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अयोध्या से खजुराहो तक वंदे भारत के सफर से विंध्याचल धाम काे मिलेगी धार्मिक पर्यटन की नई उड़ान

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मीरजापुर, 08 नवंबर (Udaipur Kiran) . आस्था और आध्यात्म की धरती उत्तर भारत अब धार्मिक पर्यटन के विश्व नक्शे पर नई पहचान बनाने जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा Saturday काे हरी झंडी दिखाकर रवाना की गई वाराणसी–खजुराहो वंदे भारत एक्सप्रेस का विंध्याचल रेलवे स्टेशन पर ठहराव शुरू होने के साथ ही यह यात्रा अब अयोध्या, काशी, विंध्याचल, चित्रकूट और खजुराहो जैसे प्रमुख तीर्थस्थलों को जोड़ते हुए एक “आस्था कॉरिडोर” का रूप लेने लगी है.

विंध्याचल स्टेशन पर ट्रेन के प्रथम आगमन के शुभ अवसर पर Uttar Pradesh सरकार में प्राविधिक शिक्षा विभाग, उपभोक्ता संरक्षण विभाग और भार एवं माप विभाग मंत्री आशीष पटेल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रेल मंत्री, सांसद अनुप्रिया पटेल और जनपद के जनप्रतिनिधियों के संयुक्त प्रयासों से यह सौगात मिली है. यह केवल एक ट्रेन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता और आस्था के मिलन का प्रतीक है.

मंत्री ने कहा कि अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर के भव्य निर्माण के बाद देश-विदेश से श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. अब यह ट्रेन अयोध्या को वाराणसी, मां विंध्यवासिनी धाम, चित्रकूट की तपोभूमि और खजुराहो के मंदिरों से जोड़ते हुए धार्मिक पर्यटन को विश्व स्तर पर नई दिशा देगी.

उन्होंने कहा कि विंध्याचल रेलवे स्टेशन पर वंदे भारत ट्रेन का ठहराव इस क्षेत्र की आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक समृद्धि का नया द्वार खोलेगा. मां विंध्यवासिनी के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु अब काशी विश्वनाथ, अयोध्या धाम, चित्रकूट और खजुराहो तक का सफर आरामदायक और तीर्थमय बना सकेंगे.

आशीष पटेल ने बताया कि यह मार्ग अब अंतरराष्ट्रीय धार्मिक सर्किट के रूप में विकसित हो सकता है, जिससे भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति का वैश्विक प्रचार-प्रसार होगा. उन्होंने कहा कि एक और वंदे भारत ट्रेन शुरू करने की दिशा में भी प्रयास जारी हैं, जिससे यह सम्पूर्ण क्षेत्र “वर्ल्ड क्लास रेल टूरिज्म डेस्टिनेशन” बन सके.

उन्हाेंने कहा कि अयोध्या की मर्यादा, काशी का ज्ञान, विंध्याचल की शक्ति, चित्रकूट की तपस्या और खजुराहो की कला — अब एक रेल मार्ग पर एक साथ जुड़े हैं. यह केवल यात्रियों का नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक आत्मा को जोड़ने वाला सफर है. इसे हम धार्मिक पर्यटन के स्वर्णिम युग की शुरुआत के रूप में देखते हैं.

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(Udaipur Kiran) / गिरजा शंकर मिश्रा

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