पटना: बिहार की राजधानी पटना से सटा हुआ दानापुर, केवल एक अनुमंडलीय शहर नहीं, बल्कि इतिहास, विरासत और राजनीति का एक अहम केंद्र है। अपनी छावनी (कैंटोनमेंट) के लिए प्रसिद्ध ये नगर एक बार फिर चुनावी रणभूमि का हॉटस्पॉट बना हुआ है। ये सीट पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और बिहार की राजनीति में हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाती रही है। 1957 में स्थापित, दानापुर विधानसभा क्षेत्र अब तक 18 बार चुनावी जंग का गवाह बन चुका है और यहां का इतिहास बेहद रोचक रहा है। इस सीट पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का दबदबा लगभग बराबर रहा है, दोनों ने पांच-पांच बार जीत दर्ज की है। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (जनता परिवार) ने भी मिलकर पांच बार जीत हासिल की है। यहां तक कि 1985 में एक निर्दलीय उम्मीदवार भी यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचा था।
BJP-RJD में कांटे की टक्करदानापुर विधानसभा क्षेत्र की खास बात ये कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव खुद 1995 और 2000 में यहां से चुनाव लड़े और जीते, लेकिन दोनों बार सीट छोड़ दी। उनके सीट छोड़ने के कारण हुए उप-चुनावों में भाजपा के विजय सिंह यादव (1996) और राजद के रामानंद यादव (2002) को जीत दिलाई। साल 2005 से 2015 तक भाजपा की आशा सिन्हा ने लगातार तीन बार जीत दर्ज करके इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। लेकिन 2020 के चुनाव में राजद के रीतलाल यादव ने उन्हें बड़े अंतर से हरा दिया। इस विधानसभा चुनाव में दानापुर में एक बार फिर राजद और भाजपा के बीच सीधी और कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। राजद जहां अपनी सीट बरकरार रखने की कोशिश में है, वहीं भाजपा हर हाल में वापसी के मूड में है।
कैंटोनमेंट बना इलेक्शन का हॉटस्पॉटदानापुर क्षेत्र में यादव मतदाता राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव ने खुद इस सीट से दो बार चुनाव लड़ा। दानापुर की पहचान इसकी खास भौगोलिक संरचना से होती है। ये इकलौता क्षेत्र है जहां शहरी चमक-दमक है, उपजाऊ ग्रामीण इलाका है और नदियों के बीच स्थित दियारा क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति भी है। विकास के नाम पर मेट्रो और एलिवेटेड रोड जैसी बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन दानापुर के लोगों की बुनियादी जरूरतें अब भी पूरी नहीं हुई हैं। जल निकासी की गंभीर समस्या, हर साल आने वाली बाढ़ का खतरा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी आज भी यहां के गंभीर मुद्दे बने हुए हैं, जिन पर चुनावी जीत का दारोमदार टिका है।
आजादी की लड़ाई से भी कनेक्शनदानापुर का इतिहास सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है। ये नगर अपनी सैन्य और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इसे देश की दूसरी सबसे पुरानी छावनी होने का गौरव प्राप्त है, जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल में 1765 में हुई थी। इस ऐतिहासिक छावनी का स्वतंत्रता संग्राम में भी खास योगदान रहा है। 25 जुलाई 1857 को यहीं के सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। आज, यहां बिहार रेजिमेंट का रेजिमेंटल सेंटर स्थित है, जिसकी स्थापना 1949 में हुई थी। साल में एक बार, जून से जुलाई के बीच, यह छावनी क्षेत्र एक अनूठा प्राकृतिक पक्षी अभयारण्य बन जाता है। यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं, जिन्हें 'ओपन बिल स्टॉर्क' कहा जाता है।
इनपुट- आईएएनएस
BJP-RJD में कांटे की टक्करदानापुर विधानसभा क्षेत्र की खास बात ये कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव खुद 1995 और 2000 में यहां से चुनाव लड़े और जीते, लेकिन दोनों बार सीट छोड़ दी। उनके सीट छोड़ने के कारण हुए उप-चुनावों में भाजपा के विजय सिंह यादव (1996) और राजद के रामानंद यादव (2002) को जीत दिलाई। साल 2005 से 2015 तक भाजपा की आशा सिन्हा ने लगातार तीन बार जीत दर्ज करके इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। लेकिन 2020 के चुनाव में राजद के रीतलाल यादव ने उन्हें बड़े अंतर से हरा दिया। इस विधानसभा चुनाव में दानापुर में एक बार फिर राजद और भाजपा के बीच सीधी और कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। राजद जहां अपनी सीट बरकरार रखने की कोशिश में है, वहीं भाजपा हर हाल में वापसी के मूड में है।
कैंटोनमेंट बना इलेक्शन का हॉटस्पॉटदानापुर क्षेत्र में यादव मतदाता राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव ने खुद इस सीट से दो बार चुनाव लड़ा। दानापुर की पहचान इसकी खास भौगोलिक संरचना से होती है। ये इकलौता क्षेत्र है जहां शहरी चमक-दमक है, उपजाऊ ग्रामीण इलाका है और नदियों के बीच स्थित दियारा क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति भी है। विकास के नाम पर मेट्रो और एलिवेटेड रोड जैसी बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन दानापुर के लोगों की बुनियादी जरूरतें अब भी पूरी नहीं हुई हैं। जल निकासी की गंभीर समस्या, हर साल आने वाली बाढ़ का खतरा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी आज भी यहां के गंभीर मुद्दे बने हुए हैं, जिन पर चुनावी जीत का दारोमदार टिका है।
आजादी की लड़ाई से भी कनेक्शनदानापुर का इतिहास सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है। ये नगर अपनी सैन्य और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इसे देश की दूसरी सबसे पुरानी छावनी होने का गौरव प्राप्त है, जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल में 1765 में हुई थी। इस ऐतिहासिक छावनी का स्वतंत्रता संग्राम में भी खास योगदान रहा है। 25 जुलाई 1857 को यहीं के सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। आज, यहां बिहार रेजिमेंट का रेजिमेंटल सेंटर स्थित है, जिसकी स्थापना 1949 में हुई थी। साल में एक बार, जून से जुलाई के बीच, यह छावनी क्षेत्र एक अनूठा प्राकृतिक पक्षी अभयारण्य बन जाता है। यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं, जिन्हें 'ओपन बिल स्टॉर्क' कहा जाता है।
इनपुट- आईएएनएस
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