नई दिल्ली: क्या मिडिल क्लास के सामने नौकरी का संकट शुरू हो गया है। एक एक्सपर्ट के मुताबिक स्थिति कुछ ऐसी ही सामने आ रही है। जाने-माने निवेश प्रबंधक सौरभ मुखर्जी (Saurabh Mukherjea) का कहना है कि अब वैसी 'महीने की पक्की सैलरी' वाली नौकरी का जमाना खत्म हो गया है, जैसा हम पहले देखते थे। उन्होंने मिडिल क्लास को चेतावनी देते हुए कहा कि कि भारत में पढ़े-लिखे लोगों के लिए भविष्य में नौकरी मिलना बहुत मुश्किल हो सकता है।
सौरभ मुखर्जी मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी हैं। बिजनेस टुडे के मुताबिक उन्होंने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि भारत में रोजगार की वृद्धि लगभग रुक गई है। उनका मानना है कि यह स्थिति अब साफ दिख रही है और इसे बदला नहीं जा सकता। पिछले पांच सालों में पढ़े-लिखे लोगों के लिए नौकरियों में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। उन्हें लगता है कि आगे भी ऐसी बड़ी संख्या में नौकरियां मिलना बहुत ही मुश्किल है। यह मिडिल क्लास के उन युवाओं के लिए बड़ी चेतावनी है जो नौकरी पर ही अपने जीवन को निर्भर मानते हैं।
क्यों बनी ऐसी स्थिति?इसके पीछे की वजह बताते हुए मुखर्जी ने कहा कि ऑटोमेशन (यानी मशीनों और कंप्यूटरों का काम करना) और कंपनियों का ज्यादा कुशल (efficient) होना है। बड़ी और फायदे में चल रही कंपनियां जैसे HDFC बैंक, बजाज फाइनेंस, टाइटन और एशियन पेंट्स अब ज्यादा लोगों को नौकरी पर रखे बिना ही अपना कारोबार बढ़ा सकती हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही मुश्किल है कि ये कंपनियां बहुत सारे लोगों को नौकरी पर रखेंगी। ऑटोमेशन की वजह से उनके लिए बिना ज्यादा लोगों को रखे आगे बढ़ना बहुत आसान हो गया है।
अवसर और उम्मीद के बीच गहरी खाईहर साल भारत में करीब 80 लाख नए ग्रेजुएट नौकरी की तलाश में आते हैं। मुखर्जी ने इसे अवसर और उम्मीदों के बीच एक बहुत बड़ी खाई बताया। उन्होंने कहा कि देश को यह सोचना होगा कि इन नए लोगों को रोजी-रोटी कैसे दी जाए, जबकि बड़ी कंपनियां उन्हें नौकरी पर नहीं रख रही हैं। उनका मानना है कि आने वाले कुछ साल भारत की इस क्षमता की परीक्षा लेंगे कि वह काम करने के तरीकों को कैसे बदल सकता है।
खत्म होंगी पक्की सैलरी वाली नौकरियांसौरभ मुखर्जी ने भविष्यवाणी की है कि पारंपरिक पक्की तनख्वाह वाली नौकरियों का तेजी से पतन होगा। इसकी जगह एक बिखरी हुई 'गिग इकॉनमी' (gig economy) लेगी। इसमें ड्राइवर, कोडर, पॉडकास्टर और वित्तीय सलाहकार जैसे सभी लोग खुद का काम करने वाले बन जाएंगे। मुखर्जी ने कहा, 'हम गिग जॉब्स की दुनिया में जा रहे हैं। पक्की तनख्वाह वाली नौकरी का युग अब पीछे छूट गया है।'
सौरभ मुखर्जी मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी हैं। बिजनेस टुडे के मुताबिक उन्होंने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि भारत में रोजगार की वृद्धि लगभग रुक गई है। उनका मानना है कि यह स्थिति अब साफ दिख रही है और इसे बदला नहीं जा सकता। पिछले पांच सालों में पढ़े-लिखे लोगों के लिए नौकरियों में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। उन्हें लगता है कि आगे भी ऐसी बड़ी संख्या में नौकरियां मिलना बहुत ही मुश्किल है। यह मिडिल क्लास के उन युवाओं के लिए बड़ी चेतावनी है जो नौकरी पर ही अपने जीवन को निर्भर मानते हैं।
क्यों बनी ऐसी स्थिति?इसके पीछे की वजह बताते हुए मुखर्जी ने कहा कि ऑटोमेशन (यानी मशीनों और कंप्यूटरों का काम करना) और कंपनियों का ज्यादा कुशल (efficient) होना है। बड़ी और फायदे में चल रही कंपनियां जैसे HDFC बैंक, बजाज फाइनेंस, टाइटन और एशियन पेंट्स अब ज्यादा लोगों को नौकरी पर रखे बिना ही अपना कारोबार बढ़ा सकती हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही मुश्किल है कि ये कंपनियां बहुत सारे लोगों को नौकरी पर रखेंगी। ऑटोमेशन की वजह से उनके लिए बिना ज्यादा लोगों को रखे आगे बढ़ना बहुत आसान हो गया है।
अवसर और उम्मीद के बीच गहरी खाईहर साल भारत में करीब 80 लाख नए ग्रेजुएट नौकरी की तलाश में आते हैं। मुखर्जी ने इसे अवसर और उम्मीदों के बीच एक बहुत बड़ी खाई बताया। उन्होंने कहा कि देश को यह सोचना होगा कि इन नए लोगों को रोजी-रोटी कैसे दी जाए, जबकि बड़ी कंपनियां उन्हें नौकरी पर नहीं रख रही हैं। उनका मानना है कि आने वाले कुछ साल भारत की इस क्षमता की परीक्षा लेंगे कि वह काम करने के तरीकों को कैसे बदल सकता है।
खत्म होंगी पक्की सैलरी वाली नौकरियांसौरभ मुखर्जी ने भविष्यवाणी की है कि पारंपरिक पक्की तनख्वाह वाली नौकरियों का तेजी से पतन होगा। इसकी जगह एक बिखरी हुई 'गिग इकॉनमी' (gig economy) लेगी। इसमें ड्राइवर, कोडर, पॉडकास्टर और वित्तीय सलाहकार जैसे सभी लोग खुद का काम करने वाले बन जाएंगे। मुखर्जी ने कहा, 'हम गिग जॉब्स की दुनिया में जा रहे हैं। पक्की तनख्वाह वाली नौकरी का युग अब पीछे छूट गया है।'
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