नई दिल्ली: चीन की अर्थव्यवस्था के सामने एक बड़ा खतरा खड़ा है। यह जनसांख्यिकीय चुनौती से जुड़ा है। 2050 तक उसके लगभग 40% नागरिक 65 साल से ज्यादा की उम्र के होंगे। जन्म दर में गिरावट जारी है। श्रम शक्ति घट रही है। पेंशन प्रणाली पर दबाव बढ़ रहा है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में संकट गहरा रहा है। इससे 'मेड इन चाइना' मॉडल खतरे में है। वह एक तरह के 'टाइम बम' पर बैठा है। यह चीन की आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर डाल सकता है। चीन दशकों से दुनिया की फैक्ट्री रहा है। 'मेक इन इंडिया' के पास इसकी जगह लेने की क्षमता है। हालांकि, इसमें कई तरह की चुनौतियां भी हैं। चीन जनसांख्यिकीय सूनामी का सामना कर रहा है। 2050 तक लगभग 40% नागरिक 65 साल से अधिक उम्र के होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि जब दुनिया का सबसे बड़ा कारखाना एक विशाल नर्सिंग होम में बदल जाएगा तो क्या होगा। चीन की पॉलिसी ने पैदा की गड़बड़ी एक समय चीन में वन-चाइल्ड पॉलिसी थी। इसे अब हटा दिया गया है। फिर भी चीन की जन्म दर लगातार गिर रही है। विश्लेषक इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या कोई देश अपनी उर्वरता को उसी तरह से इंजीनियर कर सकता है जैसे वह निर्यात करता है।चीन की विशाल श्रम मशीन तेजी से प्रतिभा खो रही है। इस दशक में 30 करोड़ वर्कर्स के रिटायर होने की उम्मीद है। यह एक सवाल है कि उत्पादन लाइनों को चलाने और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए कौन बचेगा। रिटारयमेंट सिक्योरिटी नेट कमजोर हो रहा है।रिटायर लोगों की संख्या बढ़ रही है। वर्कर्स की संख्या कम हो रही है। इससे चीन की पेंशन प्रणाली फंडिंग संकट की ओर बढ़ रही है। श्रम की कमी से निपटने के लिए चीन ऑटोमेशन पर निर्भर है। लेकिन, क्या रोबोट वास्तव में लाखों अनुभवी वर्कर्स की जगह ले सकते हैं। प्रोडक्टिविटी और इनोवेशन पर इसका क्या असर पड़ेगा?अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जनसांख्यिकीय दबाव 2035 के बाद चीन की जीडीपी विकास दर को हर साल 1.3% तक कम कर सकता है। संकट को समझ रहा है चीनचीन रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा रहा है। जन्म को प्रोत्साहित कर रहा है। साथ ही शिक्षा को सब्सिडी दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये नीतियां गोली के घाव पर बैंड-एड की तरह हैं। दूरदराज के गांवों में उम्र बढ़ने का संकट और भी गहरा है।वहां स्वास्थ्य सेवा कम है, युवाओं की संख्या घट रही है और बुजुर्गों में गरीबी बढ़ रही है। इससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच खाई और गहरी हो रही है।'मेड इन चाइना' मॉडल पूरी तरह से स्केल और स्पीड पर निर्भर है। लेकिन, जैसे-जैसे कार्यबल सिकुड़ रहा है और लागत बढ़ रही है, 'मेड इन चाइना' मॉडल खतरे में पड़ता जा रहा है। क्या 'मेक इन इंडिया' ले पाएगा जगह?'मेक इन इंडिया' पहल में 'मेड इन चाइना' के विकल्प के रूप में उभरने की क्षमता है। लेकिन, इसके लिए कुछ चुनौतियों का समाधान करना होगा।भारत के पास एक युवा और बढ़ती हुई आबादी है जो महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करती है। यह मैन्यूफैक्चरिंग और अन्य क्षेत्रों के लिए विशाल श्रम शक्ति प्रदान कर सकता है। हालांकि, इस लाभांश का पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए कौशल विकास और रोजगार सृजन महत्वपूर्ण है। वर्तमान में भारत में कुशल श्रमिकों की कमी है। शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर ज्यादा है।भारत धीरे-धीरे अपनी मैन्यूफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ा रहा है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य क्षेत्रों में। सरकार विदेशी निवेश को आकर्षित करने और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बना रही है।चीन की तुलना में भारत में श्रम लागत काफी कम है, जो श्रम-गहन उद्योगों के लिए एक महत्वपूर्ण लाभ हो सकता है। भारत का एक बड़ा और बढ़ता हुआ घरेलू बाजार भी 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा दे सकता है।
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