शारदीय नवरात्रि: आज, 1 अक्टूबर, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी है। नवरात्रि का नौवां दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन देवी सिद्धिदात्री की विधिवत पूजा, कंजक (कन्याओं का पूजन) और हवन अनुष्ठान किए जाते हैं। हवन और कन्या भोज के बाद ही नवरात्रि की पूजा पूरी मानी जाती है। इस बीच, आज पूरे दिन सुकर्मा योग बना रहेगा, जिसमें पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र सुबह 8:06 बजे तक रहेगा, उसके बाद उत्तराषाढ़ा नक्षत्र होगा। इन शुभ योगों के बनने से इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। आइए जानें नवमी पर हवन, कंजक, पूजा अनुष्ठान, मंत्र, आरती आदि के शुभ मुहूर्त के बारे में।
नवमी पर ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:37 बजे से
पंचांग के अनुसार, नवमी तिथि 1 अक्टूबर को शाम 7:01 बजे तक रहेगी। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:37 बजे से 5:26 बजे तक, रवि योग सुबह 8:06 बजे से दिन भर, विजय मुहूर्त दोपहर 2:09 बजे से 2:57 बजे तक और संध्या गोधूलि मुहूर्त शाम 6:07 बजे से शाम 6:31 बजे तक रहेगा। इस बार नवमी पर अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है।
हवन और कन्या पूजन का सर्वोत्तम समय
नवमी पर हवन और कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 6:14 बजे से शाम 6:07 बजे तक रहेगा। ध्यान रहे कि राहुकाल दोपहर 12:10 बजे से 1:40 बजे तक रहेगा। इसलिए राहुकाल के दौरान शुभ कार्य करने से बचें।
लाभ - समृद्धि सुबह 6:14 से 7:43 तक
अमृत - सर्वोत्तम सुबह 7:43 से 9:12 तक
शुभ - सर्वोत्तम सुबह 10:41 से दोपहर 12:10 तक
हवन विधि: सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। हवन कुंड को साफ करें। फिर, हवन के लिए स्वच्छ स्थान पर हवन कुंड स्थापित करें। पूजा शुरू करने से पहले, भगवान गणेश का ध्यान करें। गंगा जल छिड़कें और सभी देवताओं का आह्वान करें। अब, हवन कुंड में आम की लकड़ी, घी और कपूर से अग्नि प्रज्वलित करें। ॐ अग्निया नमः स्वाहा मंत्र का जाप करते हुए अग्नि देव का ध्यान करें। अगली आहुति ॐ गणेशाय नमः स्वाहा मंत्र से दें। इसके बाद, नवग्रहों (ॐ नवग्रहाय नमः स्वाहा) और कुलदेवता (ॐ कुल देवताय नमः स्वाहा) का ध्यान करें। इसके बाद हवन कुंड में सभी देवी-देवताओं के नाम से आहुति दें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हवन कुंड में कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिए। देवी दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान करते हुए आहुति दें। अंत में, बची हुई हवन सामग्री को एक पान के पत्ते पर इकट्ठा करें, उस पर पूरी, हलवा, चना, सुपारी, लौंग आदि रखकर भोग लगाएँ। इसके बाद पूरी श्रद्धा से माता की आरती करें। पूरी, हलवा, खीर या अपनी श्रद्धा के अनुसार भोग लगाएँ। आचमन करें। क्षमा प्रार्थना करें। सभी की आरती करें और उन्हें प्रसाद खिलाएँ।
ॐ दुर्गाय नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
सभी शिव भक्तों को शुभकामनाएँ, शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।
कन्या पूजन विधि: इस दिन देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की प्रतीक नौ कन्याओं और एक बालक को अपने घर आमंत्रित करें, साथ ही बटुक भैरव स्वरूप की भी पूजा करें। सबसे पहले कन्याओं के पैर धोकर उन्हें साफ़ कपड़े से पोंछें। कुमकुम, चावल, फूल और दुपट्टे से उनकी पूजा करें। कन्याओं की आरती करें। उन्हें भोज कराएँ। अपनी क्षमतानुसार उपहार और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें। अंत में कन्याओं के पैर छूकर उन्हें विदा करें।
व्रत तोड़ने का दिन और समय: यदि आप नवरात्रि के नौ दिनों का व्रत कर रहे हैं, तो दशमी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत तोड़ें। आश्विन नवरात्रि व्रत का पारण गुरुवार, 2 अक्टूबर को होगा। यदि आपने नवरात्रि के पहले दिन और अष्टमी को व्रत रखा है, तो आप नवमी तिथि को हवन और कन्या पूजन करके व्रत तोड़ सकते हैं। देवी का प्रसाद खाने के बाद ही व्रत तोड़ें।
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