न देने वाले साधनों में निवेश करने की ओर बढ़ रहे हैं। म्यूचुअल फंड अब आम लोगों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन गए हैं। यह बदलाव वित्तीय साक्षरता में बढ़ोतरी और बेहतर निवेश के अवसरों की तलाश को भी दिखाता है।
यह विश्लेषण आरबीआई के आंकड़ों पर आधारित है। इनसे पता चलता है कि भारतीय परिवारों ने 2019-20 में अपनी वित्तीय संपत्ति में 24.1 लाख करोड़ रुपये जोड़े थे। यह आंकड़ा 2024-25 तक बढ़कर 35.6 लाख करोड़ रुपये हो गया। यानी कुल 48% की बढ़ोतरी। दूसरी ओर, इसी अवधि में परिवारों ने अपनी देनदारियों में 7.5 लाख करोड़ रुपये से 15.7 लाख करोड़ रुपये का इजाफा किया। यह 102% की बढ़ोतरी दर्शाता है। इसका मतलब है कि हर साल कर्ज संपत्ति से दोगुना तेजी से बढ़ रहा है। बढ़ते कर्ज के इस 'बम' ने टेंशन बढ़ा दी है।
GDP प्रतिशत में भी साफ दिख रही है तस्वीर
अगर हम इसे देश की कुल आय यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में देखें तो भी यह तस्वीर साफ होती है। 2019-20 में परिवारों की ओर से हर साल जोड़ी गई वित्तीय संपत्ति जीडीपी का 12% थी। यह 2024-25 तक घटकर 10.8% रह गई। महामारी के बाद यह आंकड़ा लगभग इसी स्तर पर बना हुआ है।
वहीं, परिवारों की वित्तीय देनदारियां 2019 में जीडीपी का 3.9% थीं, जो 2024-25 में बढ़कर 4.7% हो गईं। हालांकि, इस मामले में हाल के वर्षों में कुछ सुधार हुआ है। 2023-24 में यह अनुपात महामारी के बाद के सबसे ऊंचे स्तर 6.2% पर पहुंच गया था, लेकिन 2024-25 में इसमें गिरावट आई है।
सेविंंग के ट्रेंड में बड़ा बदलाव ये आंकड़े बताते हैं कि भारतीय किस तरह से अपनी बचत और निवेश कर रहे हैं। बैंक जमा अभी भी बचत का मुख्य जरिया बने हुए हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड का हिस्सा तेजी से बढ़ा है। 2019-20 में कुल घरेलू वित्तीय संपत्ति में बैंक जमा का हिस्सा 32% था, जो 2024-25 तक मामूली बढ़कर 33.3% हो गया। अगर हम पैसों के हिसाब से देखें तो 2019-20 में परिवारों ने बैंक जमा में 7.7 लाख करोड़ रुपये जोड़े थे, जो 2024-25 तक 54% बढ़कर 11.8 लाख करोड़ रुपये हो गए।
लेकिन, म्यूचुअल फंड में निवेश का तरीका पूरी तरह से बदल गया है। 2019-20 में कुल घरेलू वित्तीय संपत्ति में म्यूचुअल फंड का हिस्सा सिर्फ 2.6% था, जो 2024-25 तक छलांग लगाकर 13.1% पर पहुंच गया। यानी म्यूचुअल फंड में नया निवेश 2019-20 के 61,686 करोड़ रुपये से 655% बढ़कर 2024-25 में 4.7 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह दिखाता है कि लोग अब ज्यादातर पैसा म्यूचुअल फंड में लगा रहे हैं।
म्यूचुअल फंड का यह बढ़ता हुआ हिस्सा, करेंसी (यानी हाथ में रखे पैसे) में किए जाने वाले निवेश की कीमत पर आया है। 2019-20 और 2024-25 के बीच करेंसी में निवेश का हिस्सा 11.7% से घटकर 5.9% रह गया। इसका मतलब है कि लोग अब नकदी के बजाय म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना पसंद कर रहे हैं।
अन्य बचत और निवेश के साधनों जैसे जीवन बीमा फंड, प्रॉविडेंट फंड और पेंशन फंड, इक्विटी (शेयर बाजार) और छोटी बचत योजनाओं में 2019-20 और 2024-25 के बीच हिस्सेदारी में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। वे लगभग उसी स्तर पर बने हुए हैं।
यह स्थिति महत्वपूर्ण आर्थिक बदलाव को दर्शाती है। जहां एक ओर भारतीय परिवार तेजी से कर्ज ले रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर वे अपनी बचत को ज्यादा रिटर्न देने वाले साधनों में निवेश करने की ओर बढ़ रहे हैं। म्यूचुअल फंड अब आम लोगों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन गए हैं। यह बदलाव वित्तीय साक्षरता में बढ़ोतरी और बेहतर निवेश के अवसरों की तलाश को भी दिखाता है।
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