प्रयागराज, 08 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद सरकार पर सवाल उठाते हुए सोशल मीडिया पर कथित तौर पर एक पोस्ट के आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी।
आरोपी पर धारा 353 (3) और 152 बीएनएस के तहत मामला दर्ज किया गया था। जमानत याचिका मंजूर करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की पीठ ने कहा कि अपर शासकीय अधिवक्ता यह साबित करने में सक्षम नहीं थे कि आवेदक को राहत देने से बड़े पैमाने पर समाज पर असर पड़ेगा, या यदि उसे जमानत दी जाती है, तो स्वतंत्र, निष्पक्ष और पूर्ण जांच पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
आवेदक अजाज अहमद के खिलाफ एफआईआर एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर द्वारा थाना इज्जतनगर, बरेली में दर्ज की गई थी। जिसने दावा किया था कि जब शहर में आतंकवादी हमले में मारे गए निर्दोष नागरिकों की मौत पर शोक का माहौल था, तब सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो गई थी। पोस्ट में कथित तौर पर कहा गया है: ‘नाम पूछकर गोली मारी,चूरन बेचना बंद करें, असली मुद्दे पर आएं कि हमले के लिए जिम्मेदार कौन था।
प्राथमिकी में आगे आरोप लगाया गया कि पोस्ट से सांप्रदायिक भावनाएं आहत हुईं और इससे समाज में वैमनस्य भड़क सकता है। खासकर ऐसे समय में जब लोग कैंडल मार्च और शांति अपील के लिए एक साथ आ रहे हैं। आवेदक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह मामला धारा 353 बीएनएस के अंतर्गत आता है, जिसके लिए सात साल से कम कारावास की सजा हो सकती है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि सरकार के काम की आलोचना करना देश के खिलाफ़ काम नहीं माना जा सकता।
उन्होंने दलील दी कि आवेदक निर्दोष है, उसका कोई आपराधिक इरादा नहीं है तथा उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता। हालांकि, यह देखते हुए कि ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे पता चले कि इस कृत्य से समाज को व्यापक रूप से नुकसान पहुंचा है, या अग्रिम जमानत देने से जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा या साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ को बढ़ावा मिलेगा, अदालत ने आरोप पत्र दाखिल होने तक याची को जमानत दे दी।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
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